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दोस्ती एक मन से दूसरे मन के बीच का संवाद जब स्वेच्छा से स्वीकृत होता है मुस्कुराहट में — तभी वह ले लेता है उपमा दोस्ती की। हम सब इसी उपमा में पिरोए जाते हैं, ठीक वैसे ही जैसे मोतियों और रेशों से बनती है कोई माला — नाज़ुक, पर पूर्ण। कितनी सुंदर बात है — कि आखिर, सबसे आखिर में जब सब छूट जाता है, सब गिर जाता है, सब थक जाता है, तब भी बचाए जाने का सबसे सरल, सबसे सच्चा मार्ग बचा रहता और वो दोस्ती है।
खाली पेट —————————— एकाकी, खाली पेट, निर्वात की तरह, निचोड़ लेता है समस्त पीड़ा का सार। वहाँ कोई क्रांति नहीं होती, न कोई युद्ध लड़ा जाता है, न कलम चलती है पन्नों पर, न प्रार्थनाओं के लिए हाथ उठते हैं। उस पल, करने को, होने को सभी क्रियाएँ नील बट्टा सन्नाटा, सिर्फ़ एक निर्वाक कक्ष को छोड़, जहाँ विचारों की गति दो कौर अन्न के इर्द-गिर्द गोल-गोल घूमती है। आश्चर्य देखो— अनंत आकाश के नीचे, समस्त सभ्यता का गणित आख़िरकार एक रोटी के समीकरण पर आकर रुक जाता है। @कुनु
१ सीलन पड़ी दीवार पर मृत्यु नहीं पसारती पूरा शरीर, वहाँ वह कई-कई स्वांग रचती है — कभी भूख, कभी बारिश, कभी तीखी धूप, तो कभी फटते बादल। २ जो ज़िंदा हैं वे सब कुछ करते हैं सिवाय जीने के, और जो मर चुके हैं, उन्हें हर सप्ताह वोटर लिस्ट में फिर से दर्ज किया जाता है। ३ मैंने देखा है बूढ़े लोग डरते नहीं मरने से। वे बस धीरे-धीरे सुनना बंद कर देते हैं कि कौन अब भी उन्हें पुकारता है। ४ मुझे डर मृत्यु से नहीं, उसके बाद की अचानक आई शांति से लगता जहाँ कोई नहीं पूछता, कि "अब कैसा लग रहा है?" ५ इतने-इतने व्यापक तरीकों के बावजूद, जब मृत्यु के सौदागर नहीं कैद कर पाते देह, तब वे भरने लगते हैं पोटली में तरह-तरह के भ्रम। उनमें से — “ईश्वर की लीला” आज भी सबसे कारगर हथियार है। ६ ईश्वर, मृत्यु के ठीक बाद पहला झूठ है जो बोला नहीं गया, बस चुप्पियों में लपेटकर परोसा गया। ७ और अब जब मैं सब कुछ जान चुका हूँ, कह चुका हूँ तो सुनो मनुष्यों, सुनो गिद्धों — मेरे मरने के तुरंत बाद नोच खाना हर उस बेनाम फफूंदी को जो किसी ईश्वर की कृपा बताकर उग रही हो मेरे देह पर, मेरे विचार पर और मेरी कविताओं पर। @कुनु
मुड़ कर जब भी मैनें तुम्हें देखा तो देख नहीं पाया तुम्हारी चंचलता तुम्हारे होंठ तुम्हारे बाल तुम्हारी सुंदरता मैनें देखा तो केवल तुम्हारा जुनून तुम्हारे घाव तुम्हारी उड़ान शायद इसलिए मुझ तक पहुँच हि नहीं पाया आकर्षण और चुपके से प्रेम कर गया आलिंगन ताकि ' मैं ' कह सकूँ ग़ज़ल नग्में तुम्हारे संघर्ष पे ।
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