Garbh Sanskaar - 10 in Hindi Women Focused by Renu books and stories PDF | गर्भ-संस्कार - भाग 10

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गर्भ-संस्कार - भाग 10

वाणी का नियन्त्रण व क्षमा संस्कार
वाणी का नियन्त्रण भी एक उत्तम संस्कार है और उत्तम संस्कारों को जन्म देता है, इसीलिये वाक्संयम को तप की संज्ञा दी गई है। ऐसे ही क्षमा भी विशाल हृदय की एक उदात्त वृत्ति है। यह साधुता का प्रधान लक्षण हैं। अतः संस्कार सम्पन्न होने के लिये इन गुणों को आत्मसात् करना चाहिये। प्रत्येक व्यक्ती, वस्तु एवं स्थिती परिस्थती में अपनी वाणी पर सकारात्मकता प्रकट होनी चाहिए। अपने परिवारजन, रिश्तेदारों के प्रति केवल प्रेम, आदर एवं सम्मान प्रकट होना चाहिए। इससे गर्भस्थ शिशु भी यही शिक्षा पा लेता है।

ऐसे ही क्षमा भीं विशाल हृदय की एक उदात्त वृत्ती है, यह साधुता का लक्षण है। ईर्ष्या, व्देष, शत्रुत्व, क्रोध इन भावनाओं से मुक्त होने के लिए इन भावनाओं में लिप्त सभी व्यक्ति तथा स्थितीयों को क्षमा करना आवश्यक है। क्षमा कर देने से हमारे कई शारीरिक, मानसिक व सामाजिक तकलीफें दूर हो जाती है। जनमानस से हमें केवल स्नेह व सम्मान की प्राप्ती भी होने लगती है। उत्कर्ष व सुख के मार्ग खुल जाते है, और गर्भावस्था में इन्ही स्वभाव गुणों का गर्भस्थ शिशु पर संस्कार हो जाता है। अतः उसका भावी जीवन सुखकर हो जाता है।

गर्भकाल में भोजन का संस्कारों पर प्रभाव:
भोजन को सामान्य खाना न मानकर उसे प्रसाद समझकर ग्रहण करना चाहिये। बहुत ही निर्मल, शुद्ध और प्रेम के वातावरण में भोजन प्रसाद बने और पूर्ण प्रेम से ईश्वर को भोग लगाकर प्रसाद ग्रहण करना चाहिये। भोजन-प्रसाद की यही सार्थकता है।

जब भी थाली पर बैठे थाली को स्पर्श कर नमन करते हुए "श्री कृष्णार्पणमस्तु" कह कर ही भोजन को प्रारंभ करें।

भोजन बनाते समय तथा ग्रहण करते समय हम जिस विचारधारा में होते हैं, जो देखते हैं, सुनते हैं, सोचते हैं या मनन करते हैं–वैसे ही अन्न के संस्कारों से हम धीरे-धीरे प्रभावित होकर वैसे ही बन जाते है। संस्कारित भोजन के अभ्यास से अच्छे संस्कारों का जीवन में समावेश हो जाता है।

गर्भवती माता प्रसाद के रूप में जब अन्न ग्रहण करती है तो गर्भस्थ शिशु को ईश्वरी शक्ति प्राप्त हो जाती है।

रसोई बनाते समय उसे प्रसाद समझकर बनायें। सुबह की रसोई का ईश्वर को भोग अवश्य लगायें। दोनो तीनों समय थाली को नमन करें व प्रार्थना करके ही अन्न ग्रहण करें।

गर्भ धारणा करना एक सुखद एहसास होता है और मातृत्व प्राप्त करके ही एक नारी परिपूर्ण होती है लेकिन गर्भकाल एक नाजुक समय भी होता है और इन दिनों में गर्भवती को ऐसे ही आहार-विहार का पालन करना होता है, जो गर्भवती और गर्भ में पल रहे शिशु के स्वास्थ्य की रक्षा और शरीर का उचित विकास करने वाला हो। गर्भावस्था में गर्भवती स्त्री को अपने खान-पान पर विशेष ध्यान देना चाहिए ताकि वह शरीर से स्वस्थ, शक्तिशाली और निरोगी बनी रहे क्योंकि गर्भ में पल रहा शिशु पूर्ण रूप से मां के खानपान पर ही निर्भर रहता है।

ऐसे ही हमेशा जलग्रहण करते समय मन ही मन पहले घूँट के साथ ईश्वर का नाम लेने से जल शुध्द व सात्विक बन जाता है। उस में तीर्थ का भाव आ जाता है। इसके लिए राधे राधे, जय श्री कृष्ण, जय श्री राम, ॐ नमः शिवाय, ॐ नमो भगवते वासु देवाय, श्री गुरु देव दत्त, ऐसा कोई भी नाम या मंत्र आप चुन सकते हो। इसका शिशु के शरीर के निर्माण में प्रभाव आता है एवं शिशु को भी अधिकांश समय में भगवान का नाम स्मरण सुनने को मिलता है।

रोज सुबह दोनो हाथों में जल लेकर (दायें हाथ में जलपात्र रख कर बायें हाथ से ढकें) स्तोत्र या मंत्र पढ़ें, एवं दैवी ऊर्जा से युक्त यह जल ग्रहण करें।