#KAVYOTSAV -2
कविता
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बेटी
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घर में आकर मात-पिता की, क़िस्मत चमकाती है बेटी।
आँगन में ख़ुशियाँ भर जातीं, जब जब मुस्काती है बेटी।
बिटियाओं को बोझ समझने वालों को यह बतला दूँ मैं;
अपने हिस्से की धन-दौलत, साथ लिए आती है बेटी।
अगर न बिटिया होगी, कैसे राखी का त्यौहार मनेगा।
कैसे बेटों की कलाई पर, प्यार पगा धागा चमकेगा।
बस बेटों की चाहत रखने वालों, बेटी होने से ही;
भाई-दूज के दिन बेटों के माथे पर शुभ तिलक लगेगा।
तेरी बेटी दुल्हन बनकर, किसी और के घर जाएगी।
किसी और की बेटी, तेरे घर दुल्हन बनकर आएगी।
यही सृष्टि का नियम, इसी से जीवन-चक्र चला करता है;
बिटियाओं का जन्म रोकने से, दुनिया ही रूक जाएगी।
बेटी का भी स्वागत करिए, जैसे बेटों का करते हो।
क्यों बेटी के आ जाने की, आशंका भर से डरते हो।
बेटी की महिमा को अब मैं, इससे ज़्यादा क्या बतलाऊँ;
मोक्ष नहीं मिल पायेगा, यदि कन्यादान बिना मरते हो।
--बृज राज किशोर 'राहगीर'
पता: ईशा अपार्टमेंट, रूड़की रोड, मेरठ (उ.प्र.)