#KAVYOTSAV -2
असलियत को बयान करता एक गीत
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है चमत्कार को नमस्कार
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बिन श्रम के जल्दी से जल्दी, सब कुछ पा जाने का विचार।
अब किसे चाहिए धर्म-कर्म, है चमत्कार को नमस्कार।
अनपढ़ हों चाहे पढ़े-लिखे, हैं एक चक्र में फँसे हुए।
लालच के गहरे दलदल में, घुटनों-घुटनों तक धँसे हुए।
बस यही मानसिकता सबको, भटकाती रहती द्वार-द्वार।
अब किसे चाहिए धर्म-कर्म, है चमत्कार को नमस्कार।
अय्याशी का जीवन जीकर, जो ख़ुद को साधू कहलाते।
किस तरह भला इन लोगों के, लाखों अनुयायी बन जाते।
आँखों वालों की दुनिया में, अंधों से बढ़कर अंधकार।
अब किसे चाहिए धर्म-कर्म, है चमत्कार को नमस्कार।
भगवान नहीं, उसके बन्दों का, देखो तो वैभव-विलास।
अरबों-ख़रबों के महलों में, रहता बाबाओं का निवास।
कैसे स्वीकार किया जाता, इन लोगों को धर्मावतार।
अब किसे चाहिए धर्म-कर्म, है चमत्कार को नमस्कार।
जब दुष्ट आचरण वालों के, सत्ता भी चरण दबाती है।
तब अंध-आस्था की चक्की में, जनता पिस ही जाती है।
थानों में दबकर रह जाती है, पीड़ित लोगों की पुकार।
अब किसे चाहिए धर्म-कर्म, है चमत्कार को नमस्कार।
--बृज राज किशोर 'राहगीर'
ईशा अपार्टमेंट, रूड़की रोड, मेरठ-250001
(पचास वर्षों से लेखनरत वरिष्ठ कवि)