गर्भवती के लिए पोषक अन्न
अन्न स्वादिष्ट, रसभरा, मधुर, खुशबूदार, द्रवरूप, मन को प्रसन्न करने वाला तथा खाने के लिये इच्छा उत्पन्न करने वाला होना चाहिये। गर्भवती के आहार में दूध, घी, मक्खन, शक्कर और बादाम अति लाभदायक है। इस बात पर विशेष ध्यान रखना चाहिये कि खाये हुये अन्न का पूरी तरह से पचन हो। तीसरे मास के बाद गर्भवती में विशेष इच्छायें निर्माण होती हैं, जिसमें खास प्रकार के खाद्य पदार्थों के प्रति रूचि बनती है, इसलिये गर्भवती की सही इच्छाऐं जानकर उन्हें पूरी करने की पति और परिवार के सदस्यों की जिम्मेदारी होती है।
प्राचीन मान्यताओं का पालन करते हुए महिलाऐं इस अवस्था में अधिक भोजन करने का प्रयास करती हैं। डॉक्टरी सलाह से सामान्य रुप से संतुलित भोजन, जिसमें दूध, दही, हरी सब्जियाँ, फल आदि हो। ज्यादा मिर्च-मसाले, चाय-कॉफी तथा मादक पदार्थों का परहेज रखें। फलों का रस लाभकारी रहता है। पानी भी खूब पीना चाहिए। रक्तचाप बढने पर नमक का सेवन कम कर दें। अच्छा होगा, यदि खानपान की तालिका बना लें और उस पर सख्ती से अमल करें।
सुबह उठकर खुली हवा में घुमने जाऐं। पानी ज्यादा पीना चाहिए, इससे पित्त की और पेशाब की तकलीफ नही होती। इस अवस्था में दूध और दूध से बनी चीजें (दही, छेना) ज्यादा मात्रा में लें।
इससे प्रोटीन्स मिलते है। इसके साथ गीला नारियल भी रोज थोडा थोडा खा सकते है। ऐसी मान्यता है कि सफेद पदार्थों के सेवन से शिशु का रंग साफ होता है। भोजन के समय हरी सब्जियां, दाल आदि प्रोटीन युक्त चीजें खानी चाहिए। सुबह उठते ही चाय की जगह दूध लें तो अच्छा होगा। समय-समय पर दिन में बराबर फल या फलों का रस सेवन करें। नौवा-महिना लगने के बाद रात को दूध में थोडा सा घी मिलाकर लें।
गर्भावस्था में शिशु अपने पोषण के लिये माँ पर निर्भर रहता है। इस दौरान माँ को सामान्य की अपेक्षा 300 कैलोरी से अधिक ऊर्जा का सेवन करना पडता है। अतः उसे विशेष ऊर्जा, शक्ति तथा पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। निम्न प्रकार से उसे समझ सकते है।
1) कैलशियम : यह तत्व भ्रूण की हड्डियों एवं दाँतो के विकास के लिए जरुरी है। दुध, दूध से बने पदार्थ, अखरोट, बादाम पिस्ता आदि में यह तत्व प्राप्त होता है।
2) आयरन : यह तत्व भ्रूण में रक्त कोशिकाओं के निर्माण के लिये बहुत आवश्यक है। सूखे फल, हरी पत्तेदार सब्जियाँ, ताजे फल आदि से यह तत्व प्राप्त होता है।
3) विटामिन्स : यह तत्व स्वस्थ प्लेसेन्टा (नाल) तथा आयरन के शोषण के लिये आवश्यक है। ताजे फल, सूखे मेवे, हरी सब्जियाँ, अंकुरित अनाज, सलाद आदि से यह तत्व प्राप्त होता है।
4) फॉलिक एसिड : यह तत्व शिशु के स्नायुतंत्र के विकास के लिए जरुरी है। हरी पत्तेदार सब्जियाँ, अनाज आदि में यह तत्व प्राप्त होता है।
5) जिंक : यह तत्व शिशु के ऊतकों के विकास के लिये आवश्यक है। अनाज, दालें आदि से यह तत्व प्राप्त होता है।
चरक शरीरस्थान एवं अन्य माध्यमों के अनुसार खान पान में कुछ बातों को विशेष प्राधान्य दिया जा सकता है।
पहला मास – प्रथम मास में यह संदेह हो जाये कि गर्भ की स्थिती हो गई है, तभी से थोडा थोडा मिश्री मिला दूध दिन में अनेक बार लेना चाहिये। प्रकृती के अनुरुप भोजन लेना चाहिये। सुबह नाश्ते में एक चम्मच मक्खन, एक चम्मच पिसी मिश्री और दो तीन काली मिर्च मिलाकर चाट लें। उसके बाद नारियल की सफेद गिरी के दो-तीन टुकड़े खुब चबा चबाकर खा लें।
दूसरा मास – शक्कर, मधुर जडी-बुटियाँ मिश्रित दूध लें। रोजाना दस ग्राम शतावर का बारीक पाउडर और पीसी मिश्री को दुध में डालकर उबालें। जब दूध थोडा गर्म रहे तो इसे घूँट घूँट करके पी लें। पूरे माह सुबह और रात में सोने से पहले इसका सेवन करें।
तीसरा मास – रोज सुबह शाम एक ठंडे गिलास दुध में एक चम्मच शुध्द घी एवं तीन चम्मच शहद मिलाकर पीयें। इसके अलावा गर्भवती को तीसरे महीने से ही सोमघृत का सेवन शुरु कर देना चाहिये।
चौथा मास – घर में बनाया हुआ ताजा मक्खन, खडी शक्कर मिलाकर समय समय पर लें। दूध से निकाला गया मक्खन दो तोला के मात्रा में ले सकते हैं।
पाँचवाँ मास – पारंपारिक विधि से बनाया हुआ घी अधिक लें । सुबह शाम दूध के साथ साथ एक चम्मच घी का सेवन कर सकते है। दाल-चावल, चपाती के साथ 7-8 चम्मच तक घी लिया जा सकता है।
छठा मास – शतावर का चुर्ण और पीसी मिश्री डालकर दूध उबालें, थोडा ठंडा कर कर पीयें।
सातवाँ मास – मधुर जडी-बुटियों से मिश्रित घी लें। छटे माह की तरह ही दुध लें। सोमघृत का सेवन बराबर करती रहें।
आठवाँ मास – हर रोज चावल या अन्य पदार्थों की खीर लें। दूध, घी, सोमघृत का सेवन जारी रखें। इस महीने में कब्ज या गैस की शिकायत की संभावना रहती है, सो शाम को तरल पदार्थ ज्यादा लें।
नौवाँ मास – पूर्ण संतुलित आहार लें। सोमघृत का सेवन बंद कर दें।