मुझे अंधेरा पसंद नहीं था
एक डर सा लगता था
आज अंधेरों से अपनापन लगता है
धूप से आंखें जलने लगती थी
गुस्सा, एक चीड़ सी मच जाती थीं
पर आज वह मेरी जिंदगी का हिस्सा बन चुके है
घंटो अंधेरों मे बैठकर सोच लेती हूँ
तो कुछ सुना देती हूं तो कुछ सुन लेती हूँ
धुप मे मुस्कुरा लेती हूँ
तो कभी कुछ गुनगुना लेती हूँ
जिंदगी भी अजीब है दोस्तों
जिनसे जितना भागो
वो उतने ही आपके अपने बन जाते हैं
- SARWAT FATMI