तमाम बंदिशों से ही नहीं बल्कि एक बार फिर से ही।
मेरी ईल्तजा सिर्फ तुम से ही।
अब वो नदी का शौर नहीं, बस खुद में ही तूफ़ान उठते हैं।
कोई जिन्दा ही नहीं ज़मीर से।
मुझे तो बस चारों ओर श्मसान दिखते हैं।
जिस इश्क को हम आबरू से लपेट कर निहारा करते थे।
वो आज कोड़ीयो में बिकते हैं।
वैश्याऔ को तो लोग यूं ही बदनाम करते हैं ़़़़़़़अमन
ये इश्क नहीं हवश है।
यहां अच्छे-अच्छे घरों की लड़कीयाऀ गैरों से हमबिस्तर होती है।।।