अगली सुबह...
खिड़की से आती सूरज की हल्की किरणें कमरे में बिखर रही थीं। ठंडी हवा और चिड़ियों की चहचहाहट के बीच अर्निका की नींद खुली। उसने घड़ी देखी—सुबह के 6:30 बजे थे।
वह धीरे से उठी, बालों को पीछे किया और बालकनी में आ गई। मुंबई की ऊँची इमारतों पर पड़ती धूप, सड़कों पर दौड़ती गाड़ियाँ और समंदर से आती ताज़ी हवा… एक नई शुरुआत का एहसास करा रही थी।
अर्निका ने गहरी सांस ली और मन ही मन सोचा, "आज से सबकुछ नया—नई जगह, नया सफर, नए लोग।"
तभी पीछे से अद्विक की आवाज़ आई, "गुड मॉर्निंग कुकी! इतनी जल्दी उठ गई?"
अर्निका हल्का मुस्कुराई, "आदत से मजबूर हूँ!"
"अब उठ ही गई हो तो चलो, थोड़ा वर्कआउट कर लेते हैं!" अर्निका ने उत्साह से कहा।
"अभी नहीं! तुम जाओ, मुझे और सोना है!" अद्विक ने आलस से कहा और सोफे पर पसर गया।
अर्निका ने सिर हिलाया और हँसते हुए बोली, "भाई, आप तो और भी आलसी होते जा रहे हो!" फिर बिना और कुछ सुने, उसने उसे खींचकर जबरदस्ती जिम की तरफ ले चली।
जिम में घुसते ही अद्विक बोला, "कुकी, इनी को भी बुला ले, मैं अकेले क्यों एक्सरसाइज़ करूँ? उसे भी उठा ला!"
अर्निका मुस्कुराई, "ठीक है, आप स्टार्ट करो, मैं उसे ले आती हूँ।" यह कहकर वह चली गई।
कुछ देर बाद, अर्निका ईनाया को लगभग घसीटते हुए जिम में लेकर आई। ईनाया अभी भी नींद में थी और आँखें मलते हुए बोली, "कुकी, सच में? इतनी सुबह जिम?"
अर्निका हँसते हुए बोली, "बिलकुल! वैसे भी कल से कॉलेज शुरू हो रहा है, तो सुबह जल्दी उठने की आदत डालनी होगी। आज से ही शुरुआत कर लेते हैं!"
ईनाया ने हल्की नाराजगी जताते हुए कहा, "तुम्हारे साथ रहकर मेरी नींद की तो दुश्मनी हो जाएगी! कॉलेज कल से है, आज तो सोने देती!"
अद्विक हँसते हुए बोला, "बहाने मत बनाओ, चलो-चलो, वर्कआउट शुरू करो!" और डम्बल उठाने लगा।
तीनों ने साथ में स्ट्रेचिंग की, फिर थोड़ा कार्डियो किया। वर्कआउट खत्म होने के बाद वे फ्रेश होने के लिए अपने-अपने कमरों में चले गए।
बनारस…
त्रिपाठी सदन में सुबह की आरती चल रही थी। दादी, माधवी और अर्चना जी दीया जलाकर भगवान से अपने परिवार और बेटियों की सलामती की प्रार्थना कर रही थीं।
आरती के बाद, माधवी जी और अर्चना जी कुछ नौकरों के साथ नाश्ता बनाने के लिए किचन की ओर बढ़ गईं।
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मुंबई… ब्रेकफास्ट टेबल पर…
अद्विक किचन से कॉफी लेकर आया और तीनों टेबल पर बैठ गए।
तभी सरिता ताई, जो अब से घर का सारा काम संभालने वाली थीं, गरमा-गरम नाश्ता टेबल पर लगाकर सफाई करने लगीं। नाश्ते में आलू के पराठे, पुदीने की चटनी और दही था।
तीनों ने मजे से नाश्ता किया और फिर सोफे पर बैठ गए। तभी अर्निका ने अद्विक की ओर देखा और बोली, "भाई, मुझे आपसे कुछ पूछना था।"
अद्विक ने तुरंत जवाब दिया, "हां, बोलो।"
अर्निका ने एक बार ईनाया की तरफ देखा, फिर धीरे से बोली, "मुझे एक बाइक खरीदनी है।"
अद्विक का रिएक्शन तुरंत आया, "बाइक? लेकिन क्यों? तुम दोनों के पास दो कारें हैं कॉलेज जाने के लिए, और एक स्पोर्ट्स कार भी है पार्टी के लिए। फिर बाइक की क्या जरूरत?"
अर्निका ने उत्साह से कहा, "भाई, आपको तो पता है न, मुझे बाइक चलाना कितना पसंद है! बनारस में दादी कभी चलाने नहीं देतीं, लेकिन यहाँ तो कोई रोकने वाला नहीं है। और घर जाकर तो आप उनसे कुछ कह भी नहीं सकते। वैसे भी, कभी-कभी तो कार से भी कॉलेज जाएंगे, लेकिन प्लीज़, चलो ना बाइक शोरूम!"
इस पर ईनाया भी तुरंत बोली, "हाँ, मैं भी एक लूंगी! फिर दोनों साथ बाइक से कॉलेज जाएंगे!"
उन दोनों की बातें सुनकर अद्विक ने माथे पर हाथ मारते हुए कहा, "हे भगवान! तुम दोनों ने ठान लिया है क्या, मुझे मरवाने का? अगर दादी को पता चला, तो मेरी खैर नहीं!"
ईनाया ने हंसते हुए कहा, "अरे भाई, कुछ नहीं होगा! और जब दादी को पता ही नहीं चलेगा, तो टेंशन क्यों ले रहे हो?"
अद्विक ने गहरी सांस लेते हुए कहा, "ठीक है, चलते हैं!"
ये सुनते ही अर्निका और ईनाया खुशी से उछल पड़ीं।
"लेकिन एक शर्त है," अद्विक ने सख्त लहज़े में कहा, "सेफ्टी गियर लिए बिना बाइक नहीं मिलेगी। हेलमेट और जैकेट भी खरीदने होंगे!"
"ओके बॉस!" अर्निका ने मुस्कुराते हुए कहा।
ईनाया ने भी मज़ाकिया अंदाज में कहा, "भाई, चलो जल्दी! कहीं तुम अपना मन ही न बदल लो!"
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दूसरी ओर, प्रिंस के वार्ड में…
प्रिंस, दर्शित और कुशल साथ में ब्रेकफास्ट कर रहे थे और इधर-उधर की बातें कर रहे थे।
तभी दर्शित ने कुशल से पूछा, "भाई, हम लोग मुंबई जाकर घर में ही रहेंगे या हॉस्पिटल में रहना पड़ेगा?"
कुशल ने जवाब दिया, "घर में ही रहना है, लेकिन डॉक्टर रोज़ चेकअप के लिए आएंगे। और तुम दोनों को अपनी सेहत का खास ख्याल रखना होगा—खासकर प्रिंस, तुम्हें अपनी चोट को लेकर ज़्यादा सतर्क रहना पड़ेगा।"
इस पर प्रिंस ने गंभीर स्वर में कहा, "मुंबई जाकर तुम्हें अर्निका के बारे में पता करना है। वो कहां ठहरी है, ये जानना ज़रूरी है। और हाँ, उसकी सेफ्टी के लिए उसके पीछे किसी को लगा देना, लेकिन ध्यान रखना कि उसे इसका एहसास न हो।"
दर्शित ने चौंककर पूछा, "भाई, ये जानना ठीक है कि वो कहां रह रही है, लेकिन किसी को उसके पीछे क्यों लगाना?"
इससे पहले कि प्रिंस कुछ कहता, कुशल ने समझाते हुए कहा, "उस दिन उसने तुम दोनों को बचाया था और गुंडों से भी भिड़ गई थी। उन गुंडों ने उसे देख लिया था। क्या पता, वे उसे भी निशाना बनाने की कोशिश करें? प्रिंस सिर्फ उसकी सुरक्षा के लिए ये कदम उठा रहा है।"
दर्शित ने चिंतित होकर कहा, "वो सब तो मैं समझ गया, लेकिन अगर उन्हें पता चल गया कि कोई उनका पीछा कर रहा है तो?"
प्रिंस ने शांत स्वर में जवाब दिया, "उन्हें कुछ पता नहीं चलेगा, क्योंकि ये काम वेरोन और उसकी टीम करेगी।"
"वेरोन?" उसका नाम सुनते ही दर्शित और कुशल एकदम चौंक गए।
वेरोन प्रिंस का सबसे भरोसेमंद शैडो गार्ड था, जो सिर्फ उसी के आदेशों का पालन करता था। दोनों ने एक-दूसरे की तरफ देखा, लेकिन कुछ बोले नहीं।
प्रिंस ने कुछ सोचते हुए कहा, "एक काम करो, मुंबई में अर्निका और उसके साथ जो भी है, उनकी तस्वीरें मुझे भेज दो। मैं उन्हें वेरोन को दे दूंगा, फिर वो बाकी का काम संभाल लेगा।"
कुशल ने सिर हिलाया और तुरंत अर्निका और ईनाया की तस्वीरें अपने फोन से प्रिंस को भेज दीं।
मुंबई, बाइक शोरूम में…
तीनों जैसे ही बाइक शोरूम पहुंचे, वहाँ की चमचमाती बाइक्स देखकर अर्निका और ईनाया की आँखें खुशी से चमक उठीं।
"वाह! कितनी शानदार बाइक्स हैं यहाँ!" ईनाया ने उत्साह से कहा।
अर्निका एक ब्लैक और रेड स्पोर्ट्स बाइक के पास जाकर रुकी और उसे ध्यान से देखते हुए बोली, "बस, यही चाहिए!"
अद्विक ने बाइक की स्पेसिफिकेशन चेक की और पूछा, "ये काफी पावरफुल है, तुम इसे संभाल पाओगी?"
अर्निका ने आँखें घुमाते हुए कहा, "भाई, आपको सच में लगता है कि मुझे बाइक चलानी नहीं आती?"
उधर, ईनाया ने भी अपनी पसंद की ब्लू और व्हाइट बीएमडब्ल्यू स्पोर्ट्स बाइक चुन ली।
अद्विक ने थोड़ी देर सोचने के बाद कहा, "ठीक है, ले लो… लेकिन एक शर्त है—तुम दोनों अपना पूरा ध्यान रखोगी!"
"यस सर!" दोनों ने हँसते हुए मज़ाक में सैल्यूट किया।
बाइक की सारी फॉर्मेलिटीज पूरी करने के बाद शोरूम के स्टाफ ने बताया कि बाइक्स उनके अपार्टमेंट तक डिलीवर कर दी जाएंगी।
अद्विक ने जाते-जाते कहा, "अब जब बाइक मिल गई है, तो चलो, पहले पेट पूजा कर लेते हैं। मुझे बहुत भूख लगी है!"
"ओके बॉस!" अर्निका और ईनाया ने फिर मज़ाक में कहा और तीनों एक अच्छे रेस्टोरेंट में चले गए।
खाना खाने के बाद, वे कुछ ज़रूरी सामान खरीदकर अपार्टमेंट लौट आए क्योंकि शाम 8 बजे अद्विक की बनारस के लिए फ्लाइट थी।
बनारस में…
प्रिंस मुंबई लौटने की तैयारियों का अपडेट ले ही रहा था कि तभी डॉक्टर माधवी उसके वार्ड में आईं। उन्हें देखकर प्रिंस ने मुस्कुराते हुए उनका अभिवादन किया। डॉक्टर माधवी ने पास आकर उसका चेकअप शुरू किया, ताकि यह सुनिश्चित कर सकें कि सफर के दौरान कोई समस्या न हो।
उन्होंने उसकी पट्टी की जांच करते हुए कहा, "जख्म तेजी से भर रहा है, लेकिन यात्रा के दौरान झटकों से बचना होगा, वरना दर्द बढ़ सकता है।"
प्रिंस हल्की मुस्कान के साथ बोला, "मैं ध्यान रखूँगा, डॉक्टर। लेकिन अब और यहाँ नहीं रुक सकता, जितनी जल्दी हो सके, मुंबई वापस जाना चाहता हूँ।"
डॉक्टर माधवी ने सिर हिलाया, "ठीक है, लेकिन मुंबई पहुँचकर भी ध्यान रखना। मैंने दो नई दवाएँ जोड़ी हैं, बाकी दवाइयाँ भी समय पर लेते रहना।" फिर उन्होंने दर्शित की तरफ देखते हुए कहा, "और तुम भी अपना ख्याल रखना।"
कुशल ने तुरंत जवाब दिया, "चिंता मत करिए, डॉक्टर!"
डॉक्टर माधवी ने रिपोर्ट्स चेक कीं और बोलीं, "ठीक है, मैं डिस्चार्ज पेपर्स तैयार करवा देती हूँ।" यह कहकर वे वहाँ से चली गईं।
उनके जाने के बाद कुशल ने बताया, "दादी और बाकी लोग सीधे एयरपोर्ट पर मिलेंगे।" फिर वह बाकी तैयारियों में जुट गया।
इधर, प्रिंस ने भी मोबाइल उठाया और कुछ ज़रूरी काम करने लगा।
मुंबई एयरपोर्ट, शाम 7 बजे…
अर्निका और ईनाया, अद्विक को एयरपोर्ट पर विदा करने आई थीं। अद्विक ने उन्हें देखकर कहा, "अच्छे से रहना, किसी से पंगा मत लेना और पढ़ाई पर ध्यान देना, खासकर तुम, इनी!"
"हाँ भई, समझ गई!" ईनाया ने मज़ाकिया अंदाज़ में कहा, "आप ऐसे बोल रहे हैं, जैसे मैं हमेशा झगड़े करती हूँ!"
अद्विक हंसकर बोला, "तुम पर भरोसा नहीं किया जा सकता!" फिर वह अर्निका की ओर मुड़ा, "और तुम, कुकी, कोई परेशानी हो तो सीधे कॉल करना, ठीक है? अपना और इसका अच्छे से ध्यान रखना।"
अर्निका हल्की मुस्कान के साथ सिर हिला गई, लेकिन उसकी आँखों में हल्की नमी थी।
"अब इमोशनल मत हो, मुझे लेट मत करवाओ!" अद्विक ने हल्के से दोनों को गले लगाया और सिक्योरिटी चेक की ओर बढ़ गया।
अर्निका और ईनाया तब तक खड़ी रहीं, जब तक वह अंदर नहीं चला गया।
ईनाया ने लंबी सांस लेते हुए कहा, "अब इस बड़े शहर में हम दोनों को एक-दूसरे का सहारा बनकर रहना होगा।"
अर्निका मुस्कुराई, "नाटकबाज़ कहीं की!"
ईनाया हंसकर बोली, "चलो, वापस चलते हैं! कल से हमारी नई जिंदगी शुरू होने वाली है।"
इसके बाद दोनों कार की ओर बढ़ गईं।
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उसी समय, मुंबई एयरपोर्ट के प्राइवेट सेक्शन में…
एक प्राइवेट फ्लाइट लैंड हुई। इस सेक्शन में हाई-लेवल सिक्योरिटी थी। बॉडीगार्ड्स पूरे एरिया में तैनात थे, ताकि कोई अनजान व्यक्ति पास न आ सके।
ब्लैक हुडी और कैप पहने प्रिंस व्हीलचेयर पर बैठा था, और कुशल उसे धीरे-धीरे बाहर की ओर ले जा रहा था। दर्शित उनके ठीक पीछे था, और दादी सहित बाकी लोग भी उनके साथ थे।
मुंबई एयरपोर्ट – प्राइवेट सेक्शन
कुशल के असिस्टेंट ने आगे आकर कहा, "सर, हेलीकॉप्टर तैयार है।"
कुशल ने हल्का सिर हिलाया और प्रिंस की तरफ देखा, "चलो, हमें ज़्यादा देर नहीं करनी चाहिए।"
दर्शित ने चारों ओर नजर दौड़ाई, फिर अपनी दादी की तरफ मुड़कर बोला, "दादी, हेलीकॉप्टर तक आपको आराम से ले जाया जाएगा, वहाँ से सीधे घर पहुँचेंगे।"
दादी ने प्यार से प्रिंस के सिर पर हाथ रखते हुए कहा, "बस, अब तुम जल्दी ठीक हो जाओ।"
प्रिंस ने हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाया।
"चलो," कुशल ने इशारा किया, और सभी हेलीकॉप्टर की ओर बढ़ने लगे।
बॉडीगार्ड्स ने पूरे रास्ते सुरक्षा घेरा बनाए रखा। प्रिंस को सावधानी से हेलीकॉप्टर में बैठाया गया, दादी और बाकी लोग भी अंदर आ गए।
जैसे ही सभी अपनी जगह पर बैठ गए, हेलीकॉप्टर ने राठौर भवन की ओर उड़ान भर ली।
मुंबई – अपार्टमेंट में…
अर्निका और ईनाया एयरपोर्ट से लौटकर अपार्टमेंट पहुँचीं और सीधे सोफे पर गिर पड़ीं। तभी सरिता ताई पानी लेकर आईं और मुस्कुराते हुए बोलीं, "अर्निका बेबी, मैंने खाना तैयार कर दिया है। आप लोग खा लीजिए, मैं सुबह आऊँगी।"
अर्निका ने सिर हिलाया और घर की एक चाबी निकालकर सरिता ताई को दी, "ठीक है ताई, ये चाबी रख लीजिए।"
सरिता ताई ने चाबी लेते हुए कहा, "ठीक है, बेबी। आप दोनों आराम कीजिए, मैं चलती हूँ।"
उनके जाते ही ईनाया ने लंबी सांस ली और सोफे पर पसर गई, "उफ्फ! आज का दिन कितना लंबा था!"
अर्निका ने हल्की मुस्कान दी, लेकिन उसकी आँखों में थकान साफ दिख रही थी।
"भूख लगी है?" उसने ईनाया से पूछा।
ईनाया ने तुरंत सिर हिलाया, "बहुत! चलो, खाना खा लेते हैं, फिर सोएंगे।"
दोनों डाइनिंग टेबल पर गईं। सरिता ताई ने उनकी पसंद का खाना बनाया था—मिक्स वेज करी, रोटी और हल्का पुलाव।
खाना खाते हुए ईनाया ने अर्निका को देखा, "तू इतनी चुप क्यों है?"
अर्निका ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "कुछ नहीं, बस थक गई हूँ।"
ईनाया ने समझते हुए कहा, "घर की याद आ रही है, ना? मुझे भी बहुत मिस हो रहा है।"
अर्निका ने सिर हिलाया, "हाँ, लेकिन धीरे-धीरे आदत हो जाएगी।"
थोड़ी देर तक बात करने के बाद दोनों ने खाना खत्म किया, टेबल साफ की और अपने-अपने कमरे में चली गईं।
अर्निका कमरे में जाकर खिड़की के पास खड़ी हो गई। मुंबई की जगमगाती रोशनी को देखा, फिर अपना मोबाइल उठाकर माँ का नंबर डायल किया।
राठौड़ हवेली – प्रिंस की वापसी
तेज़ हवा के झोंकों के बीच हेलीकॉप्टर राठौड़ हवेली के हेलीपैड पर लैंड हुआ। हवेली में पहले से ही हलचल थी—बॉडीगार्ड्स मुस्तैद खड़े थे, नौकर-चाकर तैयारियों में लगे थे।
हेलीकॉप्टर का दरवाजा खुला। सबसे पहले कुशल बाहर आया, फिर दर्शित ने व्हीलचेयर को संभालते हुए प्रिंस को उतारा।
"सावधानी से," कुशल ने धीरे से कहा।
दर्शित मुस्कुराया, "कुछ नहीं होगा, आप बेफिक्र रहें।"
तभी दादी आगे बढ़ीं और प्यार से बोलीं, "छोटू, संभल कर… कहीं चोट न लग जाए।" फिर कुशल की तरफ देखकर बोलीं, "प्रिंस को तू संभाल ले, ये नालायक खुद को संभाल भी पाएगा या नहीं, पता नहीं!"
सभी लोग हवेली के अंदर बढ़े। नौकरों ने उन्हें सम्मानपूर्वक प्रणाम किया। दरवाजे पर दादाजी और बाकी परिजन बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे।
जैसे ही दादाजी की नजर व्हीलचेयर पर बैठे प्रिंस पर पड़ी, वो तेजी से आगे आए, "बेटा, तू ठीक तो है ना?"
प्रिंस के पापा ने भी चिंता से पूछा, "कहीं दर्द तो नहीं हो रहा?"
प्रिंस हल्का मुस्कुराया, "मैं ठीक हूँ, पापा। थोड़ा दर्द है, लेकिन अब सब ठीक हो जाएगा।"
दादाजी ने उसके सिर पर प्यार से हाथ रखा, "बेटा, तू हमारा अभिमान है। तुझे इस हालत में देखकर दिल परेशान हो जाता है।"
प्रिंस ने उनकी तरफ देखा और हल्का सिर झुका लिया। वो समझ सकता था कि परिवार उसकी चोट को लेकर कितना चिंतित था।
"चलो, इसे इसके कमरे में ले चलो," दादी ने कहा।
कुशल और दर्शित ने व्हीलचेयर को आगे बढ़ाया और लिफ्ट की तरफ ले गए।
राठौड़ हवेली – शाही ठाठ
राठौड़ हवेली महल जैसी भव्य थी—लंबे गलियारे, ऊँची छतें, नक्काशीदार खंभे, झूमर और हर कोने में शाही ठाठ-बाठ। हवेली सात मंज़िला थी और छठा व सातवां फ्लोर पूरी तरह से प्रिंस के लिए डिज़ाइन किया गया था।
प्रिंस का कमरा किसी राजमहल से कम नहीं था—लक्ज़री बेडरूम, अटैच्ड बड़ी बालकनी, हाई-टेक सिक्योरिटी सिस्टम, प्राइवेट ऑफिस, मिनी होम थिएटर और एक इनडोर जिम।
जैसे ही कुशल और दर्शित प्रिंस को लेकर कमरे में पहुँचे, नौकर पहले से ही तैयार थे। प्रिंस के लिए खास सर्वेंट रखे गए थे, जो सिर्फ उसी की देखभाल करते थे।
कुशल ने धीरे से उसे बेड पर शिफ्ट किया।
प्रिंस ने चारों तरफ नजर घुमाई, जैसे बहुत समय बाद अपने ठिकाने पर लौटा हो। तभी दादाजी और बाकी लोग अंदर आए, साथ में डॉक्टरों की टीम भी थी, जो हमेशा प्रिंस के लिए तैयार रहती थी।
डॉक्टर ने बिना देरी किए जाँच शुरू कर दी। पट्टियाँ चेक की गईं, ब्लड प्रेशर और हार्ट रेट मॉनिटर किया गया।
"सब ठीक है, लेकिन आपको ज्यादा मूवमेंट से बचना होगा," डॉक्टर ने चेतावनी दी।
प्रिंस ने सिर हिलाया, "मैं ध्यान रखूँगा।"
तभी उसके बड़े पापा अमरेश ने पूछा, "पूरी तरह ठीक होने में कितना वक्त लगेगा?"
डॉक्टर ने जवाब दिया, "ज़ख्म तेजी से भर रहे हैं। बनारस में आपका इलाज करने वाले डॉक्टर बहुत काबिल थे। मुझे लगता है, 7-10 दिन में आप पूरी तरह ठीक हो जाएंगे।"
दादाजी ने प्रिंस के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, "जब तक तू पूरी तरह ठीक नहीं हो जाता, हमें चैन नहीं आएगा।"
प्रिंस ने हल्के स्वर में कहा, "दादाजी, मैं ठीक हूँ। ज्यादा चिंता मत करिए।"
तभी उसकी माँ आगे बढ़ीं, प्यार से उसके गाल पर हाथ रखा, "तू कितना भी बड़ा हो जाए, हमारे लिए हमेशा छोटा ही रहेगा।"
प्रिंस मुस्कुराया, "अब बस करो, माँ। मैं ठीक हूँ।"
कुशल ने डॉक्टरों को इशारा किया, और वो रिपोर्ट्स लेकर बाहर चले गए।
दादाजी ने सभी से कहा, "अब प्रिंस को आराम करने दो, चलो सब बाहर चलते हैं।" फिर दर्शित की तरफ देखकर बोले, "छोटू, तुझे भी चोट लगी है। तुझे भी आराम करना चाहिए।"
दर्शित हल्का मुस्कुराया, "दादाजी, मैं ठीक हूँ। लेकिन अगर आप कह रहे हैं, तो थोड़ा आराम कर लूँगा।"
दादाजी ने सख्त लहजे में कहा, "अब बहस मत कर, जाकर सो जा।"
धीरे-धीरे सब कमरे से बाहर जाने लगे।
कुशल सबसे आखिर में था। उसने प्रिंस की तरफ देखा, "कुछ चाहिए तो बस एक कॉल करना।"
प्रिंस ने सिर हिलाया, "फिलहाल मुझे बस शांति चाहिए। कोई डिस्टर्ब न करे।"
कुशल हल्का मुस्कुराया और कमरे का दरवाजा बंद कर दिया।
जैसे ही कमरा शांत हुआ, प्रिंस ने गहरी सांस ली और छत की ओर देखने लगा। कुछ देर बाद, जैसे ही उसने आँखें बंद की, अर्निका की छवि उसके सामने उभर आई—वो निडर आँखें, जिनमें डर का नामोनिशान नहीं था, और वो बेबाक अंदाज़, जिससे उसने उन गुंडों के सामने भी बिना हिचक खड़े होकर उसका साथ दिया था।
अचानक, प्रिंस ने झटके से आँखें खोल दीं और खुद से बड़बड़ाया, "मुझे क्या हो रहा है? मैं बार-बार उसी के बारे में क्यों सोच रहा हूँ?"
उसने खुद को संभालने की कोशिश की, लेकिन अर्निका की तस्वीर उसके ज़हन से हट ही नहीं रही थी। वो लम्हा जब उसने बहादुरी से उसका बचाव किया था, किसी फिल्म की तरह उसकी आँखों के सामने घूमने लगा।
गहरी सांस लेते हुए उसने सोने की कोशिश की। कुछ देर बाद, दवाइयों के असर से उसकी आँखें भारी होने लगीं और वो गहरी नींद में चला गया।
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