#KAVYOTSAV -2
"मुट्ठी भर धूप"
जब कभी उम्मीदों का सूरज
ढलने लगता है
ग़लतफ़हमी के बादलों के पीछे
खोलती हूँ पुराने खत
जिसमें बंद पड़ीं हैं किरणें
आशाओं की!
मुट्ठी भर धूप
साँस लेने भर हवा
जीवन को महकाती खुशबू!
मुड़े कागज़ के तहों को खोलते
बिखर जाती है अनायास की हँसी
हया से दबी-दबी मुस्कराहटें
आखर-आखर से बरसने लगता है
प्रीत का बीता पल
बूँद-बूँद फिर भर उठता है
मायूसियों से रीता मन
यादों की तितलियाँ
उड़-उड़ के बैठने लगती हैं
एहसासों के मुरझाते पुष्पों पर
उनके रंग बिरंगे पंखों की छुअन से
फिर हरिहरा जाता है मन-उपवन!
-सुमन शर्मा