Hindi Quote in Poem by kunal kumar

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यकायक नहीं,
एकदम दबे पाँव
धीरे-धीरे मृत्यु सरक गई मेरे देह से।
फिर सबकुछ अपनी-अपनी जगह लौट गया:
पहले पसलियाँ, फिर मांस,
और फिर तो पूरी की पूरी चमड़ी भी

सिर्फ़ एक चीज़ लौटना भूल गई
आवाज़।
शब्द अपनी जगह नहीं पहुँचे,
और भाषा वहीं अटकी रह गई
मौन में।
उसी पल मैंने
घुटन की पहली सबसे सच्ची झलक देखी।

जीवन अक्सर लौटता है
अपने उसी वक़्त में
जहाँ उसकी पहली बनावट हुई थी।
और इसी वापसी में
हम थोपने लगते हैं
कुछ झूठी अफ़वाहें।
मोक्ष — उसी अफ़वाह का
सिर्फ़ एक क्षणभर की कल्पना है।

सबसे आसान दिनों में ही
सबसे भयानक दृश्य सामने होते हैं;
घुटन बस उनकी कोख में छिपी रहती है
जब तक स्मृति
अपनी चाल न चल दे।


मैंने रस निचोड़ा,
रूपक खंगाले,
पर लिख नहीं पाया
अप्रत्याशित घुटन का
कोई भी पर्याय।

और अब,
जब विचार सूखते जा रहे हैं
सिगरेट के जले निकोटीन में
घुटन मुझे साफ़ दिखाई देती है।
वह अपराधबोध की कोई आकृति नहीं;
वह एक जीती-जागती सच्चाई है
कि एक आदमी
कितनी शांत तरीके से
कूड़ा बन सकता है।
@कुनु

Hindi Poem by kunal kumar : 112006860
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