#KAVYOTSAV -2
तुम बहुत देर से मिले मुझे...."
तुम बहुत देर से मिले मुझे
जब प्रेम का स्रोत सूखने को था
तब तुम वहीं कहीं खड़े थे
मन बहलाने के लिए
खूबसूरत भ्रमों की ओट में
मंद-मंद मुस्कान लिए ।
तुम मुझे तब मिले
जब भरे पड़े थे तुम
ज़िम्मेदारियों से
उस मोड़ पर जब सपने
मंजिलों के बरक्स
रास्ते बदल लेते हैं ।
उम्मीदों की डोर से बंधे तुम
दौड़ रहे थे बेहिसाब
अंजान रिश्तों को सन्तुष्ट करने की नाकाम कोशिश में ।
तुम थक तो चुके हो
ज़ाहिर होता है तुम्हारी
माथे पर पड़ी सलवटों से
लेकिन तुमने हमेशा से दिखाया है
खुद को चट्टान सा
इसलिए तुम्हें थकना मना है ।
यूँ तो उम्र का अंतराल
उतना भी नहीं
कि हमारी चाहत का रंग एक सा नहीं हो सके
लेकिन हमारी प्राथमिकताएं उतनी ही विपरीत हैं
जितना कि एक हैं हमारी खामोशी के सुर
मेरी सारी प्राथमिकताएं
तुम्हारे बाद शुरू होतीं
और तुम्हारी.....
मैं उस पंक्ति में सबसे पीछे खड़ी हूं।
तुम्हारे गणित के अनुसार
जो सबसे छोटा नज़र आता है
सबसे पहले आता है
और मैं बढ़ते क्रम के इस गणितीय नियम को समझ
खुद को तुम्हारे सबसे करीब ही मानती हूँ।
-सुमन शर्मा