Rooh se Rooh tak - 9 in Hindi Love Stories by IMoni books and stories PDF | रूह से रूह तक - चैप्टर 9

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रूह से रूह तक - चैप्टर 9

गाड़ी एयरपोर्ट की ओर बढ़ रही थी, लेकिन अर्निका की नजरें अब भी खिड़की के बाहर टिकी थीं। वो चुपचाप शहर की उन्हीं सड़कों को देख रही थी, जहां उसकी अनगिनत यादें बसी थीं।

सान्या ने हल्के से उसका हाथ थपथपाया, "क्या हुआ, कुकी? किस सोच में डूबी हो?"

अर्निका ने हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाया, "बस यही कि अब सब कुछ बदलने वाला है... नया शहर, नए लोग... पता नहीं आगे क्या होगा।"

ईनाया ने मुस्कुराते हुए कहा, "चिंता मत करो, सब ठीक होगा। और अगर कोई दिक्कत आई भी तो हम तीनों साथ मिलकर संभाल लेंगे!"

अद्विक ने शीशे में उन्हें देखते हुए हल्के अंदाज में कहा, "हां, लेकिन मेरी शरारती बहनें कहीं मुसीबत न खड़ी कर दें!"

सान्या ने हंसते हुए जवाब दिया, "मुसीबतें हमें नहीं ढूंढतीं, हम जहां जाते हैं, वहीं चली आती हैं!"

तीनों ठहाके लगाने लगे, लेकिन अर्निका अब भी कहीं खोई हुई थी।

उसके दिमाग में अब भी वही रात घूम रही थी… वो अनजान चेहरा, तीखी नजरें, वो झड़प... जाने क्यों वो बार-बार उसी के बारे में सोच रही थी। पर खुद भी समझ नहीं पा रही थी कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है।


कुछ ही देर में एयरपोर्ट आ गया। अद्विक ने गाड़ी पार्क करते हुए कहा, "चलो, अब औपचारिकताएँ पूरी कर लेते हैं।"

तीनों ने अपने बैग संभाले और अंदर की ओर बढ़ गए। उनके पीछे-पीछे बाकी घरवाले भी एयरपोर्ट के अंदर आ गए। सभी वेटिंग एरिया में बैठकर फ्लाइट की अनाउंसमेंट का इंतजार करने लगे। माहौल में हल्की उदासी थी, लेकिन नई शुरुआत की उम्मीद भी थी।

दादी ने अर्निका का हाथ थामते हुए कहा, "बेटा, अपना ख्याल रखना। वहाँ जाकर सही से खाना-पीना और ज्यादा देर तक मत जागना।"

अर्निका मुस्कुरा दी, "हाँ दादी, आपकी ये बातें हमेशा याद रखूंगी।"

फूफा जी ने ईनाया की ओर देखते हुए कहा, "और तुम, कोई शरारत मत करना। पढ़ाई पर ध्यान देना, समझीं?"

सान्या ने हंसते हुए कहा, "फूफा सा, शरारत तो इसकी रगों में है, इसे दूर रखना मुश्किल है!"

सभी हंस पड़े, लेकिन इस हंसी के पीछे विदाई की हल्की उदासी भी थी।

तभी फ्लाइट की अनाउंसमेंट हुई—

"फ्लाइट AI-302 मुंबई के लिए बोर्डिंग शुरू हो चुकी है।"

अद्विक ने घड़ी की ओर देखा और कहा, "चलो, अब हमें चलना चाहिए।"



अर्निका और ईनाया ने बारी-बारी से सभी को गले लगाकर विदाई ली। जब अर्निका अपनी माँ के पास पहुँची, तो माधवी ने उसे कसकर गले लगा लिया और कानों में धीरे से कहा, "बेटा, हमेशा खुद पर विश्वास रखना। कोई भी परेशानी हो, तो बिना झिझक मुझे बता देना।"

अर्निका ने हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाया, "हाँ माँ, आप बिल्कुल चिंता मत करना।"

आखिरकार, दोनों ने एक आखिरी बार अपने परिवार को देखा और फिर सिक्योरिटी चेक की ओर बढ़ गईं।

सिक्योरिटी चेक के बाद वे फ्लाइट में चली गईं। बाहर सभी की आँखों में हल्की उदासी थी। तभी सान्या ने सबकी ओर देखकर कहा, "आप लोग उदास मत होइए, दोनों सही सलामत पहुँच जाएँगी, तो फिर मिल भी लेंगी। और हाँ, आप लोगों को भी अब घर जाना चाहिए, मेरी फ्लाइट की अनाउंसमेंट भी जल्दी ही हो जाएगी।"

यह सुनकर दादी ने सान्या के सिर पर प्यार से हाथ फेरा और कहा, "तू भी वहाँ जाकर अपना ख्याल रखना, बेटा।"

सान्या ने मुस्कुराते हुए दादी का हाथ थाम लिया और बोली, "हाँ दादी, आप चिंता मत कीजिए। मैं रोज़ कॉल करूंगी, वीडियो कॉल भी करेंगे, ठीक है?"

दिलीप जी ने हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाते हुए कहा, "अपना ध्यान रखना बेटा, और पढ़ाई में मन लगाना।"



सान्या की माँ ने उसे गले लगाते हुए कहा, "अगर किसी भी चीज़ की जरूरत हो तो तुरंत बताना। और हाँ, अकेले ज्यादा देर तक बाहर मत घूमना।"

सान्या ने मुस्कुराकर सिर हिलाया, "हाँ माँ, बिल्कुल। चिंता मत करना।"

तभी बैंगलोर जाने वाली फ्लाइट की अनाउंसमेंट हो गई।

सान्या ने सभी को आखिरी बार गले लगाया, अपना बैग संभाला और सिक्योरिटी गेट की ओर बढ़ गई। जाते-जाते उसने एक बार मुड़कर देखा—परिवार के सभी लोग उसे देख रहे थे, कुछ भावुक थे तो कुछ गर्व से भरे हुए थे।


---

दूसरी ओर—

अर्निका और ईनाया की फ्लाइट टेकऑफ़ कर चुकी थी।

अर्निका खिड़की से बाहर देख रही थी। शहर धीरे-धीरे छोटा होता जा रहा था। उसने मन ही मन सोचा, "नया शहर, नई शुरुआत..."

ईनाया ने उसकी ओर देखा और हल्की मुस्कान के साथ पूछा, "कैसा लग रहा है?"

अर्निका ने गहरी सांस लेते हुए कहा, "थोड़ा अजीब... लेकिन एक्साइटिंग भी।"

ईनाया ने जोश में कहा, "बस एक बार मुंबई पहुँच जाएँ, फिर असली सफर शुरू होगा!"

फ्लाइट बादलों के बीच उड़ान भर रही थी, और उनके जीवन का एक नया अध्याय शुरू होने वाला था।


---

उधर, बनारस में—

त्रिपाठी परिवार अपनी तीनों बेटियों को विदा कर पार्किंग की ओर बढ़ गया।

माधवी ने अनिरुद्ध से कहा, "आप मुझे हॉस्पिटल छोड़ दीजिए।"

अनिरुद्ध ने सहमति में सिर हिलाया, और वे हॉस्पिटल की ओर निकल गए। बाकी लोग भी अपनी-अपनी कार से घर की ओर रवाना हो गए।

कुछ समय बाद, माधवी हॉस्पिटल पहुँचकर अपने केबिन में बैठ गई। तभी एक नर्स आकर बोली, "मेम, यह कल वाले पेशेंट की रिपोर्ट है। सुबह Dr. शर्मा ने उन्हें चेक किया था।"



माधवी जी ने "हाँ" कहते हुए फाइल उठाई और ध्यान से पढ़ने लगीं। रिपोर्ट के अनुसार मरीज अब खतरे से बाहर था, लेकिन उसे अभी भी आराम की जरूरत थी।

"ठीक है," माधवी जी ने नर्स से पूछा, "क्या वह होश में आ चुका है?"

नर्स ने सिर हिलाया, "जी हाँ, सुबह ही होश आ गया था।"

माधवी जी ने रिपोर्ट बंद की और कहा, "ठीक है, मैं खुद उसे देखने जाऊंगी।"

उन्होंने अपना कोट उठाया और पेशेंट के कमरे की तरफ बढ़ गईं। हल्के से दरवाजा खटखटाकर अंदर गईं।

बिस्तर पर वही युवक लेटा था, जिसकी मदद अर्निका ने की थी—प्रिंस।

"कैसा महसूस कर रहे हैं आप?" माधवी जी ने नर्म आवाज़ में पूछा।

प्रिंस ने हल्की आवाज़ में जवाब दिया, "मैं ठीक हूँ... बस सिर में हल्का दर्द हो रहा है।"

माधवी जी ने उसकी नब्ज़ चेक की और कहा, "घबराइए मत। आपको बस आराम की जरूरत है। और हाँ, मोबाइल कम देखें, वरना आँखों पर ज़्यादा ज़ोर पड़ेगा, जिससे सिरदर्द बढ़ सकता है।"

पीछे से एक आवाज़ आई, "इन्हें थोड़ा और समझाइए डॉक्टर, हमारी तो सुनते ही नहीं हैं!"

माधवी जी ने पलटकर देखा, एक अधेड़ उम्र की महिला के साथ चार और लोग खड़े थे।

प्रिंस ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "डॉक्टर, इनकी बात मत सुनिए। ये लोग तो बस मुझे परेशान करने का कोई न कोई बहाना ढूंढते रहते हैं।"

माधवी जी मुस्कुराकर बोलीं, "ये लोग आपकी परवाह करते हैं, इसलिए समझा रहे हैं।"

तभी बुजुर्ग महिला आगे आईं और चिंतित स्वर में पूछा, "डॉक्टर साहिबा, मेरा पोता ठीक तो है ना? उसे कोई तकलीफ तो नहीं?"

माधवी जी ने आश्वस्त करते हुए कहा, "आपका पोता बिल्कुल ठीक है। बस थोड़ी कमजोरी है, इसलिए कुछ दिन आराम करना जरूरी होगा।"

इसके बाद उन्होंने दर्शित की ओर देखा और पूछा, "तुम ठीक हो? तुम्हें भी तो चोट आई थी, ना?"

दर्शित ने हल्की हँसी के साथ कहा, "मैं ठीक हूँ, डॉक्टर। बस हल्का दर्द है, लेकिन ठीक हो जाएगा।"

माधवी जी ने उसे भी चेक किया और फिर दोनों के लिए कुछ दवाइयाँ लिखते हुए कहा, "मैंने कुछ और दवाइयाँ जोड़ी हैं। अगर सब ठीक रहा तो कल शाम तक आप डिस्चार्ज हो सकते हैं, लेकिन अपनी चोट का ध्यान रखना, नहीं तो इन्फेक्शन हो सकता है।"

वो जाने ही वाली थीं कि दर्शित ने उन्हें रोकते हुए कहा, "सुनिए, डॉक्टर..."

माधवी जी रुकीं और उसकी ओर देखा, "हाँ, बोलिए?"

दर्शित कुछ पल रुका और फिर पूछा, "क्या आप अर्निका की कोई रिश्तेदार हैं? कल मैंने आपको उन तीनों के साथ देखा था..."

माधवी जी हल्की मुस्कान के साथ बोलीं, "हाँ, वो मेरी बेटी है। उसी ने ही मुझे रात को कॉल करके यहाँ बुलाया था।"


यह सुनकर दर्शित और प्रिंस दोनों ही थोड़ा चौंक गए।

"ओह... तो अर्निका आपकी बेटी है?" दर्शित ने आश्चर्य से पूछा।

माधवी जी मुस्कुराईं, "हाँ।"

दर्शित ने गंभीर स्वर में कहा, "अगर कल आपकी बेटी ने हमारी मदद नहीं की होती, तो हम बहुत बड़ी मुसीबत में पड़ सकते थे।"

प्रिंस हल्की मुस्कान के साथ बोला, "अब समझ आया कि वो इतनी बहादुर क्यों है। उसकी परवरिश ही इतनी अच्छी हुई है।"

माधवी जी ने हल्के से सिर हिलाया और कहा, "अर्निका बहुत संवेदनशील लड़की है, दूसरों की मदद करना उसकी आदत है। लेकिन मुझे उसकी सुरक्षा की हमेशा चिंता रहती है।"

दर्शित कुछ सोचते हुए बोला, "डॉक्टर, अगर आप बुरा न मानें तो मैं कुछ पूछ सकता हूँ?"

माधवी जी ने कहा, "हाँ, पूछो।"

"क्या हम अर्निका और उसकी दोस्तों से मिल सकते हैं? हम बस उन्हें धन्यवाद कहना चाहते हैं।" दर्शित ने विनम्रता से कहा।

प्रिंस ने भी तुरंत कहा, "हाँ डॉक्टर, आप परेशान मत होइए। हमारी वजह से उन्हें कोई तकलीफ नहीं होगी।"

तभी दादी भी बोल पड़ीं, "हाँ डॉक्टर साहिबा, हम सिर्फ मिलकर शुक्रिया अदा करना चाहते हैं।" उन्होंने मन ही मन सोचा, "अगर वो वही लड़की हुई, तो मैं उसे दोबारा देख पाऊँगी।"

माधवी जी उनकी बातें सुनकर हल्का मुस्कुराईं और कहा, "ऐसी कोई बात नहीं है, लेकिन मेरी बेटी अब यहाँ नहीं है। वो अपनी पढ़ाई के लिए मुंबई चली गई है, और मैं अभी-अभी उसे एयरपोर्ट पर छोड़कर आई हूँ।"



यह सुनते ही प्रिंस और दर्शित कुछ पल के लिए चुप हो गए।

"मुंबई?" प्रिंस ने धीमे स्वर में दोहराया।

माधवी जी ने मुस्कुराते हुए कहा, "हाँ, वो और उसकी कज़िन वहीं गई हैं। अब उनकी नई जिंदगी वहीं से शुरू होगी।"

दादी ने गहरी सांस लेते हुए कहा, "अच्छा होता अगर हम उसे एक बार धन्यवाद कह पाते। लेकिन खैर, भगवान उस बच्ची को खुश रखे।"

इसके बाद माधवी जी ने दर्शित और प्रिंस को उनकी दवाइयों और ज़रूरी हिदायतों के बारे में बताया, फिर अपने केबिन की ओर चली गईं।

उनके जाने के बाद दर्शित हल्की मुस्कान के साथ बोला, "अगर किस्मत में होगा, तो हम उनसे फिर मिलेंगे।"

दादी ने सिर हिलाते हुए कहा, "हां बेटा, लेकिन अभी तुम लोग लंच कर लो, फिर दवाई भी लेनी है।"

प्रिंस की माँ ने अपने साथ लाया टिफिन खोला और दोनों को खाने को दिया। खाना खाकर दोनों ने अपनी दवाइयाँ लीं और कुछ ही देर में गहरी नींद में सो गए।


---

शाम के 6:30 बजे, मुंबई एयरपोर्ट के बाहर भीड़भाड़ का नज़ारा था। तेज़ रफ़्तार में दौड़ती टैक्सियाँ, जल्दी में इधर-उधर भागते लोग और शहर की जगमगाहट—सब कुछ एक नई शुरुआत का एहसास दिला रहा था।

"आख़िरकार, मुंबई!" ईनाया ने लंबी सांस लेते हुए कहा।

अर्निका ने चारों ओर नज़र दौड़ाई, उसकी आँखों में हल्की सी बेचैनी थी। "अब यहाँ हमारी नई ज़िंदगी शुरू हो रही है," उसने धीरे से कहा।

अद्विक ने मुस्कुराते हुए कहा, "और यहाँ सब कुछ तुम्हारे प्लान के मुताबिक ही होगा, ठीक वैसे जैसा तुम चाहती हो, मिस इंडिपेंडेंट!"

ईनाया हंस पड़ी, "हां, हां, हमारी मैडम को सब कुछ परफेक्ट चाहिए!"

अर्निका ने हल्की मुस्कान दी, लेकिन उसकी आँखों में अब भी एक अनजाना सवाल था—"क्या सच में सब कुछ वैसा ही होगा जैसा मैं सोच रही हूँ?"



अद्विक आगे बढ़ते हुए बोला, "चलो, पहले अपार्टमेंट चलते हैं। तुम्हारा सामान कार में रखवा दिया गया है।"

तीनों एयरपोर्ट से बाहर निकले और एक ब्लैक लग्ज़री कार की ओर बढ़े, जो पहले से उनका इंतज़ार कर रही थी।

जैसे ही गाड़ी में बैठे, मुंबई की तेज़ रफ़्तार ज़िंदगी का अहसास होने लगा—सड़क पर दौड़ती गाड़ियाँ, ऊँची इमारतें, और हल्की-हल्की जगमगाहट। यह शहर सोता नहीं था।

ईनाया खिड़की से बाहर देखते हुए बोली, "अभी तो बस शुरुआत है, आगे देखो, यह शहर हमें क्या-क्या दिखाता है!"

अर्निका ने एक गहरी सांस ली और मन ही मन सोचा, "शायद किस्मत भी कुछ नया ही लिखने वाली है…"


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दूसरी तरफ, बनारस में…

रात के 8:00 बज रहे थे। गंगा घाट की सीढ़ियों पर हल्की-हल्की ठंडक महसूस हो रही थी। मंदिरों से आती घंटियों की आवाज़ और आरती के सुरों ने पूरे माहौल को भक्तिमय बना दिया था।

त्रिपाठी सदन में अजीब सा सन्नाटा था। अर्निका, ईनाया और सान्या के जाने के बाद घर में एक ख़ालीपन सा छा गया था।

माधवी हॉस्पिटल से लौटकर पूजा घर में दीया जलाते हुए अपनी बेटियों की सलामती के लिए प्रार्थना कर रही थी।

तभी पीछे से दादी की आवाज़ आई, "बहू, तुम परेशान मत हो। बच्चे बड़े हो गए हैं, अपनी ज़िंदगी में आगे बढ़ रहे हैं। हमें उन पर गर्व होना चाहिए।"



माधवी हल्की मुस्कान के साथ बोली, "हाँ माँ जी, मुझे अपनी बेटियों पर पूरा भरोसा है। बस, माँ का दिल है न... हर पल उनकी फिक्र लगी रहती है।"

दादी ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा और बोलीं, "हर माँ को अपने बच्चों की चिंता होती है, लेकिन हमारी अर्निका, ईनाया और सान्या कमजोर नहीं हैं। ये तीनों अपनी तकदीर खुद लिखने निकली हैं।"

माधवी ने सहमति में सिर हिलाया। तभी अर्चना भी आ गई और बोली, "तुम चिंता मत करो, हमारी बेटियां सब संभाल लेंगी।"

इसी बीच दरवाजे पर दस्तक हुई। माधवी ने दरवाजा खोला तो सामने अनिरुद्ध जी और बाकी लोग खड़े थे। सभी अंदर आकर हॉल में बैठ गए।

फूफाजी ने गहरी सांस लेते हुए कहा, "आज घर कुछ ज़्यादा ही सूना-सूना लग रहा है।"

दादाजी हल्के से मुस्कुराए और बोले, "हाँ, जब बच्चे घर में होते हैं तो रौनक ही अलग होती है। उनकी हंसी, उनकी बातें… सब कुछ घर को ज़िंदा रखता है।"

दादी ने भी सहमति में सिर हिलाया, "अभी सुबह तक कितनी चहल-पहल थी, और अब देखो… अजीब सा खालीपन लग रहा है।"

माधवी ने मुस्कुराने की कोशिश करते हुए कहा, "बच्चों को भी तो आगे बढ़ना है, अपने सपने पूरे करने हैं। हमें खुश होना चाहिए कि वे अपने पैरों पर खड़े होने जा रहे हैं।"

फूफाजी हल्के से हंसते हुए बोले, "खुश तो हैं, लेकिन यह भी सच है कि इनकी शरारतों की आदत सी हो गई थी। खासकर ईनाया की—कभी कुछ गिरा देना, कभी सबको परेशान करना।"

अनिरुद्ध जी ने मज़ाक में कहा, "और अर्निका! उसकी सुबह की पूजा और ध्यान… अगर वो न हो तो यह घर, घर ही नहीं लगता।"

सभी हंस पड़े, लेकिन इस हंसी के पीछे हल्की उदासी भी थी।



उसी समय हॉस्पिटल के वार्ड में, दर्शित बेचैनी से बोला, "भाई, अभी तक कुशल भाई नहीं आए?"

प्रिंस ने हल्की आंखें खोलते हुए कहा, "तुम्हें उनकी इतनी चिंता क्यों हो रही है?"

दर्शित मुस्कुराते हुए बोला, "ऐसी कोई खास बात नहीं, बस सुबह जाते वक्त उन्होंने कहा था कि शाम तक वापस आ जाएंगे। अब रात हो रही है, फिर भी कोई खबर नहीं है।"

प्रिंस ने गहरी सांस लेते हुए कहा, "ओह, मुझे लगा था कि तुझे उन लड़कियों के बारे में जानना है, इसलिए कुशल का इंतजार कर रहा है।"

अपने भाई की बात सुनकर दर्शित थोड़ा झेप गया, लेकिन फिर बोला, "हाँ, जानना तो चाहता हूँ। आखिर पहली बार आपने भी किसी लड़की के बारे में जानने में दिलचस्पी ली है। और रही बात इंतजार की, तो मुझे भी पता है कि आप भी कुशल भाई का ही इंतजार कर रहे हैं।"

प्रिंस कुछ कहने ही वाला था कि तभी कुशल अंदर आ गया।

उसे देखते ही दर्शित उत्साह से बोला, "कुशल भाई, आप आ गए!"

कुशल ने मुस्कुराते हुए उनकी तबीयत के बारे में पूछा, फिर प्रिंस की ओर एक फाइल बढ़ाते हुए बोला, "इसमें अर्निका और उससे जुड़े लोगों की पूरी जानकारी है।"

दर्शित ने तुरंत पूछा, "तो क्या पता चला? क्या उसका कोई बॉयफ्रेंड है? वो सिंगल तो है ना?"

बॉयफ्रेंड वाली बात सुनकर न जाने क्यों प्रिंस को हल्का गुस्सा आने लगा, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा और बस कुशल की ओर देखने लगा।

कुशल ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "हाँ, वो सिंगल है। और सिर्फ यही नहीं, अर्निका बनारस के मशहूर त्रिपाठी परिवार की सबसे छोटी बेटी है।"

दर्शित ने हैरानी से कहा, "त्रिपाठी परिवार? मतलब वही, जिनका बिज़नेस पूरे देश में फैला हुआ है?"

कुशल ने सिर हिलाया, "हाँ, वही। अर्निका त्रिपाठी खानदान की राजकुमारी है। लेकिन सबसे दिलचस्प बात ये है कि वो अपनी असली पहचान छिपाकर रखना चाहती है। मुंबई में उसने अपने बैकग्राउंड के बारे में किसी को नहीं बताया, यहाँ तक कि कॉलेज में भी वो बस एक आम लड़की की तरह रहना चाहती है।"



प्रिंस चुपचाप सारी बातें सुन रहा था। जब कुशल ने अर्निका के बारे में बताना शुरू किया, तो उसके दिमाग में रात की वही घटना घूम गई—अंधेरे में उसकी झलक, उसकी आँखों में झलकती चिंता, और फिर उसका शांत लेकिन दृढ़ स्वर।

दर्शित ने हल्के मज़ाकिया अंदाज में पूछा, "अच्छा, और क्या पता चला?"

कुशल ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "बहुत कुछ।" फिर उसने एक-एक करके जानकारी साझा करनी शुरू की—

"अर्निका के पिता त्रिपाठी इंडस्ट्रीज़ के शेयरमैन हैं, और सबसे दिलचस्प बात ये है कि उसकी माँ, माधवी त्रिपाठी, एक अवार्डेड डॉक्टर हैं।"

दर्शित ने चौंकते हुए कहा, "मतलब… जो डॉक्टर हमारा इलाज कर रही थीं, वही अर्निका की माँ हैं?"

कुशल ने सिर हिलाया, "हाँ, और ये हॉस्पिटल भी उन्हीं का है।"

प्रिंस ने गहरी नजरों से कुशल की ओर देखा और पूछा, "और क्या पता चला?"

कुशल ने गंभीरता से जवाब दिया, "अर्निका सिर्फ एक आम लड़की नहीं है। वो स्टार टॉपर है और इस साल के मेडिकल एंट्रेंस में फर्स्ट आई है, इसलिए उसे स्कॉलरशिप मिली है पढ़ाई के लिए। आज ही वो अपने भाई और बुआ की बेटी के साथ मुंबई गई है।"

"सिर्फ पढ़ाई में ही नहीं, बल्कि फाइटिंग में भी माहिर है। उसे सिंगिंग और डांसिंग का भी शौक है।"

दर्शित ने उत्सुकता से पूछा, "लेकिन वो कल रात उस जगह पहुँची कैसे?"

कुशल ने बताया, "जिस रिजॉर्ट में तुम्हारी मीटिंग थी, उसी में अर्निका और उसकी क्लासमेट्स की पार्टी चल रही थी। लौटते वक्त उसे देर हो गई, और इसी वजह से वो उस जगह मिली।"

फिर कुशल ने हल्का सा मुस्कुराते हुए प्रिंस की तरफ देखा और मज़ाक में कहा, "लेकिन एक बात कहूँ, मुझे लगता है वो तुम्हारे लिए परफेक्ट रहेगी।"

दर्शित भी हँसते हुए बोला, "हाँ भाई, मैं भी यही सोच रहा हूँ!"

प्रिंस ने गहरी नजरों से दोनों की तरफ देखा और आँखें तरेरते हुए कहा, "तुम दोनों को और कोई काम नहीं है क्या?"

फिर उसने बात बदलते हुए पूछा, "कल जाने की तैयारी हो गई?"

कुशल ने जवाब दिया, "हाँ, सब कुछ तैयार है। डॉक्टर से भी बात हो गई है, वो हमारी पहुँचने से पहले ही राठौर हवेली पहुँच जाएँगी।"

प्रिंस ने हामी भरी, और कुशल और दर्शित मेडिकल से जुड़े कुछ काम के लिए बाहर निकल गए।

अब वार्ड में प्रिंस अकेला था। उसने धीरे से फाइल खोली। पहले ही पन्ने पर अर्निका की तीन-चार तस्वीरें लगी थीं। वो ध्यान से उन्हें देखने लगा।

अनजाने में ही उसके होंठों पर हल्की सी मुस्कान आ गई। कुछ देर तक तस्वीरें देखने के बाद उसने फाइल के पन्ने पलटने शुरू किए और अर्निका के बारे में पढ़ने लगा…



वहीं, मुंबई में…

अर्निका, ईनाया और अद्विक अपने अपार्टमेंट पहुँच चुके थे। तीनों ने अपना सामान उठाया और लिफ्ट की ओर बढ़े।

"आखिरकार! हम यहाँ पहुँच ही गए!" ईनाया ने थकान भरी आवाज़ में कहा।

"हाँ, लेकिन असली काम तो अब शुरू होगा।" अद्विक ने हँसते हुए जवाब दिया।

जैसे ही लिफ्ट उनके फ्लोर पर रुकी, तीनों ने दरवाजा खोलकर अपार्टमेंट में कदम रखा।

"वाह! यह अपार्टमेंट कम, और महल ज्यादा लग रहा है!" ईनाया ने चारों तरफ नजर दौड़ाते हुए कहा।

"ऑफ कोर्स! पापा ने इसे खुद कुकी के लिए खरीदा है!" अद्विक ने गर्व से कहा और सोफे पर गिर पड़ा।

अद्विक ने अर्निका की तरफ देखा और मुस्कुराकर पूछा, "कुकी, तुम्हें यह पसंद आया ना?"

अर्निका ने हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया, "हाँ, यह बहुत खूबसूरत है।"

तभी ईनाया सोफे पर बैठते हुए बोली, "भाई, यहाँ कितने कमरे हैं?"

अद्विक ने समझाते हुए कहा, "एक बड़ा हॉल, किचन, दो गेस्ट रूम, ऊपर तुम्हारा और कुकी का कमरा, साथ ही एक छोटा सा जिम और एक म्यूजिक रूम भी है।"

"वाओ! यह तो परफेक्ट है!" ईनाया ने खुशी से कहा।

अर्निका खिड़की के पास जाकर बाहर देखने लगी। मुंबई की चमचमाती रोशनी, ऊँची इमारतें और सड़कों पर भागती गाड़ियाँ… यह शहर सच में कभी नहीं सोता था।

तभी ईनाया ने पीछे से आवाज लगाई, "कुकी, तुमने सुना भाई ने क्या बताया अपार्टमेंट के बारे में?"

अर्निका मुस्कुराई और बोली, "हाँ, सुना।" फिर वह भी आकर सोफे पर बैठ गई।

अद्विक ने दोनों की तरफ देखते हुए कहा, "परसों से तुम्हारी कॉलेज शुरू हो जाएगी, तो कल से एक आंटी आएँगी घर का काम और खाना बनाने के लिए। अभी के लिए मैं कुछ ऑर्डर कर देता हूँ, तुम लोगों को क्या खाना है?"

ईनाया ने तुरंत कहा, "मुझे पराठा और पनीर लबाबदार चाहिए!"

उसकी बात सुनकर अद्विक और अर्निका हँस पड़े।

अद्विक ने अर्निका की तरफ देखा और पूछा, "कुकी, तुम्हें क्या खाना है?"

"मेरे लिए भी पनीर ऑर्डर कर दो, साथ में पुलाव और कुछ मीठा भी।" अर्निका ने मुस्कुराते हुए कहा।

"ठीक है!" अद्विक ने कहते हुए खाना ऑर्डर कर दिया। फिर दोनों की तरफ देखकर बोला, "तुम दोनों अपने कमरे में जाकर फ्रेश हो जाओ, खाना आने में एक घंटा लगेगा।"

दोनों ने सहमति में सिर हिलाया और अपने-अपने रूम में चली गईं। अद्विक भी गेस्ट रूम में जाकर फ्रेश होने लगा।



कुछ समय बाद अद्विक फ्रेश होकर हॉल में बैठा था और अपनी मामी से फोन पर बात कर रहा था। तभी ईनाया भी वहाँ आई और अद्विक से मोबाइल लेकर खुद बात करने लगी।

इसी बीच, डोरबेल बजी।

अद्विक ने दरवाजा खोला तो देखा कि खाना डिलीवर हो चुका था। उसने पैसे देकर खाना लिया और उसे डाइनिंग टेबल पर रख दिया।

इसके बाद, अद्विक ने ईनाया की तरफ देखा और आँखों से इशारा करते हुए पूछा, "कुकी अभी तक क्यों नहीं आई?"

ईनाया ने भी आँखों से ही जवाब दिया, "पता नहीं!"

कुछ समय बीतने के बाद, अर्निका (कुकी) नीचे आई। तब तक ईनाया ने भी फोन काट दिया था।

अर्निका को देखते ही अद्विक बोला, "मैं तुम्हें बुलाने ही वाला था। चलो, अब खाना खा लेते हैं, वरना ठंडा हो जाएगा।"

इसके बाद, तीनों ने साथ में खाना खाया और फिर सोने के लिए अपने-अपने कमरे में चले गए।














आगे किया होगा जानने के लिये मेरी कहानी रूह से रूह तक पढ़ते रहिए 

अगर कहीं कोई गलती हो गई हो, तो मुझे माफ कर दीजिएगा।

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