सपना बनकर रह गया वो दूर कहीं...
सपना बनकर वो रहा दूर कहीं,
फर्क क्या पड़ता —
जिस गली में तेरे कदम न आए,
मैंने भी रुख मोड़ लिया।
शायद तुझसे ख़फा रहा,
या फिर खुद से भी —
मगर मेरे प्यार से भरी इन आँखों ने
तेरे होने को अब भी महसूस किया।
क्या तुझे छू गया मेरा मौन वजूद?
क्या दिल का धड़कना
तेरे लिए अब भी बेमतलब रहा?
मैं तो बस यूँ ही
तेरी रूह में उतर गया था,
और तू...
शायद भूल ही गया मुझे
या फिर तक़दीर ने..
तेरे हिस्से की मेरी मोहब्बत
मुझसे ही छीन ली।
_Mohiniwrites