यह कहानी पूरी तरह से एक काल्पनिक रचना है, जिसका किसी भी जाति, धर्म, समुदाय या किसी वास्तविक घटना से कोई संबंध नहीं है। यह केवल मेरे मनोभावों और कल्पनाओं पर आधारित है। इसका उद्देश्य किसी की भावनाओं को आहत करना या किसी भी प्रकार का विवाद उत्पन्न करना नहीं है। यदि लिखते समय मुझसे कोई त्रुटि हुई हो, कोई शब्द या प्रसंग अनुचित लगा हो, तो कृपया इसे अनजाने में हुई भूल समझकर क्षमा करें। आपके विचारों और भावनाओं का मैं पूर्ण सम्मान करता हूँ।
बनारस के एक पॉश इलाके में स्थित भव्य हवेली में सुबह का शुभारंभ हो चुका था। मंदिर की घंटियों की मधुर ध्वनि और "ॐ जय जगदीश हरे" के भजन से पूरा माहौल आध्यात्मिक ऊर्जा से भर गया था। आंगन में जलते दीपकों की हल्की रोशनी और अगरबत्ती की खुशबू पूरे घर में शांति और सकारात्मकता घोल रही थी। गंगा तट से आती ठंडी हवाएँ और घाटों से गूंजते मंत्रोच्चारण इस सुबह को और भी दिव्य बना रहे थे।
घर के सभी सदस्य अपने-अपने कामों में व्यस्त हो चुके थे, लेकिन हमारी नायिका अब भी गहरी नींद में थी। उधर, दादी ने अपनी पूजा समाप्त की और पहले घर के बड़े-बुजुर्गों को आरती दी, फिर रसोई में जाकर बहुओं और नौकरों को आशीर्वाद दिया। इसके बाद, वे आरती की थाल मंदिर में रखने जा रही थीं कि तभी एक लड़की उनके पास आकर खड़ी हो गई।
उसने आदरपूर्वक झुककर दादी के चरण स्पर्श किए और मुस्कुराते हुए बोली, "गुड मॉर्निंग, दादी!"
दादी के चेहरे पर स्नेह झलक आया। उन्होंने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा।
तभी उसके पीछे एक जवान लड़का भी आया और झुककर दादी के पैर छूते हुए बोला, "गुड मॉर्निंग, दादी!"
दादी हल्का सा मुस्कुराईं, "अरे वाह! आज संडे के दिन भी सूरज उगने से पहले ही तुम दोनों जाग गए?"
लड़की ने शरारती अंदाज में आँखें मटकाईं, "जी दादी, सोचा आज आपको जल्दी दर्शन दे दें!"
लड़के ने हँसते हुए कहा, "वरना आप यही सोचती होंगी कि हम बस सोने और खाने के लिए ही घर आते हैं!"
दादी उनकी नटखट बातें सुनकर हंस दीं। "चलो, अब जल्दी से दादाजी और बाकी लोगों का आशीर्वाद ले लो।"
दादी की बात सुनकर दोनों ने "ठीक है!" कहा और वहां से आगे बढ़ गए, जबकि दादी अपनी पूजा की थाली मंदिर में रखने चली गईं।
जैसे ही दोनों हॉल में पहुंचे, उन्हें दादाजी की गंभीर आवाज सुनाई दी—
"बनारस सिर्फ एक शहर नहीं, एक धरोहर है, और इस हवेली की जिम्मेदारी भी उसी धरोहर की तरह निभानी होगी।"
दोनों ने एक-दूसरे की ओर देखा, फिर लड़की ने धीरे से कहा, "लगता है, आज भी वही पुराना लेक्चर शुरू हो गया!"
लड़के ने फुसफुसाकर जवाब दिया, "चलो, जल्दी से अभिवादन करके नाश्ते की टेबल पर चलते हैं, वरना आधा घंटा इतिहास सुनना पड़ेगा!"
फिर दोनों ने मुस्कुराते हुए सबको ‘गुड मॉर्निंग’ कहा और बड़ों के चरण स्पर्श किए।
जब दादाजी के कानों में "गुड मॉर्निंग, दादाजी!" सुनाई दिया, तो उन्होंने अख़बार से नजर उठाई और हल्की मुस्कान के साथ बोले, "अच्छा हुआ, तुम दोनों उठ गए। अब बताओ, आज का क्या प्लान है?"
लड़की ने झट से जवाब दिया, "दादाजी, आज हम गुड़िया घाट पर घूमने जाएंगे, चाट खाएंगे, और फिर शाम को नाव की सैर करेंगे!"
लड़के ने सिर हिलाते हुए जोड़ा, "हाँ, और तीन दिन बाद ये चली जाएगी, इसलिए सोचा, थोड़ा वक्त साथ बिता लें। वैसे, आप चिंता मत कीजिए, अगर समय मिला तो मैं अपना काम भी कर लूंगा, ताकि आप नाराज़ न हों!"
उनकी बातें सुनकर दादाजी हल्का मुस्कुराए और बोले, "वो तो जाने वाली है, तो घर की रौनक भी फीकी पड़ जाएगी... लेकिन अपने सपनों को पूरा करने के लिए उसे जाना तो पड़ेगा, है ना?"
फिर उन्होंने इधर-उधर देखा और पूछा, "वैसे, वो है कहां? अभी तक उठी नहीं?"
तभी दादी की आवाज आई, "राजकुमारी का उठने का समय अभी हुआ ही कहां है!"
तभी सीढ़ियों से हल्की पदचाप सुनाई दी, और एक उनींदी आवाज़ आई, "दादी, आप हमेशा मेरी बुराई ही करती रहती हैं!"
सभी ने पीछे मुड़कर देखा तो सफेद कुर्ता-पायजामा पहने एक लड़की उनींदी आँखों से धीरे-धीरे नीचे उतर रही थी। उसके लंबे, हल्के बिखरे बाल और चेहरे पर नींद की हल्की झलक अब भी मौजूद थी।
"गुड मॉर्निंग, दादाजी!" उसने धीरे से कहा और पास जाकर उनके पैर छू लिए। फिर बड़े पापा का आशीर्वाद लेने के बाद, अपने पापा के पास जाकर उनके बगल में बैठी और फिर से उनकी बाहों में सिर रखकर सो गई।
यह देखकर दादी मुस्कुरा दीं और तंज कसते हुए बोलीं, "लो, हमारी राजकुमारी जाग गई! लेकिन फिर से अपने पापा की गोद में आकर सो गई!"
उसकी ये आदत देखकर उसके पापा हल्का मुस्कुराए और प्यार से उसके माथे पर हाथ फेरा। फिर बोले, "अरे उठ जा, फ्रेश होकर नाश्ता कर ले! फिर अपनी रानी-महारानी वाली व्यस्त दिनचर्या शुरू करना!"
लड़की ने एक आँख खोलकर दादी की तरफ देखा और मुँह बनाते हुए कहा,
"अरे दादी, इतना भी मत चिढ़ाइए! वैसे भी, कुछ दिनों में तो मैं चली जाऊंगी।"
दादी ने थोड़ी उदासी में सांस भरी और कहा,
"हाँ बेटा, लेकिन इस हवेली और बनारस की यादें हमेशा तुम्हारे साथ रहेंगी। जहाँ भी रहो, अपने घर और जड़ों से जुड़े रहना, अपने संस्कार मत भूलना, वरना तुम्हारे बिना यह घर सुनसान हो जाएगा।"
यह सुनकर लड़की उठकर दादी के पास गई और प्यार से उनका हाथ पकड़ा,
"आप चिंता मत करिए, मैं रोज वीडियो कॉल करूंगी और आपको सब कुछ बताऊंगी!"
बीच में ही लड़के ने कूदते हुए कहा,
"हाँ दादी, और अगर वो भूल गई तो मैं आपको अपडेट देता रहूंगा!"
दादी ने सिर हिलाते हुए कहा,
"अच्छा-अच्छा, अब बातें बंद करो और तुम जाओ। पहले फ्रेश होकर आओ, नाश्ता लगने वाला है—नहीं तो नाश्ता ठंडा मिल जाएगा।"
तभी किसी से एक आवाज आई,
"मां जी, नाश्ता तैयार है, सभी आगे आएं, तो तबले पर लगा दूँ क्या?"
अंदर से आते ही वो लड़की भागकर अपने कमरे में चली गई, और जाते-जाते सभी को सुनाई दिया,
"मैं 10 मिनट में तैयार होकर आ रही हूँ।"
यह सुनकर सब हंस पड़े, पर इस हंसी-मजाक के बीच एक हल्की उदासी भी थी—क्योंकि इस घर की लाड़ली बेटी तीन दिन बाद दूर जाने वाली थी, और सबको उसके बिना इस हवेली की खामोशी सोचकर ही बेचैनी हो रही थी।
तो आइए, अब जानते हैं कि हम किसकी बात कर रहे हैं—यानि, हमारी कहानी की मुख्य नायिका के बारे में।
अर्निका त्रिपाठी—18 साल की, खूबसूरत ही नहीं, बल्कि अपने अलग अंदाज के लिए भी जानी जाती थी। उसकी नीली आँखें किसी गहरे समंदर की तरह थीं—कभी शांत, तो कभी तूफानी। जब उसके लंबे, घने बाल हवा में लहराते, तो ऐसा लगता जैसे कोई खूबसूरत पेंटिंग सजीव हो उठी हो।
लेकिन उसकी खूबसूरती सिर्फ चेहरे तक सीमित नहीं थी, बल्कि उसकी आत्मा भी उतनी ही चमकदार थी। उसकी हँसी में ऐसी मासूमियत थी, जो किसी भी उदास चेहरे पर मुस्कान ले आए। अपने चुलबुलेपन और बेबाक अंदाज के कारण वह पूरे परिवार की लाड़ली थी, लेकिन उसकी सबसे बड़ी पहचान थी उसका साहस—जो उसे सबसे अलग बनाता था।
अर्निका हमेशा मदद के लिए आगे रहती थी—चाहे दोस्त हों या अनजान लोग, वह कभी पीछे नहीं हटती। पढ़ाई में अव्वल होने के साथ-साथ उसे सिंगिंग और डांसिंग का भी शौक था। लेकिन उसकी सबसे बड़ी खासियत थी उसका हिम्मती स्वभाव—वह सिर्फ अपने सपनों के लिए नहीं, बल्कि दूसरों के लिए भी हर हद पार कर सकती थी।
अपने पापा के टेक्सटाइल बिज़नेस में भी उसकी गहरी दिलचस्पी थी। अपनी अनोखी डिज़ाइनों से उसने कम उम्र में ही खुद को साबित कर दिया था। लेकिन जो चीज़ उसे औरों से अलग बनाती थी, वह थी उसकी फाइटिंग स्किल्स—एक ऐसी फाइटर, जो किसी भी चुनौती का सामना करने से नहीं डरती थी।
आने वाले दिनों में वह सिर्फ अपने परिवार की नहीं, बल्कि किसी और की भी धड़कन बनने वाली थी—एक ऐसा जुनून, जिसके लिए वह हर हद पार करने को तैयार थी। लेकिन क्या यह जुनून उसे उसके सपनों तक ले जाएगा, या उसकी ज़िंदगी को किसी नए मोड़ पर लाकर खड़ा कर देगा? वक्त ही इसका फैसला करेगा...
त्रिपाठी परिवार
गोविंद प्रसाद त्रिपाठी (75 वर्ष)
अर्निका के दादाजी, एक प्रतिष्ठित और प्रभावशाली व्यक्तित्व थे। उनके फैसले परिवार में कानून की तरह माने जाते थे। अपने युवा दिनों में वे अपनी साहसिक सोच, बुद्धिमत्ता और नेतृत्व क्षमता के लिए जाने जाते थे।
गोविंद प्रसाद ने अपनी मेहनत से नाम और सम्मान कमाया था। उनका पारिवारिक टेक्सटाइल बिज़नेस शहरभर में मशहूर था, और आज भी उनके नाम की इज्जत बनी हुई थी। व्यवसाय में जितने कुशल थे, उतने ही सामाजिक कार्यों में भी आगे रहते थे।
हालाँकि अब उम्र के साथ उनकी ज़िम्मेदारियाँ थोड़ी कम हो गई थीं, फिर भी उनका प्रभाव घर के हर सदस्य पर था। बाहर से गंभीर और सख्त दिखने वाले गोविंद प्रसाद, अर्निका के सामने हमेशा पिघल जाते। वे उसे सबसे ज्यादा प्यार करते थे और उसकी हर बात में उनका विशेष स्नेह झलकता था। अपने बाकी पोते-पोतियों से भी उनका उतना ही गहरा लगाव था।
दयावती त्रिपाठी (72 वर्ष)
अर्निका की दादी, जिन्होंने अपने ज़माने में एक बेहतरीन क्लासिकल डांसर और गायिका के रूप में नाम कमाया था। संगीत और नृत्य उनके जीवन के अभिन्न अंग थे। जब वे मंच पर प्रस्तुति देतीं, तो उनकी भाव-भंगिमाएँ और मधुर आवाज़ हर किसी को मंत्रमुग्ध कर देती थी।
लेकिन शादी के बाद, उन्होंने अपने इस हुनर को परिवार और जिम्मेदारियों के लिए पीछे छोड़ दिया। हालांकि, उनके दिल में वह जुनून आज भी जीवित था। जब भी घर में कोई खुशी का मौका आता या रेडियो पर उनकी पसंदीदा रागिनी बजती, तो उनकी आँखों में वही पुरानी चमक लौट आती।
अर्निका उनकी जान थी। उसे बचपन से ही दादी की कहानियाँ, उनके गाए गीत और नृत्य बेहद पसंद थे। शायद यही वजह थी कि अर्निका को भी संगीत और नृत्य से गहरा लगाव था—यह जुनून उसे दादी से ही विरासत में मिला था। दयावती अपने बाकी पोते-पोतियों को भी उतना ही स्नेह देती थीं।
उनके तीन संतान थे—
दिलीप त्रिपाठी (बड़े बेटे)
अनिरुद्ध त्रिपाठी (छोटे बेटे)
भाग्यश्री त्रिपाठी शुक्ला (बेटी)
यह परिवार सिर्फ खून के रिश्ते से नहीं, बल्कि संस्कारों, परंपराओं और गहरे प्रेम के धागों से बंधा था।
दिलीप त्रिपाठी (56 वर्ष)
अर्निका के बड़े पापा, दिलीप त्रिपाठी, परिवार के सबसे अनुशासनप्रिय और समझदार व्यक्ति माने जाते थे। बड़े बेटे होने के नाते, उन्होंने हमेशा घर और बिजनेस की ज़िम्मेदारियों को प्राथमिकता दी। उनके अंदर अपने पिता, गोविंद प्रसाद त्रिपाठी की तरह बिजनेस माइंड था। पहले, उन्होंने त्रिपाठी टेक्सटाइल इंडस्ट्री को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई, लेकिन बाद में उन्होंने इसकी बागडोर अपने छोटे भाई अनिरुद्ध त्रिपाठी को सौंप दी और खुद होटल बिजनेस में एक नई पहचान बनाई।
उनके नेतृत्व और कुशल निर्णय क्षमता ने उनके होटल चेन को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया, और वे इस क्षेत्र के नामी बिजनेसमैन बन गए।
बाहर से सख्त और गंभीर स्वभाव के दिखने वाले दिलीप जी, अंदर से बेहद भावुक और परिवार से गहराई से जुड़े हुए थे। खासतौर पर अर्निका के प्रति उनका एक अलग ही स्नेह था। वह उनकी चहेती थी, और भले ही वे अपनी भावनाएँ खुलकर न दिखाते हों, लेकिन मुश्किल वक्त में वे हमेशा उसका सबसे बड़ा सहारा बन जाते थे। वे उसकी हर बात ध्यान से सुनते, उसके करियर और भविष्य की चिंता करते, लेकिन साथ ही उसे अपने सपनों को पूरा करने की पूरी आज़ादी भी देते थे।
उनकी दो संतानें थीं—
विवान त्रिपाठी (25 वर्ष) – जिसने ओबेरॉय ग्रुप से पढ़ाई पूरी की और अब अपने पिता के होटल बिजनेस में उनकी मदद करता है।
सान्या त्रिपाठी (21 वर्ष) – जिसे फाइन आर्ट्स और पढ़ाई में गहरी रुचि थी। वह परिवार से थोड़ी अलग सोच रखती थी लेकिन अर्निका से उसकी बचपन से गहरी दोस्ती थी। दोनों बहनों की बॉन्डिंग बेहद खास थी।
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अर्चना त्रिपाठी (53 वर्ष)
दिलीप त्रिपाठी की पत्नी, अर्चना त्रिपाठी, पूरे परिवार की रीढ़ थीं। वे न सिर्फ अपने बच्चों बल्कि पूरे घर के बच्चों को माँ जैसा प्यार देती थीं। उनकी ममता और समझदारी ने उन्हें त्रिपाठी परिवार का एक मज़बूत स्तंभ बना दिया था।
अपने ज़माने में अर्चना जी एक बेहतरीन आर्टिस्ट थीं। उनकी पेंटिंग्स में एक अनोखी गहराई और भावनाएँ झलकती थीं। कला के प्रति उनका जुनून बेमिसाल था, लेकिन शादी के बाद उन्होंने अपने सपनों को परिवार और जिम्मेदारियों के लिए पीछे छोड़ दिया। हालाँकि, उन्होंने कभी भी इस हुनर को मरने नहीं दिया—आज भी जब समय मिलता, वे कैनवास पर रंग भरतीं, और उनकी पेंटिंग्स में वही पुरानी जादूई छवि झलकती थी।
वे स्वभाव से बेहद दयालु और सुलझी हुई थीं। उनके चेहरे की सुकून देने वाली मुस्कान पूरे घर का माहौल खुशनुमा बना देती थी। वे हर किसी की परेशानियों को समझने और सुलझाने की पूरी कोशिश करतीं।
अर्निका से उनका रिश्ता एक अलग ही स्तर पर था। वे उसे अपनी बेटी की तरह मानती थीं और उसकी हर खुशी का ख्याल रखती थीं। जब भी अर्निका उदास होती, अर्चना जी बिना कुछ कहे उसकी तकलीफ समझ जातीं और उसे अपने तरीके से खुश करने की कोशिश करतीं।
उनकी दो संतानें—
विवान (25 वर्ष), जो अपने पिता के होटल बिजनेस में हाथ बंटाता था।
सान्या (21 वर्ष), जो फाइन आर्ट्स में रुचि रखती थी और अपनी माँ के अधूरे सपनों को कहीं न कहीं पूरा करने की कोशिश कर रही थी।
त्रिपाठी परिवार—जहाँ परंपराएँ, भावनाएँ और सपने एक-दूसरे से जुड़े हुए थे।
अनिरुद्ध त्रिपाठी (54 वर्ष)
त्रिपाठी परिवार के छोटे बेटे और अर्निका के पिता, अनिरुद्ध त्रिपाठी अपने दोनों बच्चों से बेहद प्यार करते थे। लेकिन अर्निका के लिए उनका प्यार कुछ खास था—वह उनकी लाडली थी, उनकी जान।
अनिरुद्ध जी ने त्रिपाठी टेक्सटाइल इंडस्ट्री को अपने पिता गोविंद प्रसाद त्रिपाठी और बड़े भाई दिलीप त्रिपाठी से संभालने के बाद नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया। उनकी मेहनत, दूरदृष्टि और व्यापारिक कुशलता ने इस बिजनेस को और भी सफल बना दिया। वे अपने काम के प्रति पूरी तरह समर्पित थे, लेकिन उन्होंने कभी परिवार और बिजनेस के बीच संतुलन बिगड़ने नहीं दिया।
वे शांत, समझदार और सुलझे हुए स्वभाव के व्यक्ति थे। अपनी बेटी अर्निका के हर सपने का उन्होंने हमेशा समर्थन किया। जब भी उसे किसी चीज़ की जरूरत होती, अनिरुद्ध जी बिना कहे ही समझ जाते। वे चाहते थे कि उनकी बेटी आत्मनिर्भर और निडर बने, इसलिए उन्होंने उसे सिर्फ बिजनेस और कला ही नहीं, बल्कि सेल्फ-डिफेंस और फाइटिंग भी सिखाई।
हालाँकि वे परिवार और समाज की परंपराओं को लेकर थोड़े रूढ़िवादी थे, लेकिन जब बात अर्निका की खुशी और उसके सपनों की आती, तो वे हर बंधन तोड़ने के लिए तैयार रहते। उनके लिए अर्निका सिर्फ उनकी बेटी नहीं, बल्कि उनकी सबसे बड़ी ताकत थी।
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माधवी त्रिपाठी (52 वर्ष)
अनिरुद्ध त्रिपाठी की पत्नी और अर्निका की माँ, माधवी त्रिपाठी सिर्फ इस घर की बहू नहीं, बल्कि इसकी आत्मा थीं। उनका स्वभाव मृदुभाषी, दयालु और सुलझा हुआ था। वे पूरे परिवार को जोड़कर रखने वाली मजबूत कड़ी थीं और हर किसी का ख्याल रखती थीं।
माधवी जी पेशे से एक प्रसिद्ध डॉक्टर थीं, जिन्होंने अपने मेहनत और लगन से चिकित्सा के क्षेत्र में एक अलग पहचान बनाई। उनके लिए डॉक्टर बनना सिर्फ एक पेशा नहीं, बल्कि सेवा थी। वे अपने मरीजों का इलाज सिर्फ दवाओं से नहीं, बल्कि अपनी सहानुभूति और सकारात्मक ऊर्जा से भी करती थीं। अस्पताल में वे जितनी सम्मानित थीं, घर में उतनी ही प्यारी और संस्कारी बहू, पत्नी और माँ।
माधवी जी ने अपने काम और परिवार के बीच संतुलन बनाए रखा। वे अपने बच्चों की हर छोटी-बड़ी जरूरत का ध्यान रखतीं और उनके सपनों को पूरा करने में पूरा समर्थन देतीं। अर्निका के लिए वे सिर्फ माँ नहीं, बल्कि उसकी सबसे अच्छी दोस्त भी थीं। वे जानती थीं कि उनकी बेटी में असाधारण प्रतिभा और जुनून है, जिसे दुनिया के सामने लाना जरूरी था।
त्रिपाठी परिवार—जहाँ परंपरा, प्रेम और सपनों का अनोखा संगम था।
अद्विक त्रिपाठी (23 वर्ष)
त्रिपाठी परिवार का सबसे तेज़-तर्रार, स्मार्ट और हैंडसम नौजवान, जिसे उसके आत्मविश्वास और बेबाक व्यक्तित्व के लिए जाना जाता था। अनिरुद्ध और माधवी त्रिपाठी के बेटे और अर्निका के बड़े भाई, अद्विक उसके लिए सिर्फ एक भाई ही नहीं, बल्कि रक्षक, मेंटर और सबसे अच्छा दोस्त भी था।
अभी-अभी उसने विदेश से बिजनेस मैनेजमेंट की पढ़ाई पूरी करके अपने पिता के साथ त्रिपाठी टेक्सटाइल इंडस्ट्री में काम संभालना शुरू किया था। हालाँकि वह बिजनेस माइंडेड था, लेकिन उसके अंदर एडवेंचर और बाग़ीपन का जुनून भी था। वह हमेशा नई चीज़ें सीखने और अपने दम पर कुछ अलग करने में विश्वास रखता था।
बेहद आत्मनिर्भर और स्पष्टवादी, अद्विक अपने स्वतंत्र विचारों और बेबाक अंदाज़ के लिए जाना जाता था। वह परिवार की परंपराओं का सम्मान करता था, लेकिन रूढ़िवादी सोच के खिलाफ था। खासकर अर्निका के सपनों को लेकर वह बेहद प्रोटेक्टिव था—अगर किसी ने उसकी बहन को कम आंका या उसके सपनों को हल्के में लिया, तो वह खुलकर सामने आ जाता।
अद्विक का स्टाइल और पर्सनैलिटी उसे दोस्तों के बीच पॉपुलर बनाते थे, लेकिन घरवालों और करीबी दोस्तों के अलावा वह बाकी लोगों के सामने सख्त और गंभीर रहता था। किसी भी सिचुएशन को अपने दिमाग और हाजिरजवाबी से संभालना उसकी खासियत थी।
उसे स्पोर्ट्स, ट्रैकिंग और कार रेसिंग का बहुत शौक था और वह हमेशा नई चुनौतियाँ लेने के लिए तैयार रहता था।
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अब चलते हैं कहानी के अंदर, जहाँ नए मोड़ और दिलचस्प घटनाएँ हमारा इंतज़ार कर रही हैं…
अर्निका के ऊपर जाने के बाद अर्चना और माधवी किचन से बाहर आईं और सभी से पूछा, "खाना परोस दें?"
इस पर दादी ने मुस्कुराते हुए कहा,
"हाँ, लगा दो। जब तक खाना लगेगा, तब तक हमारी लाडो भी आ जाएगी।"
अपनी सास की बात सुनकर, दोनों किचन में गईं और सहायकों के साथ मिलकर डाइनिंग टेबल पर खाना सजाने लगीं।
करीब 15 मिनट बाद, अर्निका ऊपर से नीचे उतरी। उसने हल्का गुलाबी रंग का खूबसूरत अनारकली सूट पहना था, जिसमें वह किसी राजकुमारी जैसी लग रही थी। उसके खुले बाल कंधों पर लहराते हुए गिर रहे थे, और उसके चेहरे पर वही चिर-परिचित चमक थी, जो पूरे घर को रोशन कर देती थी।
जैसे ही वह सीढ़ियों से नीचे उतरी, दादी ने उसे देखकर मुस्कुराते हुए कहा,
"लो, हमारी लाडो आ गई! अब तो खाना लगाना ही पड़ेगा, नहीं तो भूखी रह जाएगी।"
अर्निका हंसते हुए दादी के पास गई और प्यार से उन्हें गले लगा लिया।
"अरे दादी, भला आप मुझे भूखा रख सकती हैं?" उसने शरारत भरे अंदाज में कहा।
दादी ने मुस्कुराते हुए उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरा और बोलीं,
"तू तो मेरी जान है, लाडो! लेकिन तीन दिन बाद जब तू दूर चली जाएगी, तब मेरे पास ऐसे कौन आएगा?"
यह कहते ही उनकी आवाज़ में हल्की उदासी घुल गई।
सिर्फ दादी ही नहीं, पूरे परिवार के दिल में वही भावना थी।
तीन दिन बाद, अर्निका अपनी नई जिंदगी की ओर कदम बढ़ाने वाली थी, लेकिन उसके बिना यह हवेली कितनी सूनी लगने लगेगी, यह सोचकर सबके मन में एक अजीब सी कसक थी।
इस माहौल को हल्का करने के लिए अद्विक ने तुरंत मज़ाक में कहा,
"दादी, आप चिंता मत करें, जब लाडो चली जाएगी, तो मैं आपका लाडला बन जाऊंगा!"
सब हंस पड़े, और इसी बीच माधवी और अर्चना ने आवाज़ लगाई,
"चलो, सब लोग टेबल पर आ जाओ, खाना लग गया है!"
पूरा परिवार डाइनिंग टेबल की ओर बढ़ा, जहाँ तरह-तरह के स्वादिष्ट व्यंजन सजे थे—
गर्म-गर्म रोटियाँ, पनीर की सब्जी, दाल, पुलाव, रायता और मीठे में गुलाब जामुन।
जैसे ही सब बैठने लगे, दिलीप त्रिपाठी बोले,
"आज खाने में कुछ अलग ही बात है, ये किसकी स्पेशल डिश है?"
इस पर अर्चना मुस्कुराते हुए बोलीं,
"अर्निका की पसंद की सारी चीजें बनाई हैं!"
अर्चना की बात सुनते ही अर्निका हंसते हुए बोली,
"ओह! मतलब आज स्पेशली मेरे लिए दावत रखी गई है!"
माधवी ने प्यार से उसके गाल पर हल्की चपत लगाते हुए कहा,
"हाँ, और कुछ दिन बाद जब तू चली जाएगी, तब तेरी ये फेवरिट डिशेज़ हम सब मिस करेंगे!"
यह सुनते ही माहौल में हल्की उदासी छा गई।
लेकिन अद्विक ने तुरंत बात बदलते हुए मज़ाक में कहा,
"कोई बात नहीं, माँ! जब लाडो नहीं होगी, तब मैं आपकी नई लाडो बन जाऊंगा!"
सब ज़ोर से हँस पड़े।
दिलीप त्रिपाठी ने सबको खाना परोसने के लिए कहा,
"चलो, अब बातें बाद में करना, पहले खाना खाओ।"
सबने खाना शुरू किया, और जैसे ही अर्निका ने पहला कौर लिया, वह मुस्कुराकर बोली,
"वाह, मम्मी! आज का खाना तो और भी टेस्टी लग रहा है!"
माधवी मुस्कुराईं,
"बस, तेरी पसंद की हर चीज़ डाल दी है, इसलिए!"
खाने के दौरान माहौल हल्का और खुशहाल हो गया। सब अपनी-अपनी बातें करने लगे।
तभी दिलीप त्रिपाठी ने अर्निका की ओर देखते हुए कहा,
"बेटा, वहाँ जाकर अपनी देखभाल अच्छे से करना। पढ़ाई और करियर ज़रूरी है, लेकिन अपना ख्याल रखना सबसे ज़रूरी है।"
अर्निका ने उनके हाथ पर अपना हाथ रखते हुए कहा,
"बिल्कुल बड़े पापा, आपकी ये लाडो हमेशा आपकी बात मानेगी!"
दादी ने प्यार से कहा,
"मानेगी ही नहीं, बल्कि हमारे नाम को रोशन भी करेगी!"
सबकी आँखों में गर्व और प्यार साफ झलक रहा था।
आगे किया होगा जाने के लिया मेरी कहानी रूह से रूह तक पढ़ते रहिए
अगर कहीं कोई गलती हो गई हो, तो मुझे माफ कर दीजिएगा।
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