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*हे जीव.... ?*
सूनी आंखों में
रंग प्यार का भर लो,
पतझर में भी
मधुमास दिखाई देगा.!
माना, यमुना के
तट पर आज उदासी,
माना उजड़ा-उजड़ा
सा है वृंदावन
माना पनघट वीरान
पड़ा बरसों से,
हर ओर दिखाई
देता है सूनापन!
उर में मुरली की
तान बसा कर देखो
सूनेपन में भी
रास दिखाई देगा!
सूनी आंखों में रंग
प्यार का भर लो
पतझर में भी
मधुमास दिखाई देगा!
प्रियतम को दूर
बताकर तुम रोते हो,
तुमने शायद तन को
ही प्यार किया है,
मन की समीपता को
न कभी पहचाना,
अपराध न यह अब तक
स्वीकार किया है!
मन में छलिया का
रूप बसाकर देखो
छलना में भी विश्वास
दिखाई देगा!
सूनी आंखों में रंग
प्यार का भर लो,
पतझर में भी
मधुमास दिखाई देगा!
कागज के फूल चढ़ाते
हो प्रतिमा पर?
तुम पूजा को खिलवार
समझ बैठे हो!
प्यासे मृग-से दीवाने
बने हुए हो,
बालू को ही जलधार
समझ बैठे हो!
तन से जो कोसों
दूर दिखाई देता,
मन में खोजो तो
पास दिखाई देगा!
सूनी आंखों में रंग
प्यार का भर लो,
पतझर में भी
मुधमास दिखाई देगा!
मंजिल तो न्यौछावर
होने आयेगी,
बहके-बहके चरणों
की चाल संभालो;
मनुहार करो मत
चांद-सितारों की तुम,
केवल अपने उर को
आकाश बना लो!
मीरा जैसा संकल्प
संजोकर देखो,
विष में अमृत का
वास दिखाई देगा!
सूनी आंखों में रंग
प्यार का भर लो,
पतझर में भी
मधुमास दिखाई देगा।
*? राधे राधे*
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