स्वामी विवेकानंद के गुरु रामकृष्ण परमहंस के जीवन के कई ऐसे प्रसंग हैं, जिनमें सुखी जीवन के सूत्र छिपे हैं। अगर इन सूत्रों को अपने जीवन में उतार लिया जाए तो हम कई समस्याओं से बच सकते हैं। एक प्रसंग के अनुसार एक शिष्य ने परमहंसजी से पूछा कि आम लोग तो सभी सुख-सुविधाओं का लाभ उठाते हैं, लेकिन संत-संन्यासियों के लिए इतने कठोर नियम क्यों बनाए गए हैं?
परमहंसजी ने जवाब दिया कि आम लोग तो समाज में रहकर अनुशासन के साथ सभी काम करने के लिए आजाद हैं, लेकिन संन्यासी कितना भी तपस्वी क्यों न हो, उसे स्त्रियों से दूर रहना चाहिए, धन का संग्रह नहीं करना चाहिए, सुख-सुविधा पाने की इच्छा नहीं रखनी चाहिए, संत को क्रोध से बचना चाहिए।
शिष्य ने पूछा कि संन्यासियों के लिए ही इतने कठिन नियम क्यों बनाए गए हैं? जबकि संन्यासी भी इसी समाज का हिस्सा है, वह भी इंसान ही है।
परमहंसजी ने कहा कि त्याग की शिक्षा एक संन्यासी नहीं देगा तो और कौन देगा, संन्यासी अपने ज्ञान और कर्म से समाज को श्रेष्ठ जीवन जीने की सीख देता है। संन्यासी अपने आचरण से समाज को बताता है कि इच्छाएं अनंत हैं, ये कभी पूरी नहीं हो सकती हैं, इसीलिए किसी चीज का मोह नहीं रखना चाहिए, त्याग की भावना रखेंगे तो कभी दुखी नहीं होना पड़ेगा। भगवान की भक्ति में मन लगा रहेगा।
*प्रसंग की सीख* इस छोटे से प्रसंग की सीख यह है कि एक संन्यासी को कभी अधर्म का साथ नहीं देना चाहिए। कभी ऐसा कोई उदाहरण प्रस्तुत नहीं करना चाहिए, जिससे समाज में गलत संदेश जाता है। संन्यासी को धर्म के अनुसार ही आचरण करना चाहिए, ताकि आम लोग उनसे सही काम करने की सीख ले सके।
*सुप्रभात*
*आपका दिन मंगलमय हो....?*