मां, नए साल में एक ही फरियाद है…
मुझे नहीं पता तू पत्थर की मूर्ति में है या मंदिरों में बसती है,
मैं तो तुझे अपने दर्द, अपने आंसुओं और अपने टूटे हुए हौसलों में महसूस करती हूं।
बस शिकायत इतनी है कि जो मुझे हर बार तोड़ना चाहते हैं,
मेरा मज़ाक उड़ाते हैं, मेरी इज्ज़त को तमाशा बनाते हैं,
मां… तू ही उन्हें जवाब दे।
ऐसा जवाब दे कि उनके अहंकार को सच का तमाचा लगे…
ताकि उन्हें समझ आए कि तेरी बेटी कमजोर नहीं है, टूटी नहीं है।
वरना लोग फिर जीत जाएंगे,
फिर हंसेंगे, फिर मुझे बदनाम करेंगे…
मां, तू बस इतना कर…
मेरी खामोशी की लड़ाई तू अपने न्याय से पूरी कर दे।
यकीन बस तुझ पर है।🥹