नारी जिसके नाम में..नर है समाया
#KAVYOTSAV - 2
नारी जिसके नाम में..नर है समाया ,
नर को कौन..नारी से पृथक कर पाया ,
क्या कभी कोई पुरूष..स्त्री से खुद की तुलना है करता ,
जानता है भली भांति..दोनो के गुणों में नही है समानता !
ईश्वर की सृष्टि सृजन में तुम स्वयं हो जीवनदात्री ,
नौ महीनों की तपस्या से उत्पन्न करती हो..जीव , बनकर जननी...
है केवल तुम्ही में ताकत , जो व्रत उपवास से बढ़ा दे..पति परमेश्वर की उम्र ,
कुछ तो होगा ही खास क्यों तुम्हारी उम्र में वृद्धि की नही कोई पूजा , व्रत !
क्या कभी होती है...पूजा पुरुषों की !
ये सौभाग्य मिला है केवल...स्त्रीरूप को ही !
क्या कभी किसी पुरूष को देखा है.. मनुष्य के ईश्वररूप में..
दुर्गा रूपी कन्या , सरस्वती रूपी माँ , लक्ष्मी रूपी बहू केवल स्त्री ही जन्म लेती मनुष्य रूप में !
यदि लगे जीवन है..तुम्हारा व्यर्थ !
लेना दिनभर अवकाश..स्पष्ट हो जायेगा अर्थ ,
निर्भर है केवल तुम पर...कब समझोगी ये गूढ़ रहस्य ,
साकार होगा नारी जीवन उस दिन , जब खुद समझोगी खुद का मूल्य !
© नेहा भारद्वाज