Hindi Quote in Poem by sangeeta sethi

Poem quotes are very popular on BitesApp with millions of authors writing small inspirational quotes in Hindi daily and inspiring the readers, you can start writing today and fulfill your life of becoming the quotes writer or poem writer.

#काव्योत्सव 2
(जीवन दर्शन)
हाहाकार

हाहाकार
मचा है मन में
मै कौन ?
मैं क्यों ?
किसके निमित्त ?
क्या करने आई हूँ
पृथ्वी पर ?
प्रश्न दर प्रश्न
बढती जाती हूँ
दिल के हर कोने में
पाती हूँ
मचा है
हाहाकार
----------------
चलती जाती हूँ
सड़क पर
शोर गाड़ियों का
घुटन धुँए की
चिल्ल-पौं होर्न की
सबको जल्दी
आगे जाने की
उलझे हैं सारथी
हर गाड़ी के
देते हुए गालियाँ
एक दूसरे को
देख रही हूँ मैं
एयरकंडीशन कार में
बैठी
मचा है
सड़क पर
हाहाकार
--------------------
चलती हूँ हाई-वे पर
दौड़्ते दृश्यों में
एक बस्ती के बाहर
ज़मीन से ऊपर
सिर उठाए
नल के नीचे
बाल्टियों की कतारें अपनी बारी के
इंतज़ार मे
तितर-बितर लोग
उलझते एक दूसरे से
कि नहीं है सहमति
एक घर से
दो बाल्टी की
मेरे घर के बाहर
एक बालिश्त
घास का टुकड़ा
पी जाता है
ना जाने
कितना गैलन पानी
और यहाँ बस्ती में
एक बाल्टी
पानी के लिए
मचा है
हाहाकार
--------------
पिज़्ज़ा पर
बुरकने के लिए
चीज़
केक को
सजाने के लिए
क्रीम
डेयरी बूथ पर
रोकी कार मैंने
देखकर लम्बी कतार
सड़क तक
थोड़ी धक्कमपेल में
ठिठकी मैं
कोई झगड़ा
कोई फसाद
आशंका मन में
कतार के सबसे
पीछे खड़े
मफलर में
लिपटे चेहरे को
पूछा
“आज क्या है इस डेयरी पर ”
मूँग की दाल
मिल रही है
कंट्रोल रेट पर
बहनजी !
आप भी ले आओ
राशन कार्ड
एक धक्के से
खिसक गया वो
और पीछे
मचा है यहाँ भी
हाहाकार !
--------------
मेरे चाचा का
इकलौता बेटा
सड़क दुर्घटना में
सो गया
सदा के लिए
चीखों-पुकार
करुण-क्रन्दन
नोच गया दिल
पोस्ट्मार्टम के
इंतज़ार में
खड़े हम
अस्पताल के पोर्च में
प्रसव वेदना से
तड़पती
माँ ने
दम तोड़ दिया
छ्ठा बच्चा था
उसका
“अब इतने जनेगी तो
मरेगी ही ना ”
लोगों के जुमले
मचा रहे थे
मन में मेरे हाहाकार
---------------------
उड़ीसा में आया है फैनी तूफान
ले ली है जानें
कितने लोगों की
रोते बिलखते
उजड़ते बिखरते
लोगों के चेहरे
पिछली सारी यादों को
गडमगड करते
कभी सुनामी
कभी बाढ
कभी भूकम्प
कभी सूखा
और नहीं तो
तूफान भंवर
इससे भी नहीं थमा
धरती सागर
तिल-तिल बढती
ग्लोबल वार्मिंग
मच रहा हैं
हाहाकार
-----------------
धरती से ऊपर
क्षितिज पर
आसमान में
कभी बादलों का
रोना वर्षा से
कभी सूरज का सोखना
धरती से
कभी छेद है
ओज़ोन परत में
और धरती के पार
आकाश गंगा के रास्ते
सौर मण्डल के अपने दर्द
कभी सूर्य को ग्रहण
कभी चन्द्र को ग्रहण
कभी टूटता तारा
कभी उलका पिण्ड
अलग होते आकाश से
मचा है खगोल में भी
हाहाकार
------------------
उठती हूँ नींद से
मचा है
हाहाकार
अब भी मन में
उथलता
पुथलता
नख से शिख तक
करता हुआ
आँखे नम
कौन हूँ ?
क्यों हूँ ?
कहाँ से ?
कब आई हूँ ?
अपना ये हाहाकार
कुलबुलाता है
धरती पर
बिसरते लोगों से लेकर
धरती के पार तक
उनके हाहाकार से
छोटा हो गया है
मेरा हाहाकार
-----------------

Hindi Poem by sangeeta sethi : 111162126
New bites

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now