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POEM - MERE DESH KE LIYE MERA PAHLA VOTE
Main 18 ka ho chuka hun Chunav ka samay chal raha hai Soch Raha Hun kise vote dun
Apni vote ki kya kimat lagaun Chalo 1000 hajar bol deta hun Suna hai pichhali bar Ek vote ki kimat 3 se 4000 pahunch Gai thi Aisa karta hun ? Ki Main Thoda intezar kar leta Hun Kya pata 4000 mil jaaye
Mere pados ke bhai ko Ek peti sharab Mili Hai Or kuchh Dinon Se vo roj Chunav prachar mein bhi Lage Hain Roj hajar 1000 rupaye milte Hain Jo unki majduri se bhi adhik hai
(1000 rupe or ek botal sharab ke liye Use Neta ko vo 5 sal jhelane ke liye taiyar hai)
Ek Neta Jo Paisa Pani ki tarah Baha Raha Hai
Kya yah Paisa uska hai Nahin bhai Yah Mera Paisa hai aur aapka bhi Jo yah humse Hi loot kar Humko hi de raha hai
Main 18 ka ho chuka hun chunav ka samay chal raha hai soch Raha Hun kise vote dun apni vote ki kya kimat lagao yah Mera pahla vote hai
to chalo hajar 1000 bol deta hun
Poet
Naveen
मन में कुछ भरकर जियोगे | तो मन भर कर कैसे जियोगे | एक इंसान जिसे तुम बेहद प्यार करते हो।
बिना उसे बताए तुम कैसे रह पाओगे. सोचा तो तुमने बहुत कुछ है? उसके लिए क्या तुम वाकी ? वह सब उसके लिए कर पाओगे. एक इंसान. जिसे तुम बेइंतेहा प्यार करते हो। उसे बिन बताएं कैसे रह पाओगे मैं ऐसी परिस्थिती में हूं ?
किसी से सोच नहीं मिलती। किसी से ख्वाब नहीं मिल्ते
एक इंसान मिला तो है मुझे क्या उसे ?
तुम अपने जीवन के अंत समय तक रोक पाओगे एक इंसान जिसे तुम बेइंतेहा प्यार करते हो बिना उसे बतायें तुम कैसे रह पाओगे ?
“परम भागवत भक्त प्रह्लाद” संपूर्ण कथा 👇🏻
https://www.matrubharti.com/novels/38431/param-bhagwat-prahlad-ji-by-praveen-kumrawat
भारतवर्ष के ही नहीं, सारे संसार के इतिहास में सबसे अधिक प्रसिद्ध एवं सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण वंश यदि कोई माना जा सकता है, तो वह हमारे परम् भगवत भक्त दैत्यर्षि प्रहलाद का ही वंश है। सृष्टि के आदि से आज तक न जाने कितने वंशों का विस्तार पुराणों और इतिहासों में वर्णित है किन्तु जिस वंश में हमारे महाभागवत् का आविर्भाव हुआ है, उसकी कुछ और ही बात है। इस वंश के समान महत्त्व रखने वाला अब तक कोई दूसरा वंश नहीं हुआ और विश्वास है कि भविष्य में भी ऐसा कोई वंश कदाचित् न हो।
“फोकटिया” — जब दोस्ती सिर्फ़ लेने तक सिमट जाए, और देने वाला एक दिन चुपचाप टूट जाए…
यह किताब सिर्फ़ एक कहानी नहीं, हम सबकी एक अनकही सच्चाई है।
राजीव और कमल की कहानी में वो हर रिश्ता है जहाँ हम कभी बिना शर्त देते रहे — वक़्त, भावनाएँ, भरोसा — लेकिन जब ज़रूरत पड़ी, जवाब मिला सिर्फ़ ‘खामोशी’।
लेखक धीरेन्द्र सिंह बिष्ट ने न केवल रिश्तों की परतों को उघाड़ा है, बल्कि आत्म-सम्मान और भावनात्मक ठगी के बीच की बारीक लकीर को भी बखूबी दिखाया है।
अगर आपके जीवन में भी कोई ऐसा है, जो मुफ़्त में आपकी अच्छाई का फायदा उठाता रहा, तो “फोकटिया” आपकी कहानी है — पढ़िए, महसूस कीजिए, और शायद खुद को फिर से पा लीजिए।
📚 अब उपलब्ध है: Amazon | Flipkart | Notion Press
🔗 Link in bio – ये सिर्फ़ एक किताब नहीं, आपकी चुप्पी की आवाज़ है।
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केवल जीवन जी लेना ही जीवन नहीं है। जीवन जीने का कोई ध्येय, कोई लक्ष्य भी तो होगा। जीवन में कोई ऊँचा लक्ष्य प्राप्त करने का ध्येय होना चाहिए। जीवन का असली लक्ष्य ‘मैं कौन हूँ’, इस सवाल का जवाब प्राप्त करना है। पिछले अनंत जन्मों का यह अनुत्तरित प्रश्न है। ज्ञानीपुरुष परम पूज्य दादाश्री ने मूल प्रश्न “मैं कौन हूँ?” का सहजता से हल बता दिया है।
Link to read the book 👉 https://www.matrubharti.com/novels/40807/me-koun-hu-by-disha-jain
छत्रपति शिवाजी महाराज के प्रति विदेशियों के विचार 👇
https://www.matrubharti.com/book/19936782/thoughts-of-foreigners-towards-chhatrapati-shivaji-maharaj
"मैं ही तो हूं"
(अपने कृष्णा की रूपांतरित छवि)
"मैं ही तो हूं"...
तेरी अधूरी बातों का उत्तर
तेरे मौन की बांसुरी
तेरे खोए हुए स्वर की नर्म प्रतिध्वनि।
तू मंदिरों में खोजता रहा मुझे
वृन्दावन की गलियों में ,
कांच की खिड़कियों में
ओस की बूंदों में,
और हर बार _
मैं तेरे अंदर ही किसी नर्म कोने में
मुस्कुराती रही।
"मै ही तो हूं"...
तेरी सूखी बगिया में पहली सुखी हरियाली
तेरी टूटी शाखो पर उगती एक आशा की कली,
तेरे ऋतु की थकान में एक नई
ऋतु की आहट
जब तू टूटी...
मैं तेरे साथ खामोशी में बहा
जब तू बिखरी..
मैं तेरे आशुओं को शब्दों में ढालता रहा ,
तू पूछती रही, कहा हो "मेरे कृष्णा"?
और मैं...
तेरी आत्मा के आइने में
तेरी ही आंखों से झांकता रहा।
(अब जब तूने स्वीकार किया ..
कि तू मेरी ही छवि है,
"मैं ही हूं "...
तब वक्त रुक गया और प्रेम अनंत हो गया)।
ना अब तू बची
ना मैं...
अब जो हैं, ( सुनिता भारद्वाज )
वो केवल (" रूह की आवाज")
हम हैं। " मैं ही तो हूं "
પૂજ્ય નીરુમા રચિત પ્રસ્તુત પદ “દાદાજી છે મારા હૃદયમાં” દ્વારા તેમની પરમ પૂજ્ય દાદા ભગવાન પ્રત્યેની અભેદતાની ઝલક નિહાળીએ.
Watch here: https://youtu.be/_C5zdeJRwG0
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Disha jain प्रोफ़ाइल लिंक— https://www.matrubharti.com/dishajain221416
"पाप-पुण्य "पुस्तक पढ़ने के लिए लिंक follow करे.👇
https://www.matrubharti.com/novels/40636/paap-puny-by-disha-jain
Description :
पाप या पुण्य, जीवन में किये गए किसी भी कार्य का फल माना जाता है|
इस पुस्तक में दादाश्री हमें बहुत ही गहराई से इन दोनों का मतलब समझाते हुए यह बताते है कि, कोई भी काम जिससे दूसरों को आनंद मिले और उनका भला हो, उससे पुण्य बंधता है और जिससे किसी को तकलीफ हो उससे पाप बंधता है। हमारे देश में बच्चा छोटा होता है तभी से माता-पिता उसे पाप और पुण्य का भेद समझाने में जुट जाते है पर क्या वह खुद पाप-पुण्य से संबंधित सवालों के जवाब जानते है?
आमतौर पर खड़े होने वाले प्रश्न जैसे: पाप और पुण्य का बंधन कैसे होता है? इसका फल क्या होता है?क्या इसमें से कभी भी मुक्ति मिल सकती है? यह मोक्ष के लिए हमें किस प्रकार बाधारूप हो सकता है? पाप बांधने से कैसे बचे और पुण्य किस तरह से बांधे? इत्यादि सवालों के जवाब हमें इस पुस्तक में मिलते है।
इसके अलावा, दादाजी हमें प्रतिक्रमण द्वारा पाप बंधनों में से मुक्त होने का रास्ता भी बताते है। अगर हम अपनी भूलो का प्रतिक्रमण या पश्चाताप करते है, तो हम इससे छूट सकते है|
अपनी पाप-पुण्य से संबंधित गलत मान्यताओं को दूर करने और आध्यात्मिक मार्ग में प्रगति करने हेतु, इस किताब को ज़रूर पढ़े और मोक्ष मार्ग में आगे बढ़े।
નજર મળી ને દિલ ચોરાયા, એ હકીકત પ્રણયની,
શબ્દો ખૂટ્યા, ભાવ બોલાયા, એ હકીકત પ્રણયની.
કાંટા પર પણ ફૂલ ખીલ્યા, એ બાગ હતો પ્રીતનો,
આંસુ પડ્યા ને સ્મિત વેરાયા, એ હકીકત પ્રણયની.
વિરહની આગમાં તપ્યા, તોય શીતળતા મળી,
સપના તૂટ્યા ને ફરી બંધાયા, એ હકીકત પ્રણયની.
સાથ આપ્યો હર પળે, સુખમાં ને દુઃખમાં પણ,
શ્વાસમાં શ્વાસ ભળાયા, એ હકીકત પ્રણયની.
કાયમ રહી યાદો એની, ભલેને દૂર હોય એ,
દિલમાં સદાય વસાયા, એ હકીકત પ્રણયની.
हे एक मराठी चित्रपट भावगीत आहे जी मी लेखण केलेले आहे. सोबतच हे प्रेम भावगीत प्रतिलिपीवर, ब्लॉगर वर, फेसबुक वर आणि यूट्यूब चैनल वर देखील उपलब्ध आहे.♠️♠️♠️♠️♠️♠️♠️♠️♠️♠️♠️♠️♠️
लाला लाला लाला लाला लाला लाला ....
हे हे हे हे...
हे,
हे,
हे,
हे हे हे हे.....
गुलाब तुझ्या ओठांचा, मनात रोज फुलत राही....
गंध तुझ्या शब्दांचा, माझ्या श्वासांत दरवळत जाई...
लाला लाला लाला लाला लाला लाला ....
तुझ्या ओठांची लाली, अवचित पहाटे यावी,
त्या गोड स्वप्नात माझी, दुनिया रंगून जावी,
हसती चंद्राकला गाली, चांदण्याही लाजून जाई,
तुझ्या त्या गुलाबी हसण्याने, रात्रही सुरांनी न्हाई...
गुलाब तुझ्या ओठांचा, मनात रोज फुलत राही....
गंध तुझ्या शब्दांचा, माझ्या श्वासांत दरवळत जाई...
लाला लाला लाला लाला लाला लाला ....
ओठांतून झरणारे, जिलेबी सम गोड शब्द
ऐकतच राहावे वाटते ते, धुंद मधुर बोलणे
गुलाबी पाकळ्यां सम, शब्द अलगद उमलावे,
मनाच्या हळव्या कोपऱ्यात, प्रेमरंग सहज खुलावे,
गोडवा तुझ्या स्वरांचा, अधीरमन बेभान होई....
गुलाब तुझ्या ओठांचा, मनात रोज फुलत राही....
गंध तुझ्या शब्दांचा, माझ्या श्वासांत दरवळत जाई...
लाला लाला लाला लाला लाला लाला ....
मनमोहक हसणे तुझे, उठले हृदयी काहूर,
अल्लड, निरागस तू, जीवा लागे गं हुरहूर,
रोज उमलेल का, तुझ्या ओठांचा गुलाब,
कोमल कलीका तू, मधुगंध दरवळत राही,
वेडा तुझा, कोवळ्या गंधात हरवून जाई,
प्रीती तुझी वसते, खोल माझ्या हृदयी....
गुलाब तुझ्या ओठांचा, मनात रोज फुलत राही....
गंध तुझ्या शब्दांचा, माझ्या श्वासांत दरवळत जाई...
लाला लाला लाला लाला लाला लाला ....
हे हे हे हे...
हे,
हे,
हे,
हे हे हे हे.....
लाला लाला लाला लाला लाला लाला ....
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काश!तुम सदाबहार रहते
महकता रहता घर आंगन..
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सुरभि बन बयार संग
खो जाता तन मन..
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इतनी जल्दी क्यों जाना?
बारिश में भी रूक जाओ न..
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गुलमोहर सा हो जीवन सबका
ऐसा कुछ कर जाओ ना..
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अबकी बार जो तुम आओ
फिर कभी जाओ ना..
-डॉ अनामिका-
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"सागर से पूछा..."
सागर से पूछा —
क्यों उछला तू?
जहाँ भी रहा,
तेरे चलने से
मेरा साथ क्यों बहा?
किसने भेजा प्यार बनकर
जो बढ़कर उतरा दिल में?
कोई तो चढ़ा सपना —
जो जीवनभर थमा रहा,
बिना थमे, बिना कहे
हर साँस में जमा रहा।
एक आग सी है —
जो दूर कहीं धधकती रही,
पर शायद वही
मेरे भीतर भी जलती रही।
फिर मेरे दरिया में उतरा सावन,
बूंदों की बरसात बनी कविता।
सावन में गरज थी,
सावन में कोई भीगा भी था...
शायद वही — जो कभी गया ही नहीं।
_Mohiniwrites
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