दोस्ती
एक मन से दूसरे मन के बीच का संवाद
जब स्वेच्छा से स्वीकृत होता है
मुस्कुराहट में —
तभी वह ले लेता है उपमा दोस्ती की।
हम सब इसी उपमा में पिरोए जाते हैं,
ठीक वैसे ही
जैसे मोतियों और रेशों से बनती है कोई माला —
नाज़ुक, पर पूर्ण।
कितनी सुंदर बात है —
कि आखिर,
सबसे आखिर में
जब सब छूट जाता है,
सब गिर जाता है,
सब थक जाता है,
तब भी बचाए जाने का
सबसे सरल, सबसे सच्चा मार्ग
बचा रहता
और वो दोस्ती है।