भूख
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१)
सरकार ने उसे वोट बैंक कहा,
निवेशकों ने बाज़ार।
आम आदमी ने कहा पेट।
कवियों ने उसे कहा
मार्मिक कविता।
और स्त्री ने कहा —
पुरुष के दिल तक जाने का मार्ग।
और जिसने कुछ कहने की जगह
सिर्फ़ हाथ जोड़कर नमन किया
भूख उसी की हो गई।
२)
भूख जब भी
अपनी रीढ़ की हड्डी सीधी की,
क्रांति दो-दो रुपये के
खुल्ले छुट्टों की तरह
सड़कों पर गरकती मिली।
३)
अरबपतियों ने कई दफ़ा
धन-दौलत बहा दिए,
पर वह आई सिर्फ़ उनके हिस्से
जिनके पेट में पली थी
एक शाम की सूखी रोटी
और हज़ार ख़्वाब।
४)
देह के लिए वह हुई सिर्फ़ देह,
पेट के लिए — क़यामत की आग।
और जहाँ नहीं पहुँच सकीं
देह, आग या लटकती लार की उपमाएँ —
वहाँ वह एक पुल बन गई,
जिससे होकर पार हुईं
ख़्वाब देखती आँखें।
५)
भरे पेट से अपने महल में बैठकर
भूख पर लिखना
एक बढ़िया व्यवसाय हो सकता है
लेकिन भूखे रहकर
भूख को जीना
सही मायने में
भूख पर लिखी
सबसे सटीक कविता है।
@कुनु