#काव्योत्सव # भावनाएँ
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मज़हब पे यूँ ना लड़ा कीजियेगा.........
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जो मर्जी में आए, वही कीजियेगा ,
जो नफ़रत है दिल में, भुला दीजियेगा ।
अगर चाहते हो , खुशहाली वतन की,
खुश रहके , सभी को खुशी दीजियेगा ।
बड़ा अहसान होगा , ये हम पे तुम्हारा ,
मज़हब पे यूँ ना , लड़ा कीजियेगा ।।
जो भड़के हैं शोले ,हैवानियत के ,
बुझाने का कुछ तो ,जतन कीजियेगा ।।
इंसानियत के खातिर , है इल्तज़ा हमारी ,
ना शराफत को , खुद से जुदा कीजियेगा ।।
बहुत हो चुकी अब , तबाही की बातें,
हो आबाद ,ऐसे करम कीजियेगा ।।
अगर ना असर हो सियाके- बयाँ का,
खामोश रहकर ,जिया कीजियेगा ।।
जो मर्जी में आए, वही कीजियेगा ,
जो नफ़रत है दिल में, भुला दीजियेगा ।।