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suman sharma

suman sharma

@sumansharma171620


#KAVYOTSAV -2

"मुट्ठी भर धूप"

जब कभी उम्मीदों का सूरज
ढलने लगता है
ग़लतफ़हमी के बादलों के पीछे

खोलती हूँ पुराने खत
जिसमें बंद पड़ीं हैं किरणें
आशाओं की!

मुट्ठी भर धूप
साँस लेने भर हवा
जीवन को महकाती खुशबू!

मुड़े कागज़ के तहों को खोलते
बिखर जाती है अनायास की हँसी
हया से दबी-दबी मुस्कराहटें

आखर-आखर से बरसने लगता है
प्रीत का बीता पल
बूँद-बूँद फिर भर उठता है
मायूसियों से रीता मन

यादों की तितलियाँ
उड़-उड़ के बैठने लगती हैं
एहसासों के मुरझाते पुष्पों पर
उनके रंग बिरंगे पंखों की छुअन से
फिर हरिहरा जाता है मन-उपवन!

-सुमन शर्मा

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#KAVYOTSAV -2

"क्या दूँ तुम्हें...?"

देना तो बहुत कुछ चाहती हूँ!
नीला आकाश
बसंती बयार
नदियों की कलकल
विस्तृत समन्दर
पहाड़ों की चोटियाँ
उस पर से फिसलती
बर्फ़ीली सर्दियाँ!

सूरज की किरणों की स्वर्णिम आभा
पूनम का चाँद
और पूरी आकाशगंगा
तारों से पूर्ण व्योम
और सारा ब्रह्मांड!

लेकिन मेरे पास तो कुछ भी नहीं!
रीते हाथ
सूखे सपने
मुरझाईं उम्मीदें
आँसूओं का सैलाब
आहों का अवसाद
बीते जीवन की कड़वाहट
और दर्द हज़ार!

ये कैसे दे दूँ तुम्हें?
तुम्हें एक एहसास दे रही हूँ!
जो है सिर्फ मेरा
तुम्हें अपना प्रेम दे रही हूँ
जिस पर अधिकार है सिर्फ तुम्हारा!
मेरा हृदय दे रही हूँ
जिस पर बन्धन नहीं किसी का!

अपनी सारी दुआएँ
तुम्हारे नाम कर रही हूँ!
तुम सूरज की तरह चमको!
चाँद की तरह उज्जवल हो
जीवन का प्रत्येक क्षण!

अपने उम्र का
हर पल दे रही हूँ
तुम जियो युग-युगांतर!
तुम सबके मन में अमर रहो
और प्रेम मेरा यूँ ही हो
मन में तुम्हारे
जन्म-जन्मांतर....!!

-सुमन शर्मा

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#KVYOTSAV -2
'याद है अभी तक..."

इन दिनों
तुम इतने व्यस्त हो
कि तुम्हारे ख्यालों में भी
मेरा ख्याल खो गया है कहीं

लेकिन मेरी बेज़ारी में भी
एक भी लम्हा
ऐसा नहीं गुज़रता
जिसमें
तुम्हारी चाहत नहीं होती

टटोलती रहती हूँ
अपनी उपस्थिति शिद्दत से
कि कहीं तो मिल जाए
तुम मे मेरे होने का कोई निशान

जानती हूँ
इतना भी सरल नहीं है
सहजता से पाना
तुम्हारे मन की थाह

याद है मुझे अब भी
कितने सालों के मशक्क़त के बाद
खोल पाई थी तुम्हारे मन के किवाड़

एकनिष्ठ समर्पण के दीप जलाए
तुम्हारे मन के दर पर वर्षों
तब जा के कहीं पहुंच पाई थी भीतर

अपने मन मुताबिक़ बना तो ली
रहने की जगह लेकिन
हसरत ही रही बाक़ी
कि घोषित करो तुम खुद ही
मुझे मल्लिका अपने मन की।

-सुमन शर्मा

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#KAVYOTSAV -2

तुम बहुत देर से मिले मुझे...."

तुम बहुत देर से मिले मुझे
जब प्रेम का स्रोत सूखने को था
तब तुम वहीं कहीं खड़े थे
मन बहलाने के लिए
खूबसूरत भ्रमों की ओट में
मंद-मंद मुस्कान लिए ।

तुम मुझे तब मिले
जब भरे पड़े थे तुम
ज़िम्मेदारियों से
उस मोड़ पर जब सपने
मंजिलों के बरक्स
रास्ते बदल लेते हैं ।

उम्मीदों की डोर से बंधे तुम
दौड़ रहे थे बेहिसाब
अंजान रिश्तों को सन्तुष्ट करने की नाकाम कोशिश में ।

तुम थक तो चुके हो
ज़ाहिर होता है तुम्हारी
माथे पर पड़ी सलवटों से
लेकिन तुमने हमेशा से दिखाया है
खुद को चट्टान सा
इसलिए तुम्हें थकना मना है ।

यूँ तो उम्र का अंतराल
उतना भी नहीं
कि हमारी चाहत का रंग एक सा नहीं हो सके
लेकिन हमारी प्राथमिकताएं उतनी ही विपरीत हैं
जितना कि एक हैं हमारी खामोशी के सुर

मेरी सारी प्राथमिकताएं
तुम्हारे बाद शुरू होतीं
और तुम्हारी.....
मैं उस पंक्ति में सबसे पीछे खड़ी हूं।

तुम्हारे गणित के अनुसार
जो सबसे छोटा नज़र आता है
सबसे पहले आता है
और मैं बढ़ते क्रम के इस गणितीय नियम को समझ
खुद को तुम्हारे सबसे करीब ही मानती हूँ।

-सुमन शर्मा

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#KAVYOTSAV -2
"रंग"

सिर्फ देखे थे मैने रंग
पहचानती थी उनके नाम से
लाल,नीला,पीला, हरा, गुलाबी...

जानती थी कि
रंग दिखते हैं
आँखों की वर्णक्रम से मिलने पर
छाया की गतिविधियों से

छुआ था कभी-कभी उँगलियों से
और देखी
कि ये रंग वहीं तक रँगते हैं जितना छुआ जाए

कितने नए रंगों से परिचय हुआ है
तुम्हारे सानिध्य में
इन रंगों(लाल,नीला,पीला, हरा, गुलाबी...) से बनिस्पत

कि रंग सिर्फ आभास बोध का मानवी गुण धर्म नहीं
बल्कि कुछ रंग ऐसे भी होते हैं
जो दिखते नहीं आंखों से
और रँग जाते हैं अंतर्मन-जीवन

अब महसूस करती हूँ रंगों को
पहचाती हूँ वर्णक्रम से इतर

रंग खुशी का
रंग मुस्कराहट का
रंग आँसू का
रंग बेचैनी का
रंग सुकून का
रंग इंतज़ार का
रंग साथ का
रंग उल्लास का
रंग विश्वास का
रंग और भी न जाने कितने

एक तुम्हारे होने से
ये सारे रंग बिखर गए हैं
जीवन के कोने -कोने में
मैं तन-मन सराबोर हूँ
अब हर दिन मेरी होली होती है

कि एक प्रेम के रंग में रंग जाने से
कितने और रंग अनायास ही शामिल हो जाते हैं जीवन में....!

-सुमन शर्मा

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#KAVYOTSAV -2

तुम अक्सर मुझसे कहा करते
समय के साथ
शिथिल होते जाते हैं
प्रत्येक बन्धन
आकर्षण भी
प्रत्येक दिन के साथ ही
खोता जाता है अस्तित्व

मैं उस वक़्त भी
बड़ी तल्लीनता से
सुनती तुम्हारी हर बात को
मेरे लिए तुम मेरे कृष्ण जो ठहरे!
मैं भयभीत भी होती मन ही मन
कहीं तुम्हारी कही बात सच न हो जाए!

समय अपने गति से ही चलता रहा
तुम्हारी कही हर बात
बाँध कर रख लिया मैंने हृदय पोटली में
टटोलती रही अक्सर स्मृतियों को
जानने को तुम्हारी बातों का सच
मन के दर्पण में निहारती रही
बदला तो नही रूप जो बसाया था?

बदला तो है बहुत कुछ
तुम्हारा रूप और मनभावन लगने लगा है
बन्धन प्रगाढ़ से अटूट होता जा रहा
कल जिसे तुम आकर्षण कहते थे
अनन्त प्रेम के परिणीति की ओर चला है
मेरी प्रत्येक उत्सुकता अब
तुम तक ही सिमट गई है ।

-सुमन शर्मा

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#KAVYOTSAV -2

"सुख-दुःख"

खुशियों के लिए गाये जाने वाले
स्वागत गीतों के जब बदल जाते हैं सुर
लगता है कभी कभी ...

दुःख सदैव चलता है
खुशी के संग-संग ही
इसलिए तो कहते हैं
कि दुःख के पीछे आता है सुख

कभी-कभी सुख से पहले ही
पहुँच जाता दुःख
और काबिज़ हो जाता
उसकी जगह!

-सुमन शर्मा

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#KAVYOTSAV -2

बीती आधी रात
उनींदी हैं आँखें
जैसे हरियाली की प्रतीक्षा में है
रेगिस्तान ।


बादलों से अठखेलियां करता हुआ
दिख रहा है खिड़की से चांद

उदास है मन
जाने कितनी अनकही बातों से
चाँदनी चुभ रही है
शूल की तरह ।

आंखें बंद करती हूँ
ताकि भर सकूँ एक गहरा अँधेरा
कि गहनता से उसकी
आँसू भूल जाएं आँखों का रास्ता
और उदासी मन की।

पलके झुकाते ही
चमकने लगते हैं
ढांढस बंधाते बातों के
असंख्य जुगनू!

-सुमन शर्मा

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"मैं तुम्हें देखना चाहती हूँ"#KAVYOTSAV -2

मैं तुम्हें देखना चाहती हूँ
उस वक़्त..

जब तुम्हारी उनींदी आंखों पर

पलकें मुँदी मुँदी जाती हैं

बेखयाली में यूँ ही बार बार

जम्हाई लेते वक्त जब

खुले होठों के बीच उंगलियां रखते हो...



मैं तुम्हें देखना चाहती हूँ

उस वक़्त..


जब बेड पर लेटे लेटे

अनमने से 

यूँ ही रिमोट हाथों में पकड़े

बेसबब टीवी के चैनल्स बदलते-बदलते

सो जाते हो


मैं तुम्हें देखना चाहती हूँ

उस वक़्त..


जब औंधे सोते-सोते

अचानक ही 

करवट बदलते हो

और तुम्हारे होठों पर होती है

ख्वाबों की मासूम मुस्कराहट


मैं तुम्हें देखना चाहती हूँ

उस वक़्त..


जब सूरज की पहली किरण से पहले

चमकती हैं 

नींद को परे धकेलती

तुम्हारी सितारों सी 

अलसाई आंखें

और होठों पर खिलता है

ओंस से नहाया गुलाब


मैं तुम्हें देखना चाहती हूँ

उस वक़्त..


जब गुसलखाने में खड़े हो तुम

शॉवर के नीचे

पानी की शरारती बूंदे

फिसल-फिसल कर करती हैं अठखेलियाँ

तुम्हारे चौड़े बलिष्ठ कांधे से 

पावों की उंगलियों तक


मैं तुम्हें देखना चाहती हूँ

उस वक़्त..


जब कभी हवा की गुस्ताखी से

तुम्हारे रेशमी बाल

बेतरतीब से बिखर जाते हैं

माथे पर तुम्हारे

तुम्हारे स्पर्श के बहाने


मैं अपनी उँगलियों से तुम्हारी ज़ुल्फें संवारना चाहती हूँ

तुम्हारे साथ सभी लम्हों को जीना चाहती हूं

जी भरके न सही

एक बूंद ही सही,प्रीत का अमृत पीना चाहती हूँ

मैं तुम्हें देखना चाहती हूँ

उस वक़्त..सुनो !!!!

-सुमन शर्मा

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"हमारा प्रेम"#KAVYOTSV -2

हमारा प्रेम
असीम अनुरक्ति और
विरक्ति की कड़ी है ।

सुख-दुःख की साझेदारी
सपनों की हिस्सेदारी
और समर्पण का ज़श्न है ।

साहस है परिस्थितियों से
दो-चार होने के लिए ।

विजय की मुस्कान है
जिसे देख कर स्वतः ही
शत्रु हार जाता है ।।

-सुमन शर्मा

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