#KAVYOTSAV -2
ग़ज़ल
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मुक़द्दर मुख़्तलिफ़ सबके, बनाए हैं ख़ुदा तूने।
न जाने गुल यहाँ क्या क्या, खिलाए हैं ख़ुदा तूने।
किसी पर पेट भरने की, इनायत भी न फ़रमाई;
कहीं अम्बार दौलत के, लगाए हैं ख़ुदा तूने।
किसी इन्सान की ख़सलत, बनाई बेईमानी की;
किसी को रास्ते अच्छे, दिखाए हैं ख़ुदा तूने।
कहीं उपजाऊ मिट्टी में, फ़सल पैदा न हो पाई;
कहीं चट्टान में पौधे, उगाए हैं ख़ुदा तूने।
कभी रोशन मशालें भी, हवाओं में नहीं टिकती;
दिए 'बृजराज' आँधी में, जलाए हैं ख़ुदा तूने।
--बृज राज किशोर 'राहगीर'
FT-10, ईशा अपार्टमेंट, रूड़की रोड, मेरठ-250001