#KAVYOTSAV -2
गीत
---
आज तुमने हाथ में मेहंदी रचाई।
दे रही है गीत की आहट सुनाई।।
रूप ने श्रृंगार के आयुध निकाले,
और मन के दुर्ग पर दृष्टि गड़ा ली।
बाण वर्षा की गई ऐसी नयन से,
एक पल में ढह गई रक्षा-प्रणाली।
आज तुमने आँख कुछ ऐसे मिलाई।
दे रही है गीत की आहट सुनाई।।
प्रेम के भण्डार-गृह की स्वामिनी तुम,
ख़र्च करती हो मगर बेहद सँभलकर।
यह बहुत ही कम हुआ है, जब मिली हो
तुम हया की मांद से बाहर निकलकर।
आज पायल इस अदा से छनछनाई।
दे रही है गीत की आहट सुनाई।।
सात फेरों से घिरी प्राचीर में मन,
सात जन्मों के लिए बन्दी बना है।
माँग के सिन्दूर की भी बेड़ियाँ हैं,
मुक्त होने की कहाँ सम्भावना है।
आज तुम भुजपाश की ज़ंजीर लाई।
दे रही है गीत की आहट सुनाई।।
भावनाओं की तरंगें हैं ह्रदय में,
किस तरह पर गीत में रूपान्तरण हो।
हैं तुम्हारे पास कुछ ऐसी कलाएँ,
गीत का ख़ुद लेखनी में अवतरण हो।
आज जादू की छड़ी ऐसे घुमाई।
दे रही है गीत की आहट सुनाई।।
--बृज राज किशोर 'राहगीर'