#KAVYOTSAV -2
तुम अक्सर मुझसे कहा करते
समय के साथ
शिथिल होते जाते हैं
प्रत्येक बन्धन
आकर्षण भी
प्रत्येक दिन के साथ ही
खोता जाता है अस्तित्व
मैं उस वक़्त भी
बड़ी तल्लीनता से
सुनती तुम्हारी हर बात को
मेरे लिए तुम मेरे कृष्ण जो ठहरे!
मैं भयभीत भी होती मन ही मन
कहीं तुम्हारी कही बात सच न हो जाए!
समय अपने गति से ही चलता रहा
तुम्हारी कही हर बात
बाँध कर रख लिया मैंने हृदय पोटली में
टटोलती रही अक्सर स्मृतियों को
जानने को तुम्हारी बातों का सच
मन के दर्पण में निहारती रही
बदला तो नही रूप जो बसाया था?
बदला तो है बहुत कुछ
तुम्हारा रूप और मनभावन लगने लगा है
बन्धन प्रगाढ़ से अटूट होता जा रहा
कल जिसे तुम आकर्षण कहते थे
अनन्त प्रेम के परिणीति की ओर चला है
मेरी प्रत्येक उत्सुकता अब
तुम तक ही सिमट गई है ।
-सुमन शर्मा