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Ashish Singh

Ashish Singh

@ashishdharmendr5919


पुलिस को समर्पित गीत

है सबसे करबद्ध निवेदन,वर्दी का सम्मान करो।
राष्ट सुरक्षित है वर्दी से,इस पर तुम अभिमान करो।।
गर्व करो इन बेचारों पर,जो दिन भर धूप में जलते है।
जाड़ा गर्मी बारिष से,कभी नही जो डरते है।।
नुक्कड़ गली और सीमाओं से,इसके कदम न डिगते है।
रहे सुरक्षित बच्चा-बच्चा,ये कर्तव्य निभाते है।।
कर न सको सम्मान कभी तो,
इसका मत अपमान करो।
है सबसे करबद्ध निवेदन,वर्दी का सम्मान करो।।
पूरी निष्ठा से तत्पर है,जिम्मेदारी जो इस पर है।
छोड़ घरों को जो बेघर है,रहने को टूटी बैरक है।।
12 से 24 घण्टे तक,ड्यूटी करने में शाश्वत है।
पड़ जाओ खतरे में कभी तो,112 तुम तत्काल करो।।
कर न सको सम्मान कभी तो,इसका मत अपमान करो।
है सबसे करबद्ध निवेदन,वर्दी का सम्मान करो।।
होली ईद दीवाली इनकी,सडकों पर हो जाती है।
करवा चौथ के व्रत को पत्नी फ़ोटो देख मनाती है।।
गांव में मां बाप बृद्ध जो, उनकी याद सताती है।
पापा की यादों में अक्सर,बच्चियां रो कर सो जाती है।।
इनको भी यादें आती है,आँखें छुपकर रो जाती है।
दूर रहे यह बरषों घर से,कुछ तो इनका ध्यान करो।।
कर न सको सम्मान कभी तो,इसका मत अपमान करो।
है सबसे करबद्ध निवेदन,वर्दी का सम्मन करो।।
गांवों और शहर में देखो,यह अपराध मिटाते है।
सीमाओं पर दुश्मन को भी,ये उल्टा लटकाते है।।
लगते है आरोप भी इस पर,यह सब कुछ सह जाते है।
फर्ज निभाते है निष्ठा से,कभी नही घबराते है।।
दंगा और इमरजेंसी में,चोटे भी खा जाते है।
रहे सुरक्षित राष्ट्र हमारा,ये शहीद हो जाते है।।
इसकी कुर्बानी को समझो,हर पल इसको प्यार करो।
है सबसे करबद्ध निवेदन,वर्दी का सम्मान करो
जय हिंद
आशीष सिंह

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"कहाँ खत्म,होता है कुछ"
बाबा की डॉट,बाबा की फटकार
बाबा का दुलार,
अपने नन्हें हाँथों से पकड़ता था
"बाबा की मूँछ"
"कहाँ खत्म,होता है कुछ"
वो कंधे पे बैठ के मेले में जाना,
उन कँपते हाँथों से जलेबी खिलाना!
वो खेतों में झुककर के हल को चलाना!!
मेरे लिए कर रहे जो परिश्रम,
शायद कभी न चुका पाऊँ ये कर!!
मिले वक़्त तो इनके हालों को पूँछ
"कहाँ खत्म,होता है कुछ"
-आशीष सिंह

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"जिंदगी हम तेरे मजदूर है"
फिर भी खुशी से"चूर"है,
दिल मे बहुत ही"आस"है!
अपने लक्ष्य की"तलाश"है!!
मोड़ हो कोई यहाँ पर,
हर डगर"आसान"है!
सुबह है या"शाम"है,
धूप है या"छाँव"है!!
"चलने में हम"मशहूर है"
"जिंदगी हम तेरे मजदूर है"
बाँटते है"प्यार"और खुशिया,
अपनों से मिलने को तरसती
हैं "अँखियाँ"
याद आती है बहुत मां बाप बूढ़ी
"बच्चियां"
आँख में आंसुओं का"रिसाव"है,
आज हम बच्चों से अपने"दूर"है!!
"जिंदगी हम तेरे मजदूर है"
न तो हम मजबूर है, न ही"बेकसूर"है!
हम बहा करके पसीना,हरते सबकी"पीर"है!!
लेकर के औरों के बोझा,इसमें मज़ा
"भरपूर" है!!
"जिंदगी हम तेरे मजदूर है"
-आशीष सिंह

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"महसूस होता है"
तेरी गोदी में छुप कर"बैठ"जाना!
तेरे ममता भरे आंचल में अपना"मुंह"छुपाना!!
वो तेरा हाथ में लेकर मुझे"गोदी"खिलाना!
मुझे फिर प्यार से"लोरी"सुनाना!!
लगा कर सीने से अपने वो"तेरा"खिलखिलाना!
वो तेरा थपकिंयाँ देकर सुलाना!!
" महसूस होता है"
मैं मां के कान दोनों"हाँथ"से खींचूं!
मैं मां के बाल अपने"हाथ"से नोंचूं!!
कभी पल्लू से उनके"आंख"को मीचूं!
मेरी हरकत तेरा मुस्कुराना,
" महसूस होता है"
तेरी गोदी में छुप कर बैठ जाना!!
मेरे हर एक आँसूँ को"पिरोया"अपनी आंखों में!
मैं जब भी दर्द से रोया"सहम"कर देखा आंखों में!!
मेरे हर दर्द ममता का वो"मरहम"लगाना!
"महशुस होता है"
तेरी गोदी में छुप कर बैठ जाना!!
--आशीष सिंह

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प्यार मेरा है कोई कहानी नहीं
धड़कनों पे लिखा है जुबानी नहीं
हाथ थामा था तुमने मेरा एक दिन
कसमे खाई थी वादे किए थे बहुत
तुम बदल तो रही मौसमों की तरह
बनके आंसू तू मुझ पे बरसती रहे
मेरा तन तर बतर हो गया भीग कर
इन हवाओं ने मन में तो डर भर दिया
तेरे अश्कों में कुछ बात तो खास है
कहीं इनका तो रंग आसमानी नहीं
धड़कनों पे लिखा है जुबानी नहीं
रेत पर नाम लिखते मिटाते रहे
दिल के जख्मों को ऐसे सजाते रहे
याद आई तो हम खुद से रोये बहुत
अपने दिल को हम ऐसे मनाते रहे
तेरी तस्वीर दिल में बसी है मेरे
और इसके सिवा कुछ निशानी नहीं
धड़कनों से लिखा है जुबानी नहीं
तुमने मुझसे कहा था बिछड़ा जाएंगे
तेरी किस्मत के पन्ने पलट जाएंगे
चाहकर हम कभी भी न मिल पाएंगे
है सजाना मुझे घर किसी और का
तेरी दुनिया से हम दूर हो जाएंगे
था नशा प्यार का मुझ पे छाया हुआ
फिर भी हमने तेरी बात मानी नहीं
धड़कनों पर लिखा है जुबानी नहीं
आशीष सिंह

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याद आई तो तेरी,नयन भर गए
हो के मुझसे खफा,तुम कहाँ चल दिये
लौट कर आइए,दिल परेशान है
इस परेशानी का,कुछ तो हल दीजिये
सामने आ के कह,दीजिये बेहिचक
जो भी शिकवे गिले,हैं सुना दीजिये
छोर चुनरी का यूं,हाँथ से खींच कर
उंगलियों को न यूं,होंठ पर फेरिये
चूड़ियों की खनक का,इशारा है ये
हाँथ सुने हैं मेहंदी,लगा दीजिये
लौट कर आइये,दिल परेशान है
इस परेशानी का,कुछ तो हल दीजिये
तुम खफा हो तो,मेरी खता बोलिये
जो खता है मेरी,तो दफा बोलिये
अपनी पलकों से,आँखों को खोलो जरा
देखिये देखिये मैं,खड़ा हूँ यहाँ
अपनी जुल्फों को,ऐसे न झटकों यहां
माँग सुनी है इसको,भरा लीजिये
लौट कर आइये,दिल परेशान है
इस परेशानी का, कुछ तो हल दीजिय
आशीष सिंह

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"कोरोना काल"
"प्रचण्ड चंड ज्वाल है!!
धरा पे जो सवाल है,विश्व भी"बेहाल"है!
मन बहुत अचेत है,कोई नही"सचेत"है!!
समय की यह लपेट है,कोरोना की"चपेट"है!
अनजान समझ कर के,मुझसे कर रहा"आखेट"है!!
निर्बल समझ कर मेरा,बनना चाहता वो"काल"है!
"प्रचण्ड चंड ज्वाल है!!
यह राम कृष्ण की धरा,नही चलेगा"बस"तेरा!
अनन्त कोटि देवताओं,ने यहाँ"जीवन"धरा!!
रुका नही झुका नही,अड़ा रहा"डिगा"नही!
यहाँ की है परंपरा वीरों की है"यह"उरबरा!!
भौतिक तापों से यहाँ,रक्षक स्वयं"महाकाल"है!
"प्रचण्ड चंड ज्वाल है!!
विज्ञान भी अभिशाप है,मानव का भी"उपवाश"है!
फिर भी नही परवाह है,न ही कोई"बदलाव"है!!
महामारी का प्रभाव है,सोशलडिस्टेनसिंग का"अभाव"है!
पूरे विश्व मे तनाव है, यहाँ मृतु भी अकाल है!!
"प्रचण्ड चंड ज्वाल है!!
युवा ये मन मे ठान कर,महाकाल का फिर"जप"कर!
जीवन की ईर्ष्या त्याग कर,पुलिस पर"अभिमान"कर!!
डॉक्टर नर्स सफाई कर्मी, कोरोना वीरों का सम्मान"कर!
घर मे रहें यह मान कर,जीवन का हर पल"दान"कर!!
गर ढिग गया मेरा कदम,जीना भी अब"मोहाल"है!
भारतीय योद्धाओं का झुकना,देश का"अपमान"है!!
झुकना नही रुकना नही,चलना मुझे हर"हाल"है!
हम काल के कालों के वंशज,के गले के"ब्याल"है
"प्रचण्ड चंड ज्वाल है!!
आशीष सिंह
लखनऊ उत्तर प्रदेश

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"जाना है ससुराल"
छोड़कर बाबुल का अँगना,
मां की गोदी का वो पलना!
जाना है ससुराल,
ये कैसा ब्यवहार
छूटा मां का प्यार
जाना है ससुराल
पापा की मैं बहुत दुलारी, मां की बगिया की फुलवारी!!
छूट गईं वो सखियाँ सारी,
बचपन की दो तीन थी न्यारी!
मतलब का संसार,
ये कैसा ब्यवहार
छूटा मां का प्यार
जाना है ससुराल
छूट गया सब खेल खिलौना,
भाई बहन से लड़ना झगड़ना
मां के आँचल में फिर छुपना!!
मां को सब स्वीकार,
मां का है उपकार
छूटा मां का प्यार
जाना है ससुराल
पापा ने जो लाड़ लड़ाया,
मेरे हर सपने को सजाया
देख दुःखी मुझको मुरझाया
मेरी खुशी पे वो मुस्काया
आज उसी के घर से मुझको
जाना है पिय के द्वार
ये कैसा ब्यवहार
छूटा मां का प्यार
जाना है ससुराल
आशीष सिंह

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"पिता एक अनपढा उपन्यास"
पिता बच्चों की कहानियों का"अभ्यास"है! पिता बच्चों के जीवन का अनपढा"उपन्यास"है!!
पिता उंगली पकड़कर"चलना"है!
पिता बच्चों के झूले का"पलना"है!!
पिता बच्चों की दर्द में "सिसकना"है!
पिता के बिना बच्चों का हर ख्वाब"सूना"है!!
पिता बच्चों के दुखों में सुख का"अहसास"है!
पिता बच्चों की कहानियों का"अभ्यास"है!!
पिता से होली है दिवाली है ईद है"रमजान"है!
पिता अपने नन्हें बच्चों की आत्मा और"प्राण"है!!
पिता से ही मां का सिंदूर और सुहाग पर"अभिमान"है!
पिता अनपढ़ होकर भी बच्चों का संपूर्ण"ज्ञान"है!
पिता बच्चों की सफलता का सबसे बड़ा"प्रयास"है!!
पिता बच्चों की कहानियों का"अभ्यास"है!
पिता त्याग है समर्पण है अनुराग है बच्चों में"प्रतिफल राग"है!!
पिता है तो मां की गवाही का"प्रमाण"है!
पिता से ही बच्चों की सृष्टि का"निर्माण"है!!
पिता से ही जीवन में"प्रकाश"है!
पिता अपने बच्चों की परिधि का"व्यास "है!!
पिता बच्चों की कहानियों का"अभ्यास"है!
पिता संस्कार है"सभ्यता"है!!
पिता से जीवन में"भव्यता"है!
पिता आधार है अनुशासन है जीवन का"महत्व"है!!
पिता से ही परिवार का"अस्तित्व"है!
पिता बच्चों का सार्थक"प्रयास"है!!
पिता से ही बच्चों का संपूर्ण"इतिहास"है!
पिता बच्चों की कहानियों का"अभ्यास"है!!
पिता बच्चों के जीवन का अनपढ़ा"उपन्यास"है!!
आशीष सिंह

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#चेहरा
मेरी नजरों को चेहर श्याम का गहना है
इनकी साँसों में समां जाउँ यही सपना है