मैं मुस्कुराती हूँ ,
जब कोई टूट के रो पड़ता हैं....
उनके आंसु पोछने में
मुझे सुकून मिलता हैं __
जैसे कोइ छोटी सी प्रार्थना पूरी हो गई हो।
पर जब मैं अकेली होती हूं,
और कोई मेरे दर्द की आंखों में झांकता नहीं....
तब लगता हैं,
"क्या मेरी खुशी भी किसी की जिम्मेदारी बनेगी कभी?"
पर खुशी मिलती हैं मिलती हैं उन आंखों से जिनमें रौशनी लौटी हो....
मुझे शांति मिलती हैं जब कोई कहता है,
"तेरे होने से सब ठीक हो गया..."
पर हा, सच ये भी हैं __
कभी कभी मै थम जाती हूं...
चुपके रो लेती हूं,
किसी डायरी के कोने में अपने नाम लिखकर,
जो मैं खुद भी कभी नहीं पढ़ पाई ।
- Sunita bhardwaj