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बृज राज किशोर

बृज राज किशोर

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ज़रूरत आ पड़ी है
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अब अंधेरों को नहीं डर दीपकों का,
कुछ मशालों की ज़रूरत आ पड़ी है।
जो निरंकुश शासकों को तिलमिला दें,
उन सवालों की ज़रूरत आ पड़ी है।।

वक़्त इतना बीत जाने पर अभी तक,
बस गड़े मुर्दे उखाड़े जा रहे हैं।
जो विपक्षी 'क्रीज़' पर उतरे हुए हैं,
वे कुतर्कों से पछाड़े जा रहे हैं।
यदि विवादों के लिए तैयार हैं वे,
तो जियालों की ज़रूरत आ पड़ी है।।

और सब बेकार थे, हम ही कुशल हैं,
रोज़ ही ये शब्द दुहराए गए हैं।
क्या हुआ है, क्या नहीं, ये कौन जाने,
दूर तक भ्रम जाल फैलाए गए हैं।
काठ की हंडिया नहीं दो बार चढ़ती,
क्यूँ मिसालों की ज़रूरत आ पड़ी है।।

ठीक है, सत्ता मिली है, राज करिए,
खेल कीचड़ फेंकने का क्यों चुना है?
है विविधता से भरा जब देश अपना,
स्वर किसी का भी यहाँ क्यों अनसुना है?
हाँ, मुखर आलोचना की अहमियत है,
इन ख़यालों की ज़रूरत आ पड़ी है।।

--बृज राज किशोर 'राहगीर'

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#KAVYOTSAV -2
ग़ज़ल
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तानकर सीना गगन में आज लहराया तिरंगा।
एक अरसे बाद थोड़ी देर मुस्काया तिरंगा।

रोज़ ही सीमाओं पर सुनकर शहादत की कहानी,
है बहुत लाचार, बेबस और मुरझाया तिरंगा।

जब मिली उसको ख़बर हिंसा हुई है देश भर में,
देख कर अपनी ज़मीं पर खून घबराया तिरंगा।

आज पाकिस्तान ज़िन्दाबाद के नारे लगे हैं,
जानकर यह दुखभरा सच ख़ूब गुस्साया तिरंगा।

सात दशकों का हुआ गणतन्त्र, अब भी भुखमरी है,
देश की पूरी व्यवस्था पर तरस खाया तिरंगा।

है प्रदूषित स्वर्ग से आई हुई गंगा नदी भी,
घाट पर गुमसुम खड़ा है घोर दुख पाया तिरंगा।

बालकों की टोलियाँ ध्वज हाथ में लेकर चली जब,
मौज में आ राजपथ पर खुद उतर आया तिरंगा।

--बृज राज किशोर 'राहगीर'
ईशा अपार्टमेंट, रुड़की रोड, मेरठ-250001

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#KAVYOTSAV -2
एक नया गीत
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सिन्धु-तीर पर लोगों की अठखेली देख रहा हूँ।
मस्ती करते अलबेले-अलबेली देख रहा हूँ।।

दूर क्षितिज से आकर लहरें कितना इठलाती हैं।
बाँहों में भरकर धरती को, झूम-झूम जाती हैं।
लहरों को मैं हर पल नई-नवेली देख रहा हूँ।।

एक नव-युगल प्रथम बार सागर-तट पर आया है।
कौतूहल में चीख़ रहा है, तन-मन हर्षाया है।
उनका यह उन्मुक्त हास, रंगरेली देख रहा हूँ ।।

लहरें भी तो तट तक आकर, लौट-लौट जाती हैं।
मिलने और बिछड़ने का क्रम हमको समझाती हैं।
इसी सत्य में लिपटी एक पहेली देख रहा हूँ।।

-बृज राज किशोर 'राहगीर'

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#KAVYOTSAV -2
ग़ज़ल
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मुक़द्दर मुख़्तलिफ़ सबके, बनाए हैं ख़ुदा तूने।
न जाने गुल यहाँ क्या क्या, खिलाए हैं ख़ुदा तूने।

किसी पर पेट भरने की, इनायत भी न फ़रमाई;
कहीं अम्बार दौलत के, लगाए हैं ख़ुदा तूने।

किसी इन्सान की ख़सलत, बनाई बेईमानी की;
किसी को रास्ते अच्छे, दिखाए हैं ख़ुदा तूने।

कहीं उपजाऊ मिट्टी में, फ़सल पैदा न हो पाई;
कहीं चट्टान में पौधे, उगाए हैं ख़ुदा तूने।

कभी रोशन मशालें भी, हवाओं में नहीं टिकती;
दिए 'बृजराज' आँधी में, जलाए हैं ख़ुदा तूने।

--बृज राज किशोर 'राहगीर'
FT-10, ईशा अपार्टमेंट, रूड़की रोड, मेरठ-250001

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#KAVYOTSAV -2
ग़ज़ल
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ज़िन्दगी में हादसों ने भी सिखाया है बहुत।
ठोकरों ने सिलसिला आगे बढ़ाया है बहुत।

दुश्मनों ने दुश्मनी की, तो गिला कैसे करूँ;
वक़्त पर तो दोस्तों ने भी रूलाया है बहुत।

हम जिन्हें अपना समझते थे, यक़ीनी तौर पर;
जब जरूरत थी उन्हीं ने दिल दुखाया है बहुत।

जीतने की ही जिसे, आदत रही हो उम्र भर;
इक ज़रा सी हार से वो तिलमिलाया है बहुत।

हुस्न भी है आजकल, सय्याद के तेवर लिए;
देखकर घायल मुझे वो मुस्कुराया है बहुत।

तख़्त पर जिसको बिठाया, वो अमीरों का हुआ;
बन ग़रीबों का सभी ने वोट पाया है बहुत।

बस यही 'बृजराज' को है, वक्ते-रूखसत का सुकूं;
दौलत-ए-ईमान को हमने कमाया है बहुत।

--बृज राज किशोर 'राहगीर'

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#KAVYOTSAV -2
असलियत को बयान करता एक गीत
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है चमत्कार को नमस्कार
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बिन श्रम के जल्दी से जल्दी, सब कुछ पा जाने का विचार।
अब किसे चाहिए धर्म-कर्म, है चमत्कार को नमस्कार।

अनपढ़ हों चाहे पढ़े-लिखे, हैं एक चक्र में फँसे हुए।
लालच के गहरे दलदल में, घुटनों-घुटनों तक धँसे हुए।
बस यही मानसिकता सबको, भटकाती रहती द्वार-द्वार।
अब किसे चाहिए धर्म-कर्म, है चमत्कार को नमस्कार।

अय्याशी का जीवन जीकर, जो ख़ुद को साधू कहलाते।
किस तरह भला इन लोगों के, लाखों अनुयायी बन जाते।
आँखों वालों की दुनिया में, अंधों से बढ़कर अंधकार।
अब किसे चाहिए धर्म-कर्म, है चमत्कार को नमस्कार।

भगवान नहीं, उसके बन्दों का, देखो तो वैभव-विलास।
अरबों-ख़रबों के महलों में, रहता बाबाओं का निवास।
कैसे स्वीकार किया जाता, इन लोगों को धर्मावतार।
अब किसे चाहिए धर्म-कर्म, है चमत्कार को नमस्कार।

जब दुष्ट आचरण वालों के, सत्ता भी चरण दबाती है।
तब अंध-आस्था की चक्की में, जनता पिस ही जाती है।
थानों में दबकर रह जाती है, पीड़ित लोगों की पुकार।
अब किसे चाहिए धर्म-कर्म, है चमत्कार को नमस्कार।

--बृज राज किशोर 'राहगीर'
ईशा अपार्टमेंट, रूड़की रोड, मेरठ-250001
(पचास वर्षों से लेखनरत वरिष्ठ कवि)

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#KAVYOTSAV -2
कविता
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बेटी
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घर में आकर मात-पिता की, क़िस्मत चमकाती है बेटी।
आँगन में ख़ुशियाँ भर जातीं, जब जब मुस्काती है बेटी।
बिटियाओं को बोझ समझने वालों को यह बतला दूँ मैं;
अपने हिस्से की धन-दौलत, साथ लिए आती है बेटी।

अगर न बिटिया होगी, कैसे राखी का त्यौहार मनेगा।
कैसे बेटों की कलाई पर, प्यार पगा धागा चमकेगा।
बस बेटों की चाहत रखने वालों, बेटी होने से ही;
भाई-दूज के दिन बेटों के माथे पर शुभ तिलक लगेगा।

तेरी बेटी दुल्हन बनकर, किसी और के घर जाएगी।
किसी और की बेटी, तेरे घर दुल्हन बनकर आएगी।
यही सृष्टि का नियम, इसी से जीवन-चक्र चला करता है;
बिटियाओं का जन्म रोकने से, दुनिया ही रूक जाएगी।

बेटी का भी स्वागत करिए, जैसे बेटों का करते हो।
क्यों बेटी के आ जाने की, आशंका भर से डरते हो।
बेटी की महिमा को अब मैं, इससे ज़्यादा क्या बतलाऊँ;
मोक्ष नहीं मिल पायेगा, यदि कन्यादान बिना मरते हो।

--बृज राज किशोर 'राहगीर'
पता: ईशा अपार्टमेंट, रूड़की रोड, मेरठ (उ.प्र.)

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#KAVYOTSAV -2
नवगीत
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नए नए सपने
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घर की ड्योढ़ी लाँघ रहे हैं
नए नए सपने।

यौवन ने जबसे जीवन का
द्वार खटखटाया
ख़ुशियों का सागर पैरों पर
चलकर घर आया
अनदेखे अनजाने मुखड़े
लगते हैं अपने।

जाने कैसे कोई प्यारा
लगने लगता है
एक अनोखा सा आकर्षण
जगने लगता है
चौबीसों घंटे मन उसका
नाम लगे जपने।

जैसे भी हो, उसको अपना
कर लेने की धुन
जग से उसे चुरा, बाँहों में
भर लेने की धुन
मन के कोरे पन्नों पर कुछ
चित्र लगे छपने।

प्रेम डगर का पथिक अन्ततः
होगा रोगी ही
घर वालों पर बात एक दिन
ज़ाहिर होगी ही
घर का वातावरण लगेगा
उसी समय तपने।

--बृज राज किशोर 'राहगीर'

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#KAVYOTSAV -2
कविता
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घर किसी का मत उजाड़ो
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वृक्ष जो काटा गया, थे पंछियों के घर वहाँ।
घोंसले अपने हटा लें, ये न था अवसर वहाँ।
कुछ परिन्दों के घरौंदे और अंडे गिर पड़े;
घर उजड़ने की व्यथा का, था अजब मंज़र वहाँ।

चीख़ते रह गए पंछी, पर किसे परवाह थी।
लक्ष्य पाने की सफलता में खुशी हमराह थी।
वृक्ष वह काटा गया था, घर बनाने के लिए;
किन्तु उसमें पंछियों का दर्द, आँसू, आह थी।

इस तरह इक घर बनेगा, आह की बुनियाद पर।
पंछियों की चीख़, आँसू, बेबसी, फ़रियाद पर।
कोई शायद ही हमारी बात पर चिन्तन करे;
क्या खुशी टिक पाएगी, घर में दबे अवसाद पर।

घर किसी का मत उजाड़ो, घर बनाने के लिए।
बाँटनी होगी खुशी ही, खुशी पाने के लिए।
एक काटा जाये तो दस पेड़ लगने चाहियें;
दोस्तों, यह सीख है सारे ज़माने के लिए।

--बृज राज किशोर 'राहगीर'

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#KAVYOTSAV -2
गीत
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आज तुमने हाथ में मेहंदी रचाई।
दे रही है गीत की आहट सुनाई।।

रूप ने श्रृंगार के आयुध निकाले,
और मन के दुर्ग पर दृष्टि गड़ा ली।
बाण वर्षा की गई ऐसी नयन से,
एक पल में ढह गई रक्षा-प्रणाली।
आज तुमने आँख कुछ ऐसे मिलाई।
दे रही है गीत की आहट सुनाई।।

प्रेम के भण्डार-गृह की स्वामिनी तुम,
ख़र्च करती हो मगर बेहद सँभलकर।
यह बहुत ही कम हुआ है, जब मिली हो
तुम हया की मांद से बाहर निकलकर।
आज पायल इस अदा से छनछनाई।
दे रही है गीत की आहट सुनाई।।

सात फेरों से घिरी प्राचीर में मन,
सात जन्मों के लिए बन्दी बना है।
माँग के सिन्दूर की भी बेड़ियाँ हैं,
मुक्त होने की कहाँ सम्भावना है।
आज तुम भुजपाश की ज़ंजीर लाई।
दे रही है गीत की आहट सुनाई।।

भावनाओं की तरंगें हैं ह्रदय में,
किस तरह पर गीत में रूपान्तरण हो।
हैं तुम्हारे पास कुछ ऐसी कलाएँ,
गीत का ख़ुद लेखनी में अवतरण हो।
आज जादू की छड़ी ऐसे घुमाई।
दे रही है गीत की आहट सुनाई।।


--बृज राज किशोर 'राहगीर'

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