#KAVYOTSAV -2
ग़ज़ल
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ज़िन्दगी में हादसों ने भी सिखाया है बहुत।
ठोकरों ने सिलसिला आगे बढ़ाया है बहुत।
दुश्मनों ने दुश्मनी की, तो गिला कैसे करूँ;
वक़्त पर तो दोस्तों ने भी रूलाया है बहुत।
हम जिन्हें अपना समझते थे, यक़ीनी तौर पर;
जब जरूरत थी उन्हीं ने दिल दुखाया है बहुत।
जीतने की ही जिसे, आदत रही हो उम्र भर;
इक ज़रा सी हार से वो तिलमिलाया है बहुत।
हुस्न भी है आजकल, सय्याद के तेवर लिए;
देखकर घायल मुझे वो मुस्कुराया है बहुत।
तख़्त पर जिसको बिठाया, वो अमीरों का हुआ;
बन ग़रीबों का सभी ने वोट पाया है बहुत।
बस यही 'बृजराज' को है, वक्ते-रूखसत का सुकूं;
दौलत-ए-ईमान को हमने कमाया है बहुत।
--बृज राज किशोर 'राहगीर'