मोटनक छंद
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नाता अपना जग से इतना।
मल्हार मनोहर राग अना।।
वैराग्य न जीवन से मुझको।
हे! ज्ञान समक्ष कृपाल झुको।।
लोकोत्तर या अतिमानव हो।
या जीवन भक्षक दानव हो।।
है मृत्यु खड़ा रथ अश्व सजा।
संसारिक जीवन मोह तजा।।
गंभीर बने मणि तुल्य रहे।
तेजस्क्रिय हो पर मूल्य रहे।।
है पत्थर जीवन रत्न नहीं।
ये दिव्य प्रतिक्षित यत्न नहीं।।
©-राजन-सिंह