#KAVYOTSAV -2
कविता
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घर किसी का मत उजाड़ो
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वृक्ष जो काटा गया, थे पंछियों के घर वहाँ।
घोंसले अपने हटा लें, ये न था अवसर वहाँ।
कुछ परिन्दों के घरौंदे और अंडे गिर पड़े;
घर उजड़ने की व्यथा का, था अजब मंज़र वहाँ।
चीख़ते रह गए पंछी, पर किसे परवाह थी।
लक्ष्य पाने की सफलता में खुशी हमराह थी।
वृक्ष वह काटा गया था, घर बनाने के लिए;
किन्तु उसमें पंछियों का दर्द, आँसू, आह थी।
इस तरह इक घर बनेगा, आह की बुनियाद पर।
पंछियों की चीख़, आँसू, बेबसी, फ़रियाद पर।
कोई शायद ही हमारी बात पर चिन्तन करे;
क्या खुशी टिक पाएगी, घर में दबे अवसाद पर।
घर किसी का मत उजाड़ो, घर बनाने के लिए।
बाँटनी होगी खुशी ही, खुशी पाने के लिए।
एक काटा जाये तो दस पेड़ लगने चाहियें;
दोस्तों, यह सीख है सारे ज़माने के लिए।
--बृज राज किशोर 'राहगीर'