Garbh Sanskaar - 2 in Hindi Spiritual Stories by Renu books and stories PDF | गर्भ-संस्कार - भाग 2

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गर्भ-संस्कार - भाग 2

जन्म ले रहे है.. दुनिया को बदलने वाले बच्चे.. हो रही नई दुनिया साकार.. गर्भ संस्कार व्दारा

गर्भस्थ शिशु पर संस्कार किस भाषा में करें ?
जो आपको समझ आती हो उस भाषा में करें! परंतु संस्कारों की कोई भाषा नही होती 'मराठी में सफरचंद' 'हिंदी में सेब' या 'इंग्लीश में एप्पल' कहने से शब्द बदलते है अर्थ या वस्तु नही बदलती.. अतः गर्भ संस्कार किसी भी भाषा में स्वीकार करें, वह संपुर्ण ही होते है।

गर्भ संस्कार पर आज दिया हुआ थोडा सा समय भविष्य का प्रचुर समय एवं पैसा बचा लेंगे।

गर्भस्थ शिशु के संपुर्ण जीवन का नियोजन
स्वभाव, स्वास्थ्य, सौभाग्य, व्यक्तित्व निश्चित करें
आज ही!
गर्भ संस्कार द्वारा


गर्भवती की प्रार्थना दोहरी प्रार्थना होती है, क्योंकि वह अकेली नही होती.. उसका गर्भस्थ शिशु भी उसके भावों से एकरुप हो जाता है। ब्रम्हांड के साथ माँ से भी अधिक समीपता शिशु की होती है क्योंकि उसकी आत्मा अभी माया जगत के स्पर्श से मुक्त है। अतः गर्भवती से भी अधिक प्रार्थना का फल शिशु को प्राप्त होता है।

ईश्वर के संग बातचीत करने का प्रार्थना अत्यंत सरल तरीका है ...

प्रार्थना भावनाओं एवं शब्दों का वह सेतु है, जिस पर चलकर उस परमात्मा के पास पहुंचा जा सकता है। अत: गर्भवती ने की हुई प्रार्थना से ईश्वर के संग शिशु की समीपता बढ़ जाती है। जो उसको आजीवन लाभ प्रदान करती है।

परंपरागत प्रार्थनाओं के साथ साथ ईश्वर के प्रति अपनी सामान्य भाषा में, सामान्य शब्दों में मन के भाव भी प्रदर्शित करें, वह भाव भी प्रार्थना स्वरुप ही होते हैं।


नित्य साधना प्रारंभ करने के पूर्व करने की प्रार्थना

सर्वेऽपि सुखिनः सन्तु। सर्वे सन्तु निरामयाः।।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु। मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत्॥

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः।

वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम्।
देवकीपरमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ।।

ॐ सह नाववतु। सह नौ भुनक्तु। 
सह वीर्यं करवावहै। तेजस्विनावधीतमस्तु।
मा विद्विषावहै। ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।

प्रातः काल उठने के पश्चात करने की प्रार्थना
(प्रथम दोनो हाथों का घर्षण कर पुरे चेहरे पर घुमायें उपरांत हथेलियाँ जोड उन्हे देखते हुए करें )
कराग्रे वसते लक्ष्मीः करमध्ये सरस्वती।
करमूले तु गोविंदः प्रभाते करदर्शनम्॥

(छाती के मध्य पर हाथ जोड कर)
वसुदेवसुतं देवं कंसचाणूरमर्दनम्।
देवकीपरमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्।।

समुद्रवसने देवि पर्वतस्तनमण्डले।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यं पादस्पर्श क्षमस्व मे।।
( जो स्वर (नासिका) चालु है वह पैर भुमी पर प्रथम रखते हुए भूमी को नमन करें )

साधना के समाप्ती में करने की प्रार्थना
असतो मा सद्गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मा अमृतं गमय। ॐ शांती शांती शांती॥
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भोजन प्रारंभ करने से पूर्व प्रार्थना (थाली को नमन करें)
ॐ सह नाववतु सह नौ भुनक्तु सह वीर्यं करवावहै। तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै। ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।
(कोई अन्य प्रार्थना करते आये हो तो वह भी कर सकते हो)
थाली को स्पर्ष कर "श्रीकृष्णार्पणमस्तु" कहे, फिर थाली को नमनकर भोजन प्रारंभ करें।

गर्भवती टिवी देखते हुए, न्युज पेपर पढते हुए, क्रोधभाव में भोजन न करें। गर्भावस्था में केवल गाय का घी एवं दुध का उपयोग करें। शुध्द शाकाहार का पालन करें

पानी पीते समय :
राधे राधे / जय श्री कृष्ण / ॐ नमो भगवते वासुदेवाय / ॐ नमः शिवाय / ॐ नमो नारायणाय या अन्य कोई भी एक मंत्र का चुनाव करें। हर समय पानी के पहले घुट के साथ मन में उच्चारण करें।

प्रातः काल
गर्भवती हर रोज सुर्योदय से पूर्व स्नानादि कर्म कर पाठ पुजा एवं प्राणायाम-ध्यान साधना कर ले। तुलसी प्रदक्षिणा या सानिध्य करें। उगते हुए सुर्य के दर्शन कर सुर्य को जल का अर्ध्य दे ।
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गायत्री मंत्र 
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्
गायत्री मंत्र का अर्थ: 
उस प्राणस्वरूप, दुखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा का हम ध्यान करें।
वह परमात्मा हमारी बुद्धि को संमार्ग में प्रेरित करे।