अपेक्षा में हम मुट्ठी बंद रखते हैं—अपनी चाहत, उम्मीदें और अधिकार जकड़ लेते हैं। इसी जकड़न में रिश्ते और भावनाएँ धीरे-धीरे मुरझा जाती हैं, जैसे हाथ में दबा हुआ फूल।
त्याग में हथेली खुली होती है—बिना शर्त देना, स्वीकार करना और मुक्त छोड़ देना। खुला मन ही प्रेम, शांति और सच्ची खुशी को खिलने देता है, जैसे खुली हथेली में खिला फूल।
✨ सीख: जहाँ अपेक्षाएँ बोझ बन जाती हैं, वहीं त्याग जीवन को हल्का और सुंदर बना देता है।