"कहाँ खत्म,होता है कुछ"
बाबा की डॉट,बाबा की फटकार
बाबा का दुलार,
अपने नन्हें हाँथों से पकड़ता था
"बाबा की मूँछ"
"कहाँ खत्म,होता है कुछ"
वो कंधे पे बैठ के मेले में जाना,
उन कँपते हाँथों से जलेबी खिलाना!
वो खेतों में झुककर के हल को चलाना!!
मेरे लिए कर रहे जो परिश्रम,
शायद कभी न चुका पाऊँ ये कर!!
मिले वक़्त तो इनके हालों को पूँछ
"कहाँ खत्म,होता है कुछ"
-आशीष सिंह