#KAVYOTSAV -2
नवगीत
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नए नए सपने
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घर की ड्योढ़ी लाँघ रहे हैं
नए नए सपने।
यौवन ने जबसे जीवन का
द्वार खटखटाया
ख़ुशियों का सागर पैरों पर
चलकर घर आया
अनदेखे अनजाने मुखड़े
लगते हैं अपने।
जाने कैसे कोई प्यारा
लगने लगता है
एक अनोखा सा आकर्षण
जगने लगता है
चौबीसों घंटे मन उसका
नाम लगे जपने।
जैसे भी हो, उसको अपना
कर लेने की धुन
जग से उसे चुरा, बाँहों में
भर लेने की धुन
मन के कोरे पन्नों पर कुछ
चित्र लगे छपने।
प्रेम डगर का पथिक अन्ततः
होगा रोगी ही
घर वालों पर बात एक दिन
ज़ाहिर होगी ही
घर का वातावरण लगेगा
उसी समय तपने।
--बृज राज किशोर 'राहगीर'