"मैं तुम्हें देखना चाहती हूँ"#KAVYOTSAV -2
मैं तुम्हें देखना चाहती हूँ
उस वक़्त..
जब तुम्हारी उनींदी आंखों पर
पलकें मुँदी मुँदी जाती हैं
बेखयाली में यूँ ही बार बार
जम्हाई लेते वक्त जब
खुले होठों के बीच उंगलियां रखते हो...
मैं तुम्हें देखना चाहती हूँ
उस वक़्त..
जब बेड पर लेटे लेटे
अनमने से
यूँ ही रिमोट हाथों में पकड़े
बेसबब टीवी के चैनल्स बदलते-बदलते
सो जाते हो
मैं तुम्हें देखना चाहती हूँ
उस वक़्त..
जब औंधे सोते-सोते
अचानक ही
करवट बदलते हो
और तुम्हारे होठों पर होती है
ख्वाबों की मासूम मुस्कराहट
मैं तुम्हें देखना चाहती हूँ
उस वक़्त..
जब सूरज की पहली किरण से पहले
चमकती हैं
नींद को परे धकेलती
तुम्हारी सितारों सी
अलसाई आंखें
और होठों पर खिलता है
ओंस से नहाया गुलाब
मैं तुम्हें देखना चाहती हूँ
उस वक़्त..
जब गुसलखाने में खड़े हो तुम
शॉवर के नीचे
पानी की शरारती बूंदे
फिसल-फिसल कर करती हैं अठखेलियाँ
तुम्हारे चौड़े बलिष्ठ कांधे से
पावों की उंगलियों तक
मैं तुम्हें देखना चाहती हूँ
उस वक़्त..
जब कभी हवा की गुस्ताखी से
तुम्हारे रेशमी बाल
बेतरतीब से बिखर जाते हैं
माथे पर तुम्हारे
तुम्हारे स्पर्श के बहाने
मैं अपनी उँगलियों से तुम्हारी ज़ुल्फें संवारना चाहती हूँ
तुम्हारे साथ सभी लम्हों को जीना चाहती हूं
जी भरके न सही
एक बूंद ही सही,प्रीत का अमृत पीना चाहती हूँ
मैं तुम्हें देखना चाहती हूँ
उस वक़्त..सुनो !!!!
-सुमन शर्मा