कांच की खिड़की
एक छोटी सी खिड़की हैं मेरे अंदर,
कांच की.... नाजुक.... पर सच्ची
वहां से हर रोज कुछ लोग झांकते हैं,
कोई दुःख ले जाता हैं, कोई मुस्कान छोड़ जाता हैं।
मैं सबको अंदर आने देती हूं,
पर खुद उस खिड़की के उस पार कभी जा नहीं पाई....
क्या तुमने कभी अपने अंदर की खिड़की देखी हैं?
वहीं जहां कान्हा चुपके से बैठ के कहते हैं ___
"बस खोल दे..... मैं हूं यहां भी।"
__sunita
🙏 राधे राधे 🙏
- Sunita bhardwaj