Rooh se Rooh tak - 16 in Hindi Love Stories by IMoni books and stories PDF | रूह से रूह तक - चैप्टर 16

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रूह से रूह तक - चैप्टर 16

जुहू बीच की ओर जाते वक्त सबका मूड बहत मस्ती भरा था। इनाया और बिहानी अपनी बाइक पर हवा से बातें कर रही थीं, हँसी-मज़ाक करते हुए जा रही थीं। वहीं अर्निका शांति से बाइक चलाते हुए अपने सफर का मजा ले रही थी।

दूसरी तरफ, कार में युगांश ड्राइव कर रहा था और दर्शित उसके बगल में बैठा था। पीछे त्रिवान बैठा था। पिसे दूसरी कार में बाकी दोस्तों अरही थी ।

रास्ते में त्रिवान ने मजाक करते हुए कहा,
"दर्शित, आज तो इनाया ने तुझे अच्छे से सुना दिया!"

दर्शित बोला,
"पता नहीं यार, उसे मुझसे क्या दिक्कत है... पहली मुलाकात से ही जैसे मुझसे नाराज़ है।"

युगांश ने मुस्कराते हुए कहा,
"तू उसे जितनी बार देखता है, वोह उतनी बाद खफा हो जाती है तूने उसके साथ कुछ किया है किया यह बोला दोनों हंस ने लगे !"

दर्शित ने हल्की सी आँखें तरेरते हुए कहा,
"बहुत बोलने लगा है तू! और वैसे भी, मैं उसे बस दो बार ही मिला हूं!"

त्रिवान हँसते हुए बोला,
"जो भी हो, लड़की काफी अट्रैक्टिव है... साथ ही खूबसूरत भी!"


थोड़ी देर बाद सब जुहू बीच पहुंच गए। वहां ठंडी-ठंडी हवा चल रही थी और सूरज धीरे-धीरे ढलने को था। चारों तरफ एक शांति और खूबसूरती फैली हुई थी।

सबने अपनी गाड़ियां पार्क कीं और समुद्र की तरफ बढ़ने लगे।

जूते-चप्पल उतारकर सबने रेत पर नंगे पांव चलना शुरू किया। इनाया सबसे पहले दौड़ते हुए बोली,
"मैं सबसे पहले पानी में जाऊंगी!"

बिहानी हँसते हुए उसके पीछे भागी,
"अरे पागल! रुको, कपड़े भीग जाएंगे!"

अर्निका भी मुस्कुराते हुए उनके पीछे चलने लगी, और बाकी लड़के भी धीरे-धीरे उनके साथ हो लिए।

इनाया और बिहानी लहरों के पास पहुंचकर बच्चों की तरह खेलने लगीं। पानी की हल्की लहरें उनके पैरों को छू रही थीं और दोनों ज़ोर-ज़ोर से हँस रही थीं।

उन्हें ऐसे देख अंशुल और युवराज भी मस्ती में उनके पास आ गए।

अर्निका थोड़ी शांत थी। वो धीरे-धीरे चलते हुए लहरों के पास पहुंची और वहीं खड़े होकर अपने दोस्तों को निहारने लगी। सबको हँसते-खेलते देख उसके चेहरे पर भी एक प्यारी सी मुस्कान आ गई।


दूसरी तरफ दर्शित थोड़ी दूरी पर जाकर रुक गया और सबको मुस्कुराते हुए देखने लगा। उसकी नजर बार-बार अनजाने में इनाया पर जा रही थी, जो लहरों के साथ खेलते हुए अपने बाल झटक रही थी।

तभी युगांश उसके पास आया और हल्के से बोला,
"भाई, मान ले… कुछ तो खास है उसमें। वरना तू यूं बार-बार उसे न देखता।"

दर्शित हल्की मुस्कान के साथ बोला,
"पता नहीं यार… कुछ तो है जो मुझे उसकी तरफ खींचता है, पर मैं खुद भी ठीक से नहीं समझ पा रहा।"

तभी पीछे से त्रिवान की आवाज आई,
"तुम लोग यहां देखने आए हो या एन्जॉय करने? चलो पानी में चलते हैं!"

उसकी बात सुनकर सभी लड़के भी बाकी दोस्तों के साथ पानी में मस्ती करने लग गए। अर्निका भी उनके पास आकर लहरों के साथ खेलने लगी।

इसी बीच अर्निका की नजर थोड़ी दूर बैठे चार छोटे बच्चों पर पड़ी। वे कुछ खाने का सामान बेच रहे थे और उनमें से एक लड़का और एक प्यारी लड़की बीच की तरफ देख रही थीं, जैसे उनका भी मन था खेलने का।

वो बच्चों से पास आने वाले लोगों से खाना खरीदने को कह रही थीं, लेकिन कोई नहीं रुक रहा था—शायद क्योंकि उनके कपड़े पुराने थे और वो गरीब दिख रहे थे।

अर्निका का दिल भर आया, और वो पानी से बाहर आकर उन बच्चों की तरफ बढ़ने लगी।


अर्निका धीरे-धीरे उन बच्चों की तरफ बढ़ी। रेत पर नंगे पैर चलते हुए वो बिना रुके उनके पास पहुंच गई। सामने चार बच्चे बैठे थे—सबकी उम्र अलग-अलग, कपड़े पुराने और धूप में रंग उड़े हुए, लेकिन आंखों में एक उम्मीद अब भी जिंदा थी।

दो छोटी बच्चियां अब भी बीच पर खेलते लोगों को देख रही थीं, जैसे उनके मन में भी खेलने की ख्वाहिश हो। वो कभी-कभी आने-जाने वालों से इशारों में कुछ कहतीं, लेकिन लोग उन्हें नजरअंदाज करके निकल जाते।

अर्निका उनके सामने बैठ गई और मुस्कुराते हुए बोली,
"क्या है ये? क्या बेच रहे हो तुम लोग?"

एक बच्ची जो उम्र में उन तीनो से बड़ी थी वो थोड़ी झिझक के साथ बोला,
"दीदी… मूंगफली और मुरमुरे हैं। बहुत टेस्टी हैं। प्लीज ले लो ना, सुबह से कुछ भी नहीं बिका।"

अर्निका ने मुस्कुराते हुए अपना पर्स निकाला और कहा,
"चार पैकेट दो, और हां… सबसे टेस्टी वाला देना!"

बच्चों की आंखों में एक चमक आ गई। उन्होंने फटाफट अपने छोटे थैले से मुरमुरे के पैकेट निकालकर उसे दे दिए।

"थैंक यू दीदी…" मासूमियत से मुस्कुराते हुए सबने एक साथ कहा।

अर्निका मुस्कुरा कर बच्चों की तरफ देखी और प्यार से पूछा,
"तुम लोग यहां अकेले हो? मम्मी-पापा कहां हैं?"

सबसे बड़ी बच्ची ने हल्की उदासी के साथ जवाब दिया,
"दीदी, हमारी मां दूसरों के घर में काम करती थीं, लेकिन अब वो बीमार हैं। और हमारे पापा… वो तीन साल पहले गुजर गए।"

ये सुनते ही अर्निका थोड़ी भावुक हो गई। उसने सबसे छोटी बच्ची को गोद में उठाया और प्यार से पूछा,
"तुम स्कूल नहीं जाती?"

बच्ची ने तोतली आवाज में कहा,
"नहीं।"

अर्निका ने फिर बड़ी बच्ची की ओर देखा और पूछा,
"क्यों? क्या तुम लोगों को पढ़ाई करना अच्छा नहीं लगता?"

बड़ी बच्ची ने उदासी से सिर झुकाते हुए जवाब दिया,
"पहले जब पापा थे, तब हम स्कूल जाते थे। लेकिन उनके जाने के बाद सब बदल गया। मम्मी जो कमाती हैं, उससे सिर्फ खाने का इंतजाम हो पाता है। इसलिए हमने एक छोटा सा स्टॉल लगाया, ताकि मम्मी की मदद कर सकें। लेकिन ज़्यादा लोग हमसे कुछ खरीदते नहीं हैं। मेरी छोटी बहन कुसुम और भाई को पढ़ना बहुत पसंद है।"

अर्निका ने फिर पूछा,
"और तुम्हें?"

बड़ी बच्ची की आंखें भर आईं,
"दीदी, मुझे भी पढ़ना अच्छा लगता है। सपना था कुछ बनूं… पर अब बस जिम्मेदारियाँ हैं।"

अर्निका की आंखें भी नम हो गईं। उसने प्यार से पूछा,
"अगर तुम्हें मौका मिले, तो क्या पढ़ाई करोगी?"

बच्ची बोली,
"दीदी, हमारी किस्मत में नहीं है ये सब। अभी तो मम्मी की दवाइयों के लिए भी पैसे पूरे नहीं पड़ते।"

अर्निका ने गंभीरता से पूछा,
"तुम लोग रहते कहां हो?"

बीच की बच्ची ने जवाब दिया,
"थोड़ी दूर बस्ती में।"

फिर अर्निका ने गोद में बैठी बच्ची जिसका नाम शुभी था उसे पूछा,
"तुम्हें पढ़ाई करनी है?"

बच्ची ने मुस्कुराते हुए तोतली आवाज में कहा,
"हाँ!"

अर्निका ने उसे कसकर गले लगाया और बोली,
"तो बस, अब से तुम चारों स्कूल जाओगे। तुम्हारी पढ़ाई की सारी जिम्मेदारी मेरी है। अब तुम्हें ये सामान बेचने की जरूरत नहीं है।"

तभी पीछे से आवाज आई,
"और तुम्हारी मम्मी का इलाज अच्छे हॉस्पिटल में होगा। हम सब संभाल लेंगे।"

आवाज़ सुनकर अर्निका और बच्चे पीछे मुड़े—दर्शित, युगांश, इनाया और बाकी सभी दोस्त वहां खड़े मुस्कुरा रहे थे।

इनाया पास आकर छोटे लड़के को अपने पास बैठाकर बोली,
"क्या नाम है तुम्हारा?"

वो बोला,
"मेरा नाम अनुज है… लेकिन सब मुझे छोटू बुलाते हैं।"

इनाया हँसकर बोली,
"नाम तो बहुत प्यारा है।"

फिर उसने बाकी लड़कियों की तरफ देखा,
"और तुम्हारा नाम?"

बड़ी बच्ची बोली,
"मेरा नाम शालू है।"
दूसरी बोली,
"मैं कुसुम हूं।"

अर्निका ने गोद में बैठी बच्ची से पूछा,
"और तुम्हारा नाम?"

बच्ची तोतली आवाज में बोली,
"तुभी..."
शालू ने मुस्कुरा कर बताया,
"दीदी, यह बोल रही है इसका नाम शुभी है, लेकिन हम सब इसे 'गुड़्डी' कहते हैं।"

दर्शित आगे बढ़ा, शुभी को गोद में उठाया और प्यार से बोला,
"बहुत प्यारा नाम है तुम्हारा… और तुम भी बहुत प्यारी हो।"
फिर उसने उसके गाल पर एक हल्की सी किस की।

शुभी ने अपनी छोटी-सी हथेली से अपना गाल सहलाया और भोली सी आंखों से सबको देखने लगी। उसकी मासूमियत देख कर सबके चेहरे पर मुस्कान आ गई।


दर्शित ने शुभी के गाल को हल्के से सहलाते हुए मुस्कुरा कर कहा,
"गुड़्डी, अब से मैं तुम्हारा बड़ा भाई हूं, ठीक है? कोई भी बात हो तो मुझसे कहना, बिल्कुल भी डरना मत।"

शालू, कुसुम, अनुज और शुभी की आंखों में अब एक नई चमक थी—जैसे किसी ने उनके अधूरे सपनों को फिर से जिन्दा कर दिया हो।

इनाया ने उन्हें पास बिठाकर कहा,
"अब से हम सब तुम्हारे बड़े भाई-बहन हैं। तुम्हारी स्कूल की सारी ज़रूरतें—किताबें, यूनिफॉर्म—सबका इंतज़ाम होगा। और अगर कभी किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो खुलकर बताना।"

तभी अर्निका ने पूछा,
"तुम लोगों ने कुछ खाया है?"

कुसुम ने धीरे से सिर हिलाया,
"नहीं दीदी, आज किसी ने कुछ खरीदा नहीं... तो हमारे पास खाने के लिए भी पैसे नहीं हैं।"

इनाया ने सबकी तरफ देखा और मुस्कुराकर बोली,
"कोई बात नहीं, चलो अब हम सब मिलकर कुछ अच्छा खाते हैं।"

सभी ने खुशी से हामी भरी और बच्चे भी उनके साथ चल पड़े।
तभी शालू थोड़ी झिझकते हुए बोली,
"दीदी, हम आपके साथ नहीं जा सकते… अगर हम चले गए तो..."
वो अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाई थी कि अर्निका ने उसका माथा प्यार से छूते हुए कहा,
"तुम्हें किसी बात की फिक्र करने की ज़रूरत नहीं है… बस हमारे साथ चलो।"

कुछ देर बाद सभी एक रेस्टोरेंट में बैठे थे। बच्चे भी साथ में थे। हालांकि वहाँ मौजूद कुछ लोग उन्हें अजीब निगाहों से देख रहे थे, लेकिन दर्शित, युगांश, पिसे, इनाया और बाकी सभी ने उन नजरों की परवाह नहीं की।

वे हँसते हुए बच्चों से बातें कर रहे थे।
अर्निका की गोद में शुभी बैठी थी और अपनी तोतली आवाज में कुछ-कुछ बोल रही थी, जिससे सबका दिल खुश हो रहा था।
उसकी मासूम बातों पर अर्निका मुस्कुरा रही थी और सब उसे बड़े ध्यान से सुन रहे थे।


कुछ देर बाद रेस्टोरेंट में सभी का खाना आ गया। बच्चों ने खाने की थाली देखकर खुशी से मुस्कुराया, क्योंकि उन्होंने इससे पहले कभी ऐसा खाना नहीं खाया था। फिर सबने मिलकर खाना शुरू किया।

अर्निका ने शुभी को अपने पास बिठाकर प्यार से कहा,
"खाओ बेटा, अब तुम्हें किसी बात की चिंता करने की जरूरत नहीं है। हर दिन अच्छा खाना मिलेगा, ताकि तुम बड़ा होकर कुछ अच्छा कर सको।"

शुभी ने मुस्कुराते हुए अपनी तोतली आवाज में कहा,
"दीदी, मुझे बड़ा होकर डॉक्टर बनना है... ताकि मैं अपनी मम्मी को ठीक कर सकूं।"

अर्निका की आंखों में हल्की नमी आ गई, लेकिन उसने मुस्कुरा कर कहा,
"तुम ज़रूर डॉक्टर बनोगी, गुड्डी।"

इसी बीच शालू और कुसुम भी खाना खाने लगीं। इनाया ने शालू से पूछा,
"तुम क्या बनना चाहती हो?"

शालू ने मुस्कुराते हुए कहा,
"जब हम स्कूल जाते थे, तब मैं सोचती थी कि एक दिन अपनी खुद की कपड़ों की दुकान खोलूंगी और उसने खुद की बनाई गई कपरे रखूंगी ।"

इनाया ने कहा,
"वाह! तो तुम फैशन डिज़ाइनर बनना चाहती हो!"

फिर उसने कुसुम और अनुज की तरफ देखा,
"और तुम दोनों को क्या बनना है?"

कुसुम ने धीरे से कहा,
"मुझे पढ़-लिखकर किसी अच्छी कंपनी में नौकरी करनी है, ताकि हमारे घर में कभी किसी को भूखा न रहना पड़े।"

अनुज यानी छोटू ने शरमाते हुए कहा,
"मुझे अभी नहीं पता दीदी, लेकिन कुछ अच्छा करना है।"

इनाया को कुसुम की बात सुनकर अर्निका की याद आ गई, क्योंकि अर्निका भी बचपन से शांत और समझदार थी, जैसे कुसुम है।

फिर सभी बच्चों के साथ हँसी-मज़ाक करते हुए खाना खाने लगे।
त्रिवान ने मुस्कुरा कर कहा,
"देखो ना, अगर इन्हें सही रास्ता मिले तो ये बच्चे बहुत आगे जा सकते हैं।"

दर्शित ने सबको देखते हुए कहा,
"हाँ, अगर हम इनके लिए थोड़ा भी कुछ कर पाएं, तो ये अपनी ज़िंदगी खुद संवार सकते हैं। छोटे-छोटे कदम इन्हें उनके सपनों तक ले जाएंगे।"

हर किसी के चेहरे पर संतोष और उम्मीद की झलक थी

अर्निका ने फिर से गुड्डी को गोद में उठाया और उसके बालों को प्यार से सहलाते हुए कहा,
"तुम अपने सपनों को ज़रूर पूरा करना, क्योंकि कभी-कभी एक छोटा सा कदम किसी की पूरी ज़िंदगी बदल सकता है।"

दूर समंदर में सूरज धीरे-धीरे डूब रहा था, मानो उस पल की ख़ूबसूरती को महसूस कर रहा हो। बच्चों की मासूम मुस्कान और उनके भीतर जगी नई उम्मीद ने सबका दिल छू लिया था। ऐसा लग रहा था जैसे सबकी ज़िंदगी में एक नई शुरुआत हो रही है।

खाना खाने के बाद सब बाहर आ गए। इनाया ने बच्चों की तरफ देखकर कहा,
"चलो, अब तुम्हारे लिए थोड़ा सामान खरीदते हैं।"

उसने अपना कार्ड निकाल कर अंशुल को दिया और बोली,
"तुम कुछ ज़रूरी ग्रोसरी ले आओ, हम मॉल से इन बच्चों के लिए कपड़े लेते हैं।"

दर्शित ने कहा,
"अंशुल, तुम मॉल में बच्चों के साथ जाओ, हम बाकी का सामान ले आते हैं।"
यह कहकर वो युगांश के साथ दूसरी तरफ चले गए।

कुछ देर बाद, सबके हाथों में सामान था। फिर वे उन बच्चों के घर की ओर बढ़े। घर बहुत ही साधारण था—सिर्फ एक कमरा, जिसमें चारों बच्चे और उनकी मां रहते थे। आसपास के कुछ लोग उन्हें आते देख थोड़ा हैरान हुए और बच्चों की तरफ चिंता भरी नज़रों से देखने लगे, जैसे पूछ रहे हों—"क्या किया इन बच्चों ने?"

जब वे उस छोटे से घर में पहुंचे, तो देखा, उनकी मां बिस्तर पर लेटी हुई थीं। उन्हें देखकर वो उठने लगीं।
शालू फौरन उनके पास गई और बोली,
"मां, आप क्यों उठ रही हो?"

उनकी मां ने थोड़ी घबराहट के साथ पूछा,
"ये लोग कौन हैं? यहां क्यों आए हैं? तुम लोगों ने कोई गलती तो नहीं की?"


अर्निका दरवाज़े पर खड़ी बच्चों को देख रही थी। फिर उसने मुस्कुराते हुए धीरे से कहा,
"नहीं आंटी, इन बच्चों ने कुछ गलत नहीं किया। हम यहां आपकी मदद करने आए हैं। आज से आपको किसी भी चीज़ की कमी नहीं होगी। और इन बच्चों की पढ़ाई की जिम्मेदारी मेरी होगी।"

उसी समय अंशुल ने ग्रो़सरी का थैला एक तरफ रखा और बोला,
"ये सारा सामान आपके लिए है, ताकि आपको कोई दिक्कत ना हो।"

बच्चों ने एक-दूसरे की ओर देखा, जैसे यकीन ही ना हो रहा हो।
शालू ने आंखों में चमक और हल्की मुस्कान के साथ कहा,
"दीदी, आप लोग हमारे लिए इतना कुछ कर रहे हो...हमें तो लग ही नहीं रहा कि ये सब सच है!"

तभी दर्शित और युगांश भी पास आ गए। युगांश ने कहा,
"हम सब तुम्हारे साथ हैं। मेहनत करो, तुम जो चाहो वो बन सकते हो।"

अर्निका ने गुड्डी को प्यार से गोद में उठाया और कहा,
"देखो गुड्डी, ये नए कपड़े और चीज़ें तुम्हारे लिए हैं। अब तुम्हें किसी भी चीज़ की चिंता करने की ज़रूरत नहीं है।"

बच्चों की आंखों में आंसू आ गए, लेकिन इस बार वो आंसू खुशी के थे। उन्हें पहली बार लग रहा था कि कोई उनका अपना है।
शालू ने हाथ जोड़ते हुए कहा,
"दीदी, हम फिर से स्कूल जाएंगे, और इस बार बहुत मेहनत करेंगे। ये हमारा वादा है।"

इनाया ने बच्चों को देख कर प्यार से कहा,
"अपने सपनों को पूरा करो… हम हमेशा तुम्हारे साथ हैं।"


बच्चों के चेहरे अब उम्मीद और भरोसे से चमक रहे थे। उनकी आंखों में वो सपना था, जो अब सच हो सकता था।

अर्निका ने मुस्कुराते हुए कहा,
"अब तुम्हारे पास सब कुछ है एक अच्छी ज़िंदगी शुरू करने के लिए। बस मेहनत करते रहना… हम हमेशा तुम्हारे साथ हैं।"

ये सुनते ही बच्चों ने एक साथ कहा,
"धन्यवाद दीदी, हम खूब मेहनत करेंगे। आप लोग हमारे लिए भगवान जैसे हो।"

बच्चों की मां ने भी हाथ जोड़ते हुए कहा,
"आप सब हमारे लिए फरिश्ता बनकर आए हो। कभी सोचा नहीं था कि हमारे बच्चों के लिए कोई इतना कुछ करेगा।"

इनाया ने मुस्कुराते हुए कहा,
"आंटी, ऐसे मत कहिए… हमें खुशी है कि हम मदद कर पा रहे हैं।"

तभी दर्शित आगे आया और बोला,
"आंटी, थोड़ी देर में एंबुलेंस आ जाएगी। आपको अच्छे हॉस्पिटल में भर्ती किया जाएगा, और आपका इलाज बिल्कुल फ्री होगा। मैंने अपने भाई से बात की है, वो आपके लिए एक अच्छा घर और जॉब की भी व्यवस्था करेंगे।"

फिर दर्शित ने अर्निका की ओर देखकर कहा,
"और बच्चों की पढ़ाई का इंतज़ाम भी भाई करवा देंगे इसकी चिंता मत करो।"

अर्निका ने हल्की सी मुस्कान के साथ कहा,
"नहीं दर्शित, बच्चों की पढ़ाई का ज़िम्मा मेरा है। बस इनके रहने के लिए एक अच्छा घर और आंटी के लिए जॉब का इंतज़ाम कर दो। और हां, मुझे एक मदद और चाहिए… मैं यहां नई हूं, इसलिए अच्छे स्कूल के बारे में नहीं जानती। एक अच्छा स्कूल धुंध ने में मदत कर देना ।"

दर्शित ने सिर हिलाते हुए कहा,
"तुम बिल्कुल चिंता मत करो, इन बच्चों का एडमिशन शहर के बेस्ट स्कूल में होगा।"

तभी बाहर से एंबुलेंस की आवाज़ आई। सब एक साथ बाहर देखने लगे… एक नई शुरुआत की ओर पहला कदम बढ़ चुका था।


जैसे ही सब बाहर आए, उन्होंने देखा कि एम्बुलेंस घर के सामने आकर रुक चुकी थी। दो नर्स और दो वार्ड बॉय स्ट्रेचर लेकर उतर चुके थे। दर्शित ने तुरंत जाकर उन्हें सब समझाया।

इनाया ने आंटी का हाथ थामते हुए कहा,
"आंटी, अब सब ठीक हो जाएगा। बस आप मजबूत रहिएगा।"

अर्निका ने बच्चों को संभाला और शुभी को गोद में लेकर बोली,
"गुड़िया, मम्मी जल्दी ठीक होकर वापस आएंगी, ठीक है?"

आंटी को धीरे से स्ट्रेचर पर लिटाया गया। जब उन्हें एम्बुलेंस की ओर ले जाया जा रहा था, तो उन्होंने एक बार पीछे मुड़कर अपने बच्चों को देखा। उनकी आंखों में आंसू थे, मगर इस बार डर नहीं—सिर्फ उम्मीद और भरोसा था।

युगांश ने अनुज के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा,
"अब जब भाई बने हैं, तो हर जिम्मेदारी निभाएंगे। तुम्हारी मम्मी भी ठीक होंगी और तुम सब स्कूल भी जाओगे।"

कुछ ही पलों में एम्बुलेंस वहां से निकल गई।

वो पल शांत था, लेकिन उस शांति में सुकून था।

तभी दर्शित ने अर्निका की तरफ देखा और बोला,
"तुम लोग अब घर जाओ, रात के 8 बज चुके हैं। मैं और युगांश हॉस्पिटल के बाकी काम देख लेंगे।"

अंशुल ने भी कहा,
"हां, तुम तीनों बेफिक्र रहो, अब हम सब संभाल लेंगे।"


अर्निका हल्की मुस्कान के साथ बोली,
"ठीक है, अब हम चलते हैं। लेकिन जल्दी ही वापस आकर तुम सबसे मिलेंगे।"
फिर उसने दर्शित की ओर देखा और कहा,
"बच्चों की एडमिशन तुम करवा दोगे ना?"
दर्शित ने सिर हिलाकर जवाब दिया,
"हां, बिलकुल।"

इसके बाद तीनों लड़कियों ने बच्चों को अलविदा कहा और घर के लिए निकल गईं।

उनके जाने के बाद, दर्शित, युगांश और अंशुल ने बच्चों को समझाया कि अब उन्हें घबराने की कोई जरूरत नहीं है और फिर वे भी हॉस्पिटल के लिए निकल गए।

कुछ देर बाद अस्पताल में बच्चों की मां का इलाज शुरू हो चुका था। युगांश डॉक्टर से बात कर रहा था और दर्शित ज़रूरी फॉर्म भर रहा था।

जब सारे काम पूरे हो गए, तो बाहर निकलते वक्त दर्शित ने युगांश की ओर देखते हुए कहा,
"कभी सोचा नहीं था कि ऐसे किसी की ज़िंदगी में इतने खास बन जाएंगे, जिनसे हमारी कभी कोई जान-पहचान ही नहीं थी।"

युगांश मुस्कराया और बोला,
"कुछ चीज़ें प्लान नहीं होती, बस अपने आप हो जाती हैं। शायद यही असली इंसानियत होती है।"


तभी दर्शित ने युगांश से कहा,
"अगर अर्निका हमारी ज़िंदगी में ना होती, तो शायद हम कभी ये सब करने के बारे में सोचते भी नहीं। मेरे भाई हमेशा लोगों की मदद करते हैं, लेकिन मैंने कभी उसमें दिलचस्पी नहीं ली। आज समझ में आया कि किसी और की मदद करके भी दिल को कितनी खुशी मिलती है।"

युगांश मुस्कराया और बोला,
"सही कहा यार। अब बहुत देर हो गई है, चलो घर चलते हैं।"
दर्शित ने भी सिर हिलाया, हॉस्पिटल से निकल के अपनी कार लेकर घर की ओर निकल गया।

उधर अपार्टमेंट में, इनाया और बिहानी फ्रेश होकर हॉल में बैठी बातें कर रही थीं। आज बिहानी भी उनके साथ आई थी।

अर्निका अपने रूम में मां से फोन पर बात कर रही थी। कुछ देर बाद जब बातचीत खत्म हुई, तो वो भी हॉल में आकर लड़कियों के साथ बैठ गई और बातें करने लगी।

वहीं दूसरी ओर, राठौड़ विला में, सभी लोग हॉल में बैठकर बातें कर रहे थे। तभी फ्रेश होकर प्रिंस नीचे आया और सबके साथ बैठ गया। उसने देखा कि दर्शित नहीं है, तो अपनी मां से पूछा,
"अभी तक छोटा नहीं आया?"

दादी ने गुस्से में कहा,
"नहीं आया अब तक! पता नहीं कहां घूम रहा है, ये लड़का तो बिल्कुल नालायक हो गया है।"

तभी दरवाजे से अंदर आते हुए दर्शित ने मुस्कुराते हुए कहा,
"अच्छा दादी, मैं नालायक हूं? अब से कोई जानकारी चाहिए होगी तो बताना मत!"
सब हंस पड़े।

पापा ने पूछा,
"इतनी देर कहां लगा दी बेटा?"

दर्शित बोला,
"कहानी डिनर टेबल पर सुनाऊंगा, अभी अगर फ्रेश नहीं हुआ तो खाने मिस हो जाएंगे 
इतना कहकर वो हंसते हुए अपने रूम की तरफ भाग गया।











आगे किया होगा जानने के लिये मेरी कहानी रूह से रूह तक पढ़ते रहिए 

अगर कहीं कोई गलती हो गई हो, तो मुझे माफ कर दीजिएगा।

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