गाली
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शोषण की बहुत-सी विधाएँ हो सकती हैं,
पर लिपि सदियों से एक
तालू।
हमें जब भी कहना था
स्त्री को स्त्री,
हमने उसे कहा देवी,
फिर रखैल, बाँझ और राँड।
हमें जब-जब करना था सवाल,
हमने ओढ़ी मौन—
कभी देह पर,
कभी विचार पर,
और कभी मन पर।
हमने भाषा बनाई नहीं,
केवल उसका बलात्कार किया।
और अब जब भाषा ने मुँह मोड़ लिया,
तो हमने निर्लज्जतापूर्वक जंघा पर अपनी
कोड़ी के भाव में वर्णमाला खरोंचने लगे।
गाली पुरुषों द्वारा स्त्री का
दोहरा बलात्कार है।
@कुनु