क्यूँ इतना इस जहान में उलझे हुए हैं लोग
अपनी ही दास्तान में उलझे हुए हैं लोग
अपनी ज़मीं की फिक्र यहाँ कौन करेगा
गैरों के आसमान में उलझे हुए हैं लोग
जिसकी दीवार से सदा भी लौटती नहीं
ऐसे किसी मकान में उलझे हुए हैं लोग
कितने ही तीर खा लिए दुनिया की जंग में
खुद की खिंची कमान में उलझे हुए हैं लोग
हैं भूल चुके जिसको भूला हमें भी वो
कुछ ऐसे इत्मिनान में उलझे हुए हैं लोग
अपना है जो जहान में, जाएंगे ले के संग
झूठे इसी गुमान में उलझे हुए हैं लोग