Hindi Quote in Book-Review by DHIRENDRA SINGH BISHT DHiR

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“फोकटिया” कोई नाम नहीं, एक दर्द की पहचान है।
जिसे दुनिया ने कभी समझा ही नहीं, उसी ने पूरी दुनिया को समझने की ठान ली।

वो न भाग्य से लड़ा, न भगवान से—पर हालात से कभी हार नहीं मानी।
हर तमाचा, एक सीख बन गया, और हर ठोकर, एक नई राह।

जिसे सबने फालतू कहा, वही अपने जज़्बातों की कीमत खुद चुकाता गया।
कभी मां के आँचल में सुकून ढूंढा, तो कभी भूखे पेट सपने बोए।

“फोकटिया” की यही तो पहचान है—जो किसी के लिए कुछ नहीं, वो खुद के लिए सब कुछ बन जाए।

वो हर वो चीज़ जानता है जो किताबों में नहीं मिलती—
जैसे भूख का स्वाद, अकेलेपन की चीख, और भीड़ में गुम हो जाने का एहसास।

जब रिश्तों ने साथ छोड़ा, तो उसने खुद से रिश्ता बना लिया।
टूटकर भी मुस्कराना सीखा, और गिरकर भी खड़ा होना नहीं छोड़ा।

दुनिया ने उसके होने को मज़ाक समझा, पर उसने अपनी खामोशी को आग बना दिया।

ना उसे दिखावे की ज़रूरत थी, ना सहानुभूति की भूख—
वो तो बस चाहता था एक मौका, खुद को साबित करने का।

फोकट में जन्मा था, पर जिंदगी भर हर चीज़ की कीमत चुकाई है।
कभी सपनों से, कभी अपनों से, और कभी अपनी ही सच्चाई से।

हर insult ने उसे और मजबूत बनाया, हर rejection ने उसे खुद के और करीब किया।

वो आज भी मुस्कराता है, क्योंकि उसे रोना नहीं आता—
और शायद इसीलिए, लोग उसे “फोकटिया” कहते हैं।

“फोकटिया” वो है जो ज़माने से कुछ नहीं चाहता, सिवाय इस बात के कि कोई उसे समझे।
और जब कोई नहीं समझा, तो उसने अपनी कहानी खुद लिख दी।

***

यह किताब सिर्फ शब्दों का संग्रह नहीं है, ये एक जिद की दास्तान है।
हर पन्ना, हर लाइन, एक अनकही चीख है—जो कहती है:
“मैं फोकटिया नहीं हूँ… मैं बस थोड़ा अलग हूँ।”

Hindi Book-Review by DHIRENDRA SINGH BISHT DHiR : 111984478
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