गर्भ-संस्कार

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“गर्भवती यह जान ले कि उसकी प्रत्येक सकारात्मक कल्पना सकारात्मकता निर्माण कर रही है। प्रत्येक नकारात्मक कल्पना नकारात्मक परिणाम देने में सक्षम है। एक गर्भवती की सकारात्मकता का केवल उसके शरीर एवं मानसिकता पर असर नही होता बल्कि उसका शिशु उससे भी अधिक संवेदनशील है, वह सब कुछ ग्रहण करता है। वह शिशु अभी मौन है, लेकिन नौ महिने की प्रत्येक कल्पना, प्रत्येक विचार, प्रत्येक कृत्य, आपके व्दारा उत्पन्न प्रेम, दया, करुणा, ईर्ष्या, व्देष, शत्रुत्व... सब कुछ वो अपने जीवन में दोहराने वाला है। जाने अनजाने में सबकुछ हमारे व्दारा ही निर्माण हो रहा है।

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गर्भ-संस्कार - भाग 1

“गर्भवती यह जान ले कि उसकी प्रत्येक सकारात्मक कल्पना सकारात्मकता निर्माण कर रही है। प्रत्येक नकारात्मक कल्पना नकारात्मक परिणाम में सक्षम है। एक गर्भवती की सकारात्मकता का केवल उसके शरीर एवं मानसिकता पर असर नही होता बल्कि उसका शिशु उससे भी अधिक संवेदनशील है, वह सब कुछ ग्रहण करता है। वह शिशु अभी मौन है, लेकिन नौ महिने की प्रत्येक कल्पना, प्रत्येक विचार, प्रत्येक कृत्य, आपके व्दारा उत्पन्न प्रेम, दया, करुणा, ईर्ष्या, व्देष, शत्रुत्व... सब कुछ वो अपने जीवन में दोहराने वाला है। जाने अनजाने में सबकुछ हमारे व्दारा ही निर्माण हो रहा है।”“गर्भवती माता का ध्यान दोहरा हो ...Read More

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गर्भ-संस्कार - भाग 2

जन्म ले रहे है.. दुनिया को बदलने वाले बच्चे.. हो रही नई दुनिया साकार.. गर्भ संस्कार व्दारागर्भस्थ शिशु पर किस भाषा में करें ? जो आपको समझ आती हो उस भाषा में करें! परंतु संस्कारों की कोई भाषा नही होती 'मराठी में सफरचंद' 'हिंदी में सेब' या 'इंग्लीश में एप्पल' कहने से शब्द बदलते है अर्थ या वस्तु नही बदलती.. अतः गर्भ संस्कार किसी भी भाषा में स्वीकार करें, वह संपुर्ण ही होते है।गर्भ संस्कार पर आज दिया हुआ थोडा सा समय भविष्य का प्रचुर समय एवं पैसा बचा लेंगे।गर्भस्थ शिशु के संपुर्ण जीवन का नियोजनस्वभाव, स्वास्थ्य, सौभाग्य, व्यक्तित्व ...Read More

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गर्भ-संस्कार - भाग 3

गर्भकाल में माता के भावगर्भावस्था में माँ की सांस से शिशु की सांस होती है। माँ की हर आस शिशु कि आस होती है। माँ उदास हो तो शिशु भी उदास होता है। माँ प्रसन्न हो तो शिशु भी प्रसन्न है। माँ के हर आँसु के साथ शिशु को दुःख का भाव पहुंच जाता है। माँ की हर मुस्कान के साथ शिशु आनंदित हो जाता है। नौ माह में माँ का स्वभाव शिशु के जीवन भर का स्वभाव निश्चित कर देता है। अतः गर्भवती कितना आनंदमय व सकारात्मकताओं से भरा जीवन जीती है यह शिशु के संपुर्ण जीवन के ...Read More

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गर्भ-संस्कार - भाग 4

नौ माह के भाव-विश्व पर निर्भर शिशु के जीवन की रचनानौ माह में माँ जितना आनंदमय जीवन जीती है प्रमाण में शिशु को उसके जीवन में आनंद प्राप्त होता है। उदा. नौ माह में माँ ने कुल 7महिने आनंद में बिताये हो, और मान लो शिशु का जीवन 90 वर्ष का हो, तो उसके जीवन का 70 वर्ष का जीवन वह आनंदमय बितायेगा। इस तरह माँ नौ माह में जितना सकारात्मक जीवन जीती है उतना ही सकारात्मक जीवन शिशु का गर्भ में ही निश्चित हो जाता है। अब इसे हम और अच्छे ढंग से समझ ले।ईर्ष्या, द्वेष, शत्रुत्व या ...Read More

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गर्भ-संस्कार - भाग 5

शिशु संवाद — 1मेरे प्यारे शिशु, मेरे राज दुलार मैं तुम्हारी माँ हूँ ....माँ !हे मेरे प्यारे शिशु, मेरे दुलार....तुम खुश हो ना? मेरी तरह.....तुम्हारे रुप में मुझे जैसेदिव्य संतान प्राप्त हो रही हैवैसे तुम भी तो पा चुके हो अपनी माँ को.. मेरे रूप में..कुछ ही समय की बात है... तुम देख पाओगे मुझेअपनी नन्ही सी प्यारी आँखो सेछु पाओगे अपने कोमल मुलायम हाथों से.. पर अभी भी तुम मेरे भीतर ही होपुरी तरह से स्वस्थ, निर्भय, सदा आनंदित।मेरी तरह तुम्हारे पिता भी आतुर हैतुम्हे देखने के लिएमेरा एवं तुम्हारे पिता का आशीषसदा तुम्हारे साथ है।निर्भय रहना....मेरा ईश्वर ...Read More

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गर्भ-संस्कार - भाग 6

गर्भवती इन बातों का अनुकरण करे।— साफ सुथरे घर में जहाँ सूर्य प्रकाश भरपूर आता हो, शुद्ध और ताजी का संचरण होता हो, ऐसे ही घर में गर्भवती को रहना चाहिये।— गर्भ में कौन सी विकृती आ सकती है? गर्भपात होने के कारण क्या होते है? सिजरीन क्यों करना पडता है? शिशु को बाहर कैसे निकाला जाता है ? दवाईयाँ कौन सी लेनी चाहिए? इस तरह का साहित्य पढना या इन बातों पर सोचना सख्ती से टाल दें। क्योंकि नकारात्मक विचार नकारात्मक प्रसंगो को आमंत्रित करते है। ऐसे भी इन सब बातों की फिक्र आपके डॉक्टर को होती है। ...Read More

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गर्भ-संस्कार - भाग 7

गर्भवती के लिए पोषक अन्नअन्न स्वादिष्ट, रसभरा, मधुर, खुशबूदार, द्रवरूप, मन को प्रसन्न करने वाला तथा खाने के लिये उत्पन्न करने वाला होना चाहिये। गर्भवती के आहार में दूध, घी, मक्खन, शक्कर और बादाम अति लाभदायक है। इस बात पर विशेष ध्यान रखना चाहिये कि खाये हुये अन्न का पूरी तरह से पचन हो। तीसरे मास के बाद गर्भवती में विशेष इच्छायें निर्माण होती हैं, जिसमें खास प्रकार के खाद्य पदार्थों के प्रति रूचि बनती है, इसलिये गर्भवती की सही इच्छाऐं जानकर उन्हें पूरी करने की पति और परिवार के सदस्यों की जिम्मेदारी होती है।प्राचीन मान्यताओं का पालन करते ...Read More

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गर्भ-संस्कार - भाग 8

सत्सङ्ग संस्कारहीयते हि मतिः पुंसां हीनैः सह समागमात्।समैच्च समतामेति विशिष्टैश्च विशिष्टताम्।। :हितोपदेशअर्थ–“हीन लोगो की संगती से मनुष्य की बुद्धी हीन हो जाती है। श्रेष्ठ लोगो की संगती से बुद्धि भी निःसंयश श्रेष्ठ ही होती है।”इसलिए केवल सत्संग को ही प्राधान्य देना चाहिए। गर्भवती के कानो पर आने वाला हर शब्द, हर एक अच्छा एवं बुरा शब्द गर्भज्ञान को अच्छा या बुरा बनाता रहता है। कहा गया है कि कुसंग से सती की भी मति भ्रष्ट हो जाती है तो सुकोमल गर्भ की बुद्धी भ्रष्ट हो जाये इसमें क्या आश्चर्य है?सत्संगति बुद्धि की जड़ता को हरती है, वाणी में सत्य ...Read More

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गर्भ-संस्कार - भाग 9

पति का कर्तव्यगर्भिणी वांच्छितं द्रवं तस्यै दद्याद्यथेचितम्।सूते चिरायुषं पुत्रं अन्यथा दोषमर्हति।।“गर्भिणी की इच्छा जिस जिस वस्तु पर जाएगी वह वस्तु "योग्य हो तो" पती उसे अवश्य लाकर दे जिससे वह उत्तम व चिरायु शिशु को जन्म देगी। पर गर्भवती की ईच्छा पुरी ना की जाये तो वह दुःखी, असहज व उदास होगी जिस कारण गर्भ भी सदोश उत्पन्न होगा!” इसलिए "सदा कार्येप्रियं स्त्रियः।" गर्भिणी जिस कारण प्रसन्न रहेगी, ऐसा ही उत्तम बर्ताव उसके साथ घर में सभी छोटे बड़े लोग रखें, ऐसी शास्त्राज्ञा बताई गई है।गर्भवती की इच्छा को संस्कृत में "दौर्हृद" कहा गया है। दौर्हृदिनी का अर्थ दो ...Read More

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गर्भ-संस्कार - भाग 10

वाणी का नियन्त्रण व क्षमा संस्कारवाणी का नियन्त्रण भी एक उत्तम संस्कार है और उत्तम संस्कारों को जन्म देता इसीलिये वाक्संयम को तप की संज्ञा दी गई है। ऐसे ही क्षमा भी विशाल हृदय की एक उदात्त वृत्ति है। यह साधुता का प्रधान लक्षण हैं। अतः संस्कार सम्पन्न होने के लिये इन गुणों को आत्मसात् करना चाहिये। प्रत्येक व्यक्ती, वस्तु एवं स्थिती परिस्थती में अपनी वाणी पर सकारात्मकता प्रकट होनी चाहिए। अपने परिवारजन, रिश्तेदारों के प्रति केवल प्रेम, आदर एवं सम्मान प्रकट होना चाहिए। इससे गर्भस्थ शिशु भी यही शिक्षा पा लेता है।ऐसे ही क्षमा भीं विशाल हृदय की ...Read More

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गर्भ-संस्कार - भाग 11

प्राणायामप्राणायाम में महत्वपुर्ण इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाडीमनुष्य की नाभि के पार्श्व में कुछ नीचे और ऊपर कुण्डलिनी का है। इस कुण्डलिनी के पार्श्व में नाभिकंद के बीच पंद्रह प्रमुख नाड़ियों का स्थान है।१) सुषुम्ना, २) इडा, ३) पिंगला, ४) गांधारी, (५) हस्तजिह्वा ६) पूषा, (७) यशस्विनी ८) शूरा गन्ध ९) कुहू १०) सरस्वती ११) वारुणी १२) अलम्बुना, १३) विश्वोदरी, १४) शालिनी, १५) चित्राइन पंद्रह में से भी सुषुम्ना, इडा पिंगला– ये तीन प्रधान हैं (जिनका योग से घनिष्ठ सम्बन्ध है) इन तीनों में सुषुम्ना सर्वश्रेष्ठ है। इनमें सुषुम्ना नाड़ी समस्त शरीर को धारण करती है। यही मोक्ष मार्ग ...Read More

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गर्भ-संस्कार - भाग 12

[ ध्यान ]कल्पना में है सत्य का सामर्थ्यकल्पना केवल कल्पना नही हो सकती। कल्पना में वास्तविकता व संभावना छुपी होती है। कल्पना भी प्रार्थना की तरह संभाव्य शक्ति है, कल्पना शक्तिशाली है। कल्पना के सामर्थ्य से अस्तित्व को नष्ट भी कर सकते हैं एवं निर्माण भी किया जा सकता है। हम जो भी कार्य करते हैं, वह कल्पना से निर्मित हो रहा है। कल्पना एक ऊर्जा है जिससे हमारा मन भी चलता है, जिसका शरीर भी अनुकरण करता है। धारणा में हम जो गहराई में उतरते हैं, वही वास्तविकता बन जाती है।कई बार केवल कल्पना मात्र से अनेक रोग ...Read More

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गर्भ-संस्कार - भाग 13

मौन व्रत एवं उपवासउपवास एवं व्रत तो अनेक भावी माताऐं रखती है। उसमें एक व्रत और जोड़ लें। संभव तो ९ माह तक सप्ताह में एक दिन मौन व्रत रखें। सप्ताह में १ दिन न कर सको तो माह में एक बार रखें। सुर्योदय से लेकर दुसरे दिन के सुर्योदय तक। इस व्रत की सुचना घर में सभी सदस्यों को दे दें। दूसरे दिन लगने वाली चीजे यथा संभव तैयार रखें। हमारा मौन दो तरह का हो सकता है। एक केवल मुँह बंद रखना। कुछ कहना हो तो इशारे करना या लिखकर दिखाना। पर यह मौन पुरी तरह से ...Read More