उल्टी
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बचपन में,
जब मछली खाते हुए
गले में काँटा अटक जाता था,
तो मैं मुंह में ऊँगली डाल
उलटी करने की कोशिश करता
ताकि काँटा अपनी जगह से
फिसल कर बाहर आ जाए।
आज,
ठीक उसी तरह
जब मौन गले में फँस गया है,
मैं वही पुरानी ऊँगली
अपनी ही भाषा में डालकर
उसे बाहर खींचने की
एक अनगढ़ कोशिश कर रहा हूँ।
रूपकों और उपमाओं से
भींगी हुई मेरी कविता
दरअसल कोई सौंदर्य नहीं—
ये केवल
एक अपचय मौन की उल्टी है।
@कुनु