"इस सफर की शाम"
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रोने लगी वो खोने लगी,
जुदा जब वो मुझे से होने लगी,
दर्द दिलों का बढ़ने लगा जब,
नवज़ बाह की घटने लगी,
हाल मेरा भी बेहल हुआ जब,
नजरों से मेरी तू हटने लगी।....
मेरी नहीं हुई तो क्या हुआ?
किसी और की तू अब होने लगी,
ओझल होने लगी जब नजरों से तू,
मेरी भी हिम्मत अब टूटने लगी।....
तुमसे दूर होने की सोची ना थी,
सोच के सीने में आग ऐसी लगी,
हाल तूने मेरा सोचा नहीं,
गैरों के संग तू जाने लगी।....
पागल सा जब मैं होने लगा,
तेरी जरूरत मुझे पढ़ने लगी,
जख्म दिए तुमने इतनी गहरे,
सारे जहां की दुआएं कम पड़ने लगी,....
मिलेंगे हम किस सफर में अब,
इस सफर की शाम अब होने लगी।
~हरीश कुमार