Garbh Sanskaar - 5 in Hindi Women Focused by Renu books and stories PDF | गर्भ-संस्कार - भाग 5

The Author
Featured Books
  • One Day

    ആമുഖം  "ഒരു ദിവസം നമ്മുടെ ജീവിതം മാറുമെന്ന് ഞാൻ എപ്പോഴും വിശ...

  • ONE DAY TO MORE DAY'S

    അമുഖം

    “ഒരു ദിവസം നമ്മുെട ജീവിതത്തിെ ഗതി മാറ്റുെമന്ന് ഞാൻ...

  • ഡെയ്ഞ്ചർ പോയിന്റ് - 14

    ️ കർണ്ണിഹാര ചോദിച്ച ചോദ്യത്തിന് വ്യക്തമായ ഒരു ഉത്തരം കണ്ടെത്...

  • One Day to More Daya

    Abu Adam: ശാന്തമായ വനത്തിനു മീതെ സൂര്യൻ തൻ്റെ ചൂടുള്ള കിരണങ്...

  • പുരാണങ്ങളിൽ ഇല്ലാത്ത കഥകൾ (4)

    ️ വനവാസകാലത്ത് ഒരിക്കൽ ശ്രീരാമദേവൻ തനിച്ച് കാനനത്തിലൂടെ സഞ്ച...

Categories
Share

गर्भ-संस्कार - भाग 5

शिशु संवाद — 1

मेरे प्यारे शिशु, मेरे राज दुलार
मैं तुम्हारी माँ हूँ ....माँ !
हे मेरे प्यारे शिशु, मेरे राज दुलार....
तुम खुश हो ना? मेरी तरह.....
तुम्हारे रुप में मुझे जैसे
दिव्य संतान प्राप्त हो रही है
वैसे तुम भी तो पा चुके हो अपनी माँ को..
मेरे रूप में..
कुछ ही समय की बात है...
तुम देख पाओगे मुझे
अपनी नन्ही सी प्यारी आँखो से
छु पाओगे अपने कोमल मुलायम हाथों से..
पर अभी भी तुम मेरे भीतर ही हो
पुरी तरह से स्वस्थ, निर्भय, सदा आनंदित।
मेरी तरह तुम्हारे पिता भी आतुर है
तुम्हे देखने के लिए
मेरा एवं तुम्हारे पिता का आशीष
सदा तुम्हारे साथ है।
निर्भय रहना....
मेरा ईश्वर जो तुम्हारा भी आद्यपिता है,
उसका आशिर्वाद व सुरक्षाचक्र भी तुम्हारे साथ है।
ईश्वर के अनेक रुप हैं, चरित्र हैं, लीलाएं हैं,
वह हर रूप में प्रतिक्षण
हम दोनों की निगरानी कर रहा है।
जिस धर्म में तुम्हारा आगमन हो रहा है,
वह विश्व का सर्वश्रेष्ठ धर्म है।
यह पृथ्वी स्नेह रखने वाले,
सदा सत्कार्य करने वाले,
ईश्वर में आस्था रखनेवाले,
अच्छे लोगों से भरी हुई है।
मेरे प्यारे शिशु यह सृष्टी सुंदरता से भरी है,
दसों दिशाओं में सुख, शांति, संपन्नता, समृध्दी,
संपत्ती अनंत मात्रा में फैली है।
जिस पर तुम्हारा पुरा अधिकार है।
ब्रम्हांड के सारे सुख, अव्दितिय शांति व अपार समृध्दी सब तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं। आओ और बटोर लो.....
और दुनिया को भी खुब बांटो।
मेरे राज दुलार,
आदान प्रदान तो सृष्टी का नियम ही है।
किसी को कुछ देने में अद्भुत आनंद है।
जितना हम देते हैं,
उससे अधिक मात्रा में हमें प्राप्त होता है।
ईश्वर ने तुम्हे पृथ्वी पर
कई विशिष्टताओं के साथ
अनंत शक्तियों से युक्त कर
दिव्य संतान के रूप में भेजा है।
कोई निश्चित हेतु से
दिव्य कार्य करने के लिए
तुम आए हो।
मेरे प्यारे शिशु तुम स्वस्थ, सुदृढ, सौभाग्यशाली, धनवान, विद्वान, निर्दोष, दीर्घायु, निर्भय, आनंदमय, एवं दिव्य संतान हो।
तुम्हारी स्मरण शक्ति, तुम्हारी बुध्दिमत्ता अद्भुत है।
तुम्हारे चेहरे पर, तुम्हारी आँखो में दिव्य तेज है।
तुम्हारा संपुर्ण शरीर स्वस्थ, चुस्त, तंदुरुस्त है।
मेरे प्यारे शिशु तुम हर दृष्टीकोण से परिपुर्ण हो।
गर्भावस्था का सफर सुंदर एवं सुहाना है,
क्योंकि हम दोनो साथ जो हैं।
मेरे साथ तुम्हारा पुरा परिवार भी तुम्हे
जी भर-भर कर आशिर्वाद दे रहा है।
मेरे प्यारे शिशु,
मेरे राज दुलार मै तुम्हारी माँ हूँ ... माँ!
मै हमेशा तुम्हारे साथ हुँ...।


शिशु संवाद — 2

मेरे शिशु, मेरे राज दुलार
इस ममता भरे क्षणों में आपका स्वागत है।
इस समय आप जहाँ हो उस गर्भ को
ईश्वर ने अत्यंत सुंदरता से बनाया है।
आपके लिए यह एक सुंदर, सुरक्षित व आनंदमय स्थान है।
मेरे शिशु आप एक स्वस्थ, सुदृढ, सौभाग्यशाली, धनवान, विद्वान, निर्दोष, दीर्घायु, निर्भय, शांत संयमशील, आनंदमय, एवं दिव्य संतान हो।
अगले कुछ क्षणों में मैं आपको आपकी माँ का,
अर्थात मेरा परिचय दे रही हूँ,
अपनी कुछ बातें बता रही हूँ सुनो.....
(यहाँ अपना नाम बताकर अपनी कुछ अच्छाइयाँ शिशु को बतानी है।)..................................
.................................................
यह तो हुई आपके माँ की बात अब मेरे पति याने
आपके आदरणिय पिता का परिचय दे रही हूँ,
उनकी कुछ बातें बताने जा रही हूँ.... सुनो...
(यहाँ अपने पति का परिचय दे कर उनकी कुछ अच्छाइयाँ शिशु को बतानी है।).......................
..................................................
मेरे शिशु केवल आपके माता पिता
याने हम ही नही, पुरे परिवार के सदस्य,
आपके स्वागत के लिए आतुर है।
उनका परिचय एवं उनकी बातें सुनाती हुँ... सुनो.....।
(यहाँ अपने परिवार के एक-दो सद्स्यो का परिचय देकर उनकी कुछ अच्छाइयाँ शिशु को बतानी है। रोजाना एक सदस्य चुन सकते हो। 21 बार सुनते समय हर बार नई बातें बताई जा सकती हैं।).......................
...................................................
यह आपका परिवार है जो आपको
जी भरकर आशिर्वाद दे रहा है,
मेरे शिशु इसी तरह मेरे माता पिता का घर
याने ननिहाल भी है,
उनका भी परिचय करवाती हूँ एवं उनकी बातें
सुनाती हूँ ..... सुनो......!
(पहले की तरह यहाँ भी परिचय देना है,
एवं बातें सुनानी है।).........................
...................................................
मेरे शिशु मेरे राजदुलार तुम खुश हो ना ...
अपने माता पिता, आपका परिवार
एवं ननिहाल की बातें सुन कर ....
अब मै आपको बता रही हूँ कि
आपका धर्म कौन सा है ?
धर्म के अंतर्गत किस जाति एवं समाज में
आपने जन्म लिया है?
हम भगवान के कौन कौन से स्वरुप की पुजा
एवं भक्ति करते है।
सुनो.........
(यहाँ भी उपरोक्त बातों का स्पष्टिकरण देना है)
......................................................
मेरे शिशु एक सुंदर देश में आप जन्म ले रहे हो,
जहाँ विश्व के सभी धर्म के लोग निवास करते हैं।
विश्व का प्रत्येक धर्म अपने आप में परिपूर्ण
एवं आदरणिय होता है।
परंतु ध्यान रखना सबसे सुंदर धर्म वह है,
जिसमें आपका जन्म हो रहा है,
एवं जन्म से प्राप्त इसी धर्म संस्कृती का
आजीवन पालन करना है।
इसी धर्म से संबंधित भगवत भक्ति एवं पुजा
अनुष्ठानों का पालन करना है।
दुनिया का कोई धर्म बुरा नही होता, मगर अपना
धर्म वो होता है, जिसमें हमारा जन्म होता है।
मेरे शिशु मेरे राज दुलार,
आपका इस सुखमय एवं आनंदमय सृष्टी में स्वागत है।
यह धरा, यह आकाश, यह जल, अग्नि, वायु, ,
समस्त पंच तत्वों से युक्त यह सुंदर सृष्टी
आपके स्वागत के लिए तैयार है।
जैसे ही गर्भ का यह सुहाना सफर पुरा हो जाएगा,
आप इस सृष्टी को निहार पाओगे।
सृष्टी का आनंद बटोर पाओगे एवं अपने स्नेह भरे
जीवन से इस सृष्टी में आनंद भर दोगे।
मेरे शिशु मेरे राजदुलार, मै आपकी माँ हूँ माँ....
एवं आप मेरी प्यारी संतान हो...।

जाने अनजाने में बढती उम्र में बाहर के गलत संस्कार का शिशु के भावी जीवन में हावी होने की संभावना होती है। परंतु नौ माह में गर्भावस्था में किये गये प्रबल सकारात्मक संस्कार एवं साधना से शिशु के सुसंस्कारो की नींव इतनी मजबुत हो जाती है की कोई गलत संस्कार शिशु के जीवन में प्रवेशित हो ही नही सकता। केवल आवश्यकता है नौ माह सचेत रहने की। इस समय में गर्भवती शिशु के लिए सात्विकता व सकारात्मकता भरा जीवन जिए। साधना के लिए समय दे। ईश्वर से समिपता बनाए रखे। मन को सदा प्रसन्न रखने वाले कार्य में स्वयं को व्यस्त रखें।


शिशु संवाद — 3

मेरे शिशु, मेरे राज दुलार,
मै आपको आपके सूक्ष्म अस्तित्व एवं
मानव सृष्टी में आपके आगमन पर
कुछ महत्वपुर्ण बातें बता रही हूँ।
आप एक शुध्द चैतन्य स्वरुप आत्मा हो,
इस समय गर्भ में प्रतिक्षण
आपका शरीर विकसित हो रहा है।
आपके पास इस समय एक अंतर्मन भी है।
जो मेरे अंतर्मन से जुडा हुआ है।
इसी अंतर्मन से अंतर्मन तक,
ममता के मार्ग से
यह संस्कार भाव आपको दे रही हूँ।
आप अनंत आत्माओं के पुंज से
निकली हुई एक आत्मा हो,
अर्थात परमात्मा से संलग्नित एक स्वतंत्र आत्मा हो।
आप पहले भी थे, आज भी हो एवं हमेशा रहोगे।
एक सर्वोच्च नियंत्रणकारी वैश्विक शक्ति
इस असीम ब्रम्हांड में फैली हुई है।
जिसे वैश्विक मन या परमात्मा भी कह सकते हो।
आप इसी शक्ति का हिस्सा हो।
इस मानव सृष्टी में आपका आगमन
एक अद्भुत जीवन जीने के लिए हुआ है।
आपको मनचाहा एवं
प्रिय जीवन जीने के लिए बनाया गया है।
आपका जीवन
रोमांच एवं सफलताओं से भरा रहने वाला है।
अपने परिवार एवं अपने मित्रों के साथ
आपके मधुर संबंध रहेंगे।
परिपुर्ण एवं सुख संपन्न जीवन जीने के लिए,
आपके पास पर्याप्त धन संपत्ती होगी,
आपका व्यक्तित्व आदरणिय एवं सम्माननीय होगा।
आपको वह समस्त शक्तियाँ ईश्वर ने दी है,
जिससे जीवन में
आप प्रत्येक स्वप्न साकार कर सको।
आपको सदा हंसने, मुस्कुराने,
खुशियां बटोरने एवं
खुशिया बाँटने के लिए बनाया गया है।
आपकी प्रत्येक सुबह उमंग व रोमांच से भरी हुई,
पुरा दिन आनंद व समाधान से भरा हुआ,
प्रत्येक रात शांत व निश्चल नींद से युक्त होगी।
आपका जीवन अमुल्य है, आप शक्तिशाली हो,
एवं सदा सुरक्षित हो।
आप हर समय सकारात्मकताओं से भरे रहोगे,
हर समय अच्छा महसुस करोगे,
स्वस्थ, समृध्द व आनंदमय जीवन के लिए प्रत्येक
दिन ईश्वर को धन्यवाद दोगे।
मेरे शिशु,
आपके जीवन में चुनौतियाँ भी आयेगी,
पर यह चुनौतियाँ भी
हमारे लिए ही बनी हुई होती है,
पर ध्यान रखना इन चुनौतियों से उबरने के लिए,
अपनी मंजिल पाने के लिए ही तुम्हें बनाया गया है।
सुख दुःख दोनो ही जीवन में आते हैं,
परंतु जीवन भर संघर्ष करने के लिए
या दुःखी रहने के लिए आप नही बने हो।
आप स्वस्थ, समृध्द, आनंदमय एवं
अद्भुत जीवन जीने के लिए बने हो।
आपके पास असीमित ऊर्जा है,
आपको जीवन में हर मनचाही चीज पानी है,
आप खुशियाँ, स्वास्थ्य, रोमांच व प्रेम से
सराबोर रहने के लिए बने हो।
मेरे शिशु,
प्रेम जीवन की एक सकारात्मक शक्ति है।
हमारे मन में जो भी बनने, करने
या पाने की प्रबल इच्छा है,
वह प्रेम के कारण ही उत्पन्न होती है।
प्रेम से ही समस्त आकर्षण निर्मित होते हैं।
जीवन में वही होता है,
जिसका आकर्षण हमारे अंतर्मन में होता है।
जीवन में कुछ भी संयोगवश नही होता।
हम जिस तरह के भाव देते हैं,
वैसी ही घटनाएं एवं प्रसंग हमें प्राप्त होते हैं।
मेरे शिशु आपको अच्छी भावनाएं, अच्छे विचार,
एवं प्रेम देने के लिए बनाया गया है।
ईश्वर के प्रति प्रेम, सृष्टी के प्रति प्रेम,
अपने शरीर, आत्मा, मन के प्रति प्रेम,
वस्तुओं के प्रति प्रेम,
प्रत्येक सजीव निर्जीव अस्तित्व के प्रति प्रेम,
केवल प्रेम देने के लिए ही आप बने हो।
हमारे साथ साथ समस्त ब्रम्हांड
आपको आशीर्वाद दे रहा है कि
आपका जीवन सुख, शांति, समृध्दी, प्रेम
एवं आनंद से भरा रहेगा।
और आप ऐसे ही जीवन के लिए बने हो।
मेरे शिशु मेरे राजदुलार,
आप एक स्वस्थ, सुदृढ,
सौभाग्यशाली, धनवान, विद्वान, निर्दोष,
दीर्घायु, निर्भय, शांत, संयमशिल,
आनंदमय, एवं दिव्य संतान हो।
आप जैसे अद्भुत शिशु की माँ होने का
सौभाग्य मुझे प्राप्त होने से मै खुश हुँ
एवं जी भर के धन्यवाद देती हूँ।


गर्भवती अंतर्मन की प्रार्थना

“इस सुंदर सुखमय सृष्टि में
आनंद एवं प्रसन्नता का
वरदान लेकर मैने जन्म लिया है।
ईश्वर प्रत्येक क्षण मेरे साथ है
एवं मेरा अंतर्मन सदैव
सकारात्मक व जागृत रहता है।
जीवन का हर कार्य उत्सव बनाकर
हर पल प्रार्थनापूर्ण होकर जीती हूँ।
मेरे जीवन के सबसे बड़े दो सौभाग्य,
एक मेरा स्त्री के रुप में जन्म
एवं दुसरा स्त्री जीवन का सबसे बड़ा सौभाग्य,
माँ बनना।
मैं खुश हूँ और धन्यवाद देती हूँ कि,
मैं स्वस्थ, सुदृढ, सौभाग्यशाली,
धनवान, विद्वान, निर्दोष, दीर्घायु, निर्भय, आनंदमय,
एवं दिव्य संतान की माँ बनने वाली हूँ।
इन दिव्य गुणों से युक्त आत्मा मेरे गर्भ में
प्रतिदिन विकसित शरीर में
स्थानापन्न हो चुकी है।
मेरा गर्भस्थ शिशु हर क्षण मुझसे जुड़ा हुआ है।
मेरे शिशु की हर सांस मेरे सांस से है,
उसकी हर आस मेरे आस से है।
मेरा एवं मेरे शिशु का मन, आत्मा, शरीर
एवं आभा मंडल सदा सदा के लिए
सुरक्षित संतुलित एवं शक्तिशाली है।
मैं जानती हुँ गर्भावस्था के दिनों में
मैं जैसे आचार व विचार रखूँगी वैसा ही
स्वभाव व भाग्य लेकर मेरे शिशु का जन्म होगा।
जिस कारण मैं अपने विचारों व आचरण पर
निगरानी रखती हूँ कि
कहीं पर भी नकारात्मकता जन्म न ले।
मैं प्रतिदिन केवल सकारात्मक विचार
रखती एवं जीती हूँ।
जिससे मेरे शिशु का जीवन
केवल सकारात्मक ही होगा।
प्रत्येक जीव, प्रत्येक व्यक्ति
परमात्मा की अनुपम कृती है।
प्रेम व आदर का भाव आत्मा का सात्विक पोषण है।
विश्व का हर एक व्यक्ति मुझसे स्नेह रखता है
एवं मेरा कल्याण चाहता है ।
मैं प्रतिदिन अपने परिजन, सगे सबंधी,
चिर परिचित सभी लोगों के प्रति केवल
प्रेम व आदर व्यक्त करती हुँ।
जिस कारण मेरे शिशु का संपुर्ण जीवन
प्रेम व सम्मान से भरा रहेगा ।
मैं प्रत्येक व्यक्ति एवं परिस्थिती को जैसा है
वैसा स्वीकार करती हुँ और सुलझा लेती हुँ।
प्रत्येक व्यक्ति, परिस्थिती व वस्तुओं में
केवल अच्छाई ढुँढना मेरा स्वाभाविक गुण है।
जिससे मेरे साथ केवल अच्छा ही होता है।
हर अच्छाई का मैं पुरे मन से धन्यवाद भी देती हूँ।
एवं जी भर के तारीफ भी करती हूँ।
जिससे मेरे शिशु का संपुर्ण जीवन
अच्छाई से भरा रहेगा।
मै नित्य प्रार्थना, स्तोत्र, पुजा पाठ करती हुँ ।
जिससे मुझ पर एवं मेरे शिशु पर
ईश्वर का आशीर्वाद
एवं सुरक्षा चक्र बना रहता है।
गर्भावस्था में सदैव मंगल कामना का भाव रहने से
मेरे शिशु का सदा मंगल ही होने वाला है।
मै अपने शिशु से नित्य बात करती हुँ।
उसे अपने जीवन के सारे खुशी के प्रसंग सुनाती हुँ।
उसे ईश्वर की लीला की,
शुरता वीरता की, अच्छाई की
कहानियाँ भी पढकर सुनाती हुँ।
केवल सकारात्मक कार्यक्रम देखना-सुनना
व केवल सकारात्मक साहित्य पढना यह
मेरे गर्भावस्था का आद्य नियम है।
मेरे इन समस्त स्वभाव गुणों के कारण
मेरे गर्भस्थ शिशु पर
यही सकारात्मक संस्कार हो रहे है।
मेरे आचार विचार के साथ साथ मेरा आहार भी
शुध्द, सात्विक व पौष्टिक रहने से
मेरे शिशु के शरीर का यथा समय
संपुर्ण विकास हो रहा है।
सामान्य प्रसुती एवं स्वस्थ शिशु
गर्भावस्था का परिणाम होगा
एवं उसके बाद शिशु की हर मुस्कान
मेरे एवं मेरे परिजनों के जीवन में
आनंद बिखेर देगी।
मै अपने शिशु को देखने के लिए,
उसे अपनी गोद में लेने के लिए,
उसे अमृतमय स्तनपान कराने के लिए आतुर हुँ।
मुझे पुर्ण विश्वास है कि
नौ माह एवं नौ दिन का
यह सुहाना सफर शिशु के साथ
खुशियों के साथ बीत जायेगा।
मै खुश हुँ और धन्यवाद देती हूँ कि
मुझे स्वस्थ, सुदृढ, सौभाग्यशाली,
धनवान, विद्वान, निर्दोष, दीर्घायु, निर्भय,
आनंदमय, एवं दिव्य संतान प्राप्त है।”

लगातार 21 दिनो तक यह प्रार्थना करें। इस प्रार्थना में स्वसुचित दैनंदिन प्रक्रिया माँ के स्वभाव में अपने आप उतरने लगती है, एवं इसी जीवन शैली से शिशु भी एकरुप हो जाता है। शिशु पर सकारात्मक संस्कार भी हो जाते है। यह प्रार्थना नित्य पढी भी जा सकती है, लेकिन पढने से अधिक आँखे बंद कर सुनना अधिक प्रभावशाली है। इसे अंतर्मन की प्रार्थना इसलिए कहा गया है कि अंतर्मन में जो भाव स्थित हो जाते है, उसी तरह का हमारा जीवन बन जाता है। अत: गर्भवती व शिशु के दृष्टीकोण से आवश्यक जीवन शैली इस प्रार्थना में निर्धारित की गई है। नित्य नियम से पवित्र एवं सकारात्मक भाव प्रगट करने का अर्थ ही प्रार्थना है।

लगातार 21 दिन न हो सके तो 3 महिने में 45 बार इसे करें।