#काव्योत्सव .....
प्रेम की गली में ये उदारता है क्यों ?
बार-बार दिल तुझे पुकारता है क्यों ?
(१)
तू नहीं तो तेरा एहसास है मुझे,
ऐसा लगे जैसे आस-पास है मुझे।-२
तेरे-मेरे चित्र नयन, उतारता है क्यों ?
बार-बार दिल तुझे पुकारता है क्यों ?
(२)
सच मानिए जब से आप मिल गए।
मन मधुबन में कई पुष्प खिल गए।-२
अंग-अंग दीप अब उजारता है क्यों ?
बार-बार दिल तुझे पुकारता है क्यों ?
(३)
मीरा श्याम रंग में दीवानी हो गई।
भक्ति अनुराग की कहानी हो गई।-२
गरल में सुधा, नेह उतारता है क्यों ?
बार-बार दिल तुझे पुकारता है क्यों ?
(४)
राधा व्याकुल हुई घनश्याम आ गए।
शबरी के जूठे बेर राम खा गए । -२
ईश्वर भी प्रेम बस हारता है क्यों ?
बार-बार दिल तुझे पुकारता है क्योँ ?
मित्रो, रचना बिना काँट-छाँट किये अपने
मूल स्वरूप कवि नाम सहित अग्रेषित
करें। धन्यवाद।
*कवि विनोद सिंह गुर्जर*
चलभाष :- ९९७७११०५६१.