#kavyotsav
एक खामोश अंतर्नाद
मलिन जल भी स्वच्छ है स्वच्छ है
सतह पर पनपते मच्छर का लार्वा यह कह रहा
तलाश मुझे एक मनुज की
आरम्भ होता मेरा अल्प जीवन, क्षुद्र आकृति
समाप्त हो रही मिट रही हर क्षण हर पल
एक स्पष्ट , सुगठित मांसल होने की स्थिति
विध्वंसता ही एक मात्र उपाय है मेरे अहम् के तुष्टिकरण के लिए,
छद्म नहीं प्रकट है यह
मिसाइलों की विनाशकारी लीला सदृश
सम्पुर्ण मनुजता को अकेले निगलने के लिए
सहमा डरा अचंभित सा मैं कभी कभी
स्वयम नुकीले अस्त्र चला बैठता हूँ
काल दरवाज़े पर धमाचौकड़ी मचाता
मनुज की साँसों को ऐसा अटकाने का प्रयास करता है
मानो मेरा उस मनुज पर विध्वंस करना ही अपर्याप्त था
रक्तपिपासु ही मेरा परिचय नहीं काल ग्रास भी मैं हूँ
निर्दोष बेबस गरीब लाचार मजबूर का शिकार हो जाना न मेरी नियति है न उनकी
ये सिर्फ भाग्यवादिता की तंग अंधेरी गलियों में अजनबी रहस्य का शंखनाद है ||