अर्थतंत्र की रीढ़ को......
#काव्योत्सव -2
राजनीति में लग गया, नेताओं को रोग।
अर्थतंत्र की रीढ़ को, तोड़ रहे ये लोग।।
ऋण देकर उपकृत करें, बांट रहें खैरात।
फिर उसको माफी करें, यह कैसी सौगात।।
जनता देती टैक्स है, सुविधाओं की आस।
सत्ताधारी कर रहे, उनको सदा निराश।।
बाढ़ अकाल आगजनी, तोड़ फोड़ के नाम।
करें सुरक्षा कुछ नहीं, सब भुगतें अंजाम।।
जात धर्म के नाम पर, तुष्टिकरण का रोग।
इनके अंदर है भरा, भंडारे का भोग।।
दान वीर ऐसे बने, जैसे मिली हो छूट।
अपने वोट सहेजने, सरकारी है लूट।।
अपराधों को रोकने, असफल हैं ये लोग।
क्षतिपूर्ति के नाम पर, पाल रखा है रोग।।
अर्थतंत्र कमजोर कर, हर्षित हैं जो आज।
पैर कुल्हाड़ी मारते, सबके सिर पर गाज।।
अर्थ तंत्र है देश की, वह मजबूत गठान।
इससे ही बढ़ती सदा, हर मुल्कों की शान।।
नैतिकता पर जोर दें, तजें अनैतिक राह।
चारित्रिक पथ पर चलें, चहुँ दिश होती वाह।।
मनोज कुमार शुक्ल "मनोज"